क्या विदेशी मुद्रा खरीदना अवैध है

रुपये को गिरने से बचाने के लिए आरबीआई ने अपने विदेशी मुद्रा कोष से बेच डाले 2 अरब डॉलर
नई दिल्ली। रूस यूक्रेन युद्ध के चलते दुनिया भर की करेंसी में कमजोरी देखी जा रही है जिससे भारतीय करेंसी रुपया भी अछूता नहीं है. रुपये को गिरने से बचाने के लिए आरबीआई ने बड़ा फैसला उठाते हुए 2 बिलियन डॉलर अपने विदेशी मुद्रा कोष से बेचा है।
वैश्विक तनाव और कच्चे तेल के दामों में भारी उछाल के चलते करेंसी पर दबाव है. रुपये को कमजोर होने से बचाने के लिए आरबीआई ने डॉलर बेचने को काम किया है. जिससे इंपोर्ट करने वाली क्या विदेशी मुद्रा खरीदना अवैध है कंपनियों को महंगा डॉलर ना खरीदना पड़े. कच्चे तेल के दाम आठ सालों के उच्चतम स्तर 115 डॉलर प्रति बैरल के पार जा पहुंचा है। महंगे कच्चे तेल के चलते देश में महंगाई बढ़ने का अंदेशा है। आपको बता दें जब आरबीआई डॉलर बेचने का काम करती है तो वो रुपया खरीदती है जिससे बाजार में उपलब्ध ज्यादा नगदी को कम किया जा सके. इससे बढ़ती कीमतों पर नकेल कसी जा सकती है.
भारत दूनिया का दूसरा सबसे ज्यादा ईंधन खपत करने वाला देश है. जो 80 फीसदी आयात के जरिए पूरा किया जाता है. सरकारी तेल कंपनियां डॉलर में भुगतान कर कच्चा तेल खरीदती हैं. अगर डॉलर महंगा हुआ और रुपया सस्ता हुआ तो उन्हें डॉलर खरीदने के लिए ज्यादा रुपये का भुगतान करना होगा. इससे आयात महंगा होगा और आम उपभोक्ताओं को पेट्रोल डीजल के लिए ज्यादा कीमत ना चुकानी पड़ेगी।
भारत से लाखों बच्चे विदेशों में पढ़ाई कर रहे हैं जिनके अभिभावक फीस से लेकर रहने का खर्च अदा कर रहे हैं. उनकी पढ़ाई महंगी हो जाएगी क्योंकि अभिभावकों को ज्यादा रुपये देकर डॉलर खरीदना होगा जिससे महंगाई का उन्हें झटका लगेगा।
ब्लैक मनी पर चोट, सबसे ज्यादा मुंबई के लोगों की दुबई में अवैध संपत्ति
आयकर विभाग के आपराधिक जांच प्रकोष्ठ ने 2000 भारतीय नागरिकों की पहचान की है जिनके पास दुबई में संपत्तियां हैं लेकिन उन्होंने अपने आईटी रिटर्न में इसे घोषित नहीं किया.
दिव्येश सिंह
- नई दिल्ली,
- 12 फरवरी 2020,
- (अपडेटेड 12 फरवरी 2020, 11:35 PM IST)
- कुछ लोगों के लिए कालेधन को खपाने के लिए दुबई सबसे बेहतर जगह
- आयकर विभाग ब्लैक मनी एक्ट के तहत आरोपियों पर करेगा कार्रवाई
- आयकर विभाग को सही जवाब नहीं मिलने पर संपत्ति हो सकती है जब्त
आयकर विभाग के आपराधिक जांच प्रकोष्ठ ने 2000 भारतीय नागरिकों की पहचान की है जिनके पास दुबई में संपत्तियां हैं. लेकिन उन्होंने अपने आईटी रिटर्न में इसे घोषित नहीं किया. काले धन के खिलाफ जारी मुहिम के तहत एजेंसी ने ये कदम उठाया है. एजेंसी की जानकारी के मुताबिक कुछ लोगों ने हाल फिलहाल के वर्षों में विदेश में संपत्तियां खरीदीं और शेल कंपनियों को ट्रांसफर कीं. ये सब गलत तरीके से कमाए पैसे को छुपाने रखने और आयकर बचाने के मकसद से किया गया.
काले धन के खिलाफ सरकार की मुहिम
बड़े पैमाने पर टैक्स चोरी करने और काला धन विदेश में खपाने वालों के खिलाफ आयकर विभाग ने कमर कसी हुई है. काले धन को खपाने के लिए दुबई सबसे नजदीक और पसंदीदा जगह बना हुआ है.
जिन 2000 लोगों और कंपनियों की पहचान की गई हैं उनमें कई कारोबारी, टॉप प्रोफेशनल्स और सरकारी अधिकारी भी शामिल हैं. आयकर विभाग ब्लैक मनी एक्ट के तहत आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करेगा. ऐसे लोग जिनके पास विदेश में संपत्ति है. लेकिन उन्होंने उसे घोषित नहीं किया और जो संपत्ति खरीदने के लिए इस्तेमाल किए गए पैसे का स्रोत बताने में नाकाम रहे तो ब्लैक मनी एक्ट के तहत उन पर अभियोग चलाया जाएगा.
जांच में गड़बड़ी
आयकर कानून के सेक्शन FA (विदेशी संपत्ति) के मुताबिक सालाना आईटी रिटर्न भरते वक्त देश के बाहर खरीदी गई संपत्तियों, संसाधनों और कंपनियों की जानकारी देना ज़रूरी होता है. दुबई में संपत्ति रखने वाले 2000 लोगों में से करीब 600 ने आय के स्रोत या खरीद के वक्त भुगतान को लेकर अन्य संबंधित कागजात की जानकारी नहीं दी.
ऐसे लोगों पर अभियोग चलाने के साथ इनकी संपत्ति ज़ब्त की जा सकती है. इसके अलावा उन से संपत्ति के मूल्य के 300% तक की पेनल्टी वसूली जा सकती है. साथ ही ब्लैक मनी एक्ट के तहत कारावास भी भुगतना पड़ेगा. दुबई में संपत्ति खरीदने के रूट को मनी लॉन्डरर्स, स्मगलर, अंडरवर्ल्ड गैंगस्टर्स और नशीले पदार्थों के कारोबारी भी करते रहे हैं.
सबसे ज्यादा मुंबई के लोग
जिन 2000 लोगों की पहचान की गई हैं उनमें सबसे ज्यादा मुंबई के हैं. इसके बाद केरल और गुजरात का नंबर आता है. बता दें कि सेक्शन FA (विदेशी संपत्ति) वर्ष 2011-12 में शुरू किया गया. तभी से विदेश में खरीदी गई संपत्ति को आईटी रिटर्न में घोषित करना अनिवार्य है.
जिन लोगों की आयकर विभाग ने पहचान की है उन पर विदेशी मुद्रा प्रबंधन एक्ट (FEMA) के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ED) भी कार्रवाई करेगा. हाल में ED ने विदेश में काला धन रखने वालों के खिलाफ मुहिम शुरू की है. इसके क्या विदेशी मुद्रा खरीदना अवैध है तहत भारतीय नागरिकों की ओर से गैर कानूनी तरीके से खरीदी गई अचल संपत्तियों की पहचान की जा रही है. फेमा एक्ट के सेक्शन 4 के तहत भारत में रहने वाला कोई भी नागरिक भारत के बाहर विदेशी मुद्रा, विदेशी प्रतिभूति या कोई अचल संपत्ति ना तो रख सकता है और ना ही उसे ट्रांसफर कर सकता है.
ED की दबिश में हुआ था खुलासा
बता दें कि इस साल 17 जनवरी को ED ने बीएमसी के पूर्व चीफ इंजीनियर के घर पर फेमा से जुड़े केस में तलाशी ली थी. इस तलाशी के दौरान ED अधिकारियों ने दुबई में कथित तौर पर गैर कानूनी ढंग से खरीदी गई संपत्ति से जुड़े कागजात जब्त किए गए थे. ये पूर्व चीफ इंजीनियर बीएमसी के बिल्डिंग प्रस्ताव विभाग और विकास प्लान विभाग जैसे अहम जगहों पर तैनात रह चुका था. एजेंसी ने पूर्व चीफ इंजीनियर की पहचान नहीं खोली लेकिन बताया जा रहा है कि करीब 7 वर्ष पहले वो बीएमसी से सेवानिवृत्त हुआ था.
बताया जाता है कि पूर्व चीफ इंजीनियर ने दुबई के पार्क आईलैंड, बोनेयर मार्सा में 89 वर्ग मीटर की संपत्ति 2012 में 70 लाख रुपए में खरीदी. लेकिन इस संपत्ति को खरीदने के लिए इस्तेमाल की गई रकम कहां से आई, चीफ इंजीनियर इसकी जानकारी नहीं दे सका.
विदेशी मुद्रा के साथ एक गिरफ्तार
जासं, नई दिल्ली : इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट (आइजीआइ) पर कस्टम विभाग ने लाखों की अवैध विदेशी मुद्रा के साथ एक यात्री को गिरफ्तार किया है। तलाशी लेने पर उसके बैगेज से सऊदी रियाल व यूएस डालर बरामद हुए हैं। इसकी कीमत भारतीय रुपये में 65 लाख से ज्यादा है। अवैध मुद्रा जब्त कर आरोपी के खिलाफ कस्टम एक्ट और फेमा के तहत मुकदमे दर्ज किए गए हैं।
कस्टम कमिश्नर एयरपोर्ट एसआर बरुआ ने बताया कि तस्करी के मद्देनजर एयरपोर्ट पर कस्टम अधिकारी सजग हैं। कस्टम अधिकारियो ने 6 नवंबर को पाया कि एक संदिग्ध यात्री विदेशी एयरलाइंस की फ्लाइट से दुबई जाने की जुगत में है। बाद में उसपर नजर रखी जाने लगी व यात्री को प्रस्थान परिसर में दबोच लिया गया। उसके बैगेज की तलाशी ली गई तो उससे भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा बरामद हुई। उसके बैगेज से कुल 3,97,300 सऊदी रियाल और 3,050 यूएस डालर बरामद हुए। बरामदगी के बाद यात्री से मुद्रा के संबंध में कागजात मांगे गए तो वह कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर सका।
UPSC परीक्षा कम्प्रेहैन्सिव न्यूज़ एनालिसिस - 14 October, 2022 UPSC CNA in Hindi
निम्नलिखित में से किस राष्ट्रीय उद्यान का उल्लेख यहाँ किया जा रहा है?
(a) बलफकरम राष्ट्रीय उद्यान
(b) देहिंग पटकाई राष्ट्रीय उद्यान
(c) मौलिंग राष्ट्रीय उद्यान
(d) नमदाफा राष्ट्रीय उद्यान
उत्तर: d
व्याख्या:
- नमदाफा राष्ट्रीय उद्यान वर्ष 1983 में अरुणाचल प्रदेश में स्थापित एक विशाल संरक्षित क्षेत्र है।
- 1,000 से अधिक फूलों और लगभग 1,400 जीव प्रजातियों के साथ, यह पूर्वी हिमालय में एक जैव विविधता हॉटस्पॉट है।
- यह पूर्वोत्तर भारत में अरुणाचल प्रदेश राज्य में चांगलांग क्या विदेशी मुद्रा खरीदना अवैध है जिले के भीतर भारत और म्यांमार के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित है।
- यह दुनिया का एकमात्र उद्यान है जहां बड़ी बिल्ली की चार प्रजातियां हैं बाघ (पैंथेरा टाइग्रिस), तेंदुआ (पैंथेरा पार्डस), हिम तेंदुआ (पैंथेरा उनसिया) और धूमिल तेंदुआ (नियोफेलिस नेबुलोसा) पाई जाती हैं।
- हालाँकि, राष्ट्रीय उद्यान में हिम तेंदुओं को अभी तक न तो देखा गया है और न ही दर्ज किया गया है और हाल के सर्वेक्षण के आधार पर वन्यजीव अधिकारियों को हिम तेंदुए की मौजूदगी की पुष्टि का इंतजार है।
- भारत में पाई जाने वाली एकमात्र ‘वानर’ प्रजाति, हूलॉक गिबन्स, इस राष्ट्रीय उद्यान में पाई जाती है।
प्रश्न 5. भारत के संदर्भ में, ‘अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA)’ के ‘अतिरिक्त नयाचार (एडिशनल प्रोटोकॉल)’ का अनुसमर्थन करने का निहितार्थ क्या है? (CSE-PYQ-2018)(स्तर – कठिन)
(a) असैनिक परमाणु रिएक्टर IAEA के रक्षोपायों के अधीन आ जाते हैं।
(b) सैनिक परमाणु अधिष्ठान IAEA के निरीक्षण के अधीन आ जाते हैं।
(c) देश के पास नाभिकीय पूर्तिकर्ता समूह (NSG) से यूरेनियम के क्रय का विशेषाधिकार हो जाएगा।
(d) देश स्वतः NSG का सदस्य बन जाता है।
उत्तर: a
व्याख्या:
- पुराने आईएईए (International Atomic Energy Agency (IAEA)) सुरक्षा उपायों के तहत सभी एनपीटी हस्ताक्षरकर्ता अपने परमाणु स्थलों को निर्दिष्ट करेंगे और आईएईए निर्दिष्ट स्थलों का निरीक्षण करेगा।
- इस प्रकार, आईएईए, पुराने सुरक्षा उपायों के तहत, केवल किसी देश द्वारा घोषित या निर्दिष्ट स्थलों पर ही अनधिकृत गतिविधियों के लिए निरीक्षण कर सकता था।
- इस प्रकार इसने मूल रूप से राष्ट्रों के लिए गुप्त परमाणु कार्यक्रम चलाने का एक विकल्प खुला छोड़ दिया – जैसा कि इराक के मामले में हुआ था।
- इस प्रकार, वर्ष 1993 में, IAEA ने मौजूदा सुरक्षा व्यवस्था को कड़ा करने के लिए अतिरिक्त प्रोटोकॉल (AP) तैयार किए।
- हालांकि, भारत विशिष्ट अतिरिक्त प्रोटोकॉल आईएईए को उन गतिविधियों में बाधा डालने या हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं देते हैं जो भारत के सुरक्षा समझौतों के दायरे से बाहर हैं, इस प्रकार भारत IAEA समझौते के बाहर एक सैन्य परमाणु कार्यक्रम के संचालन का अधिकार सुरक्षित रखता है।
UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :
प्रश्न 1. “पेलेट संयंत्र और टॉरफेक्शन दिल्ली के प्रदूषण का जवाब हो सकता है”। व्याख्या कीजिए। (150 शब्द, 10 अंक) (जीएस-3; पर्यावरण)
प्रश्न 2.”मनरेगा योजना महामारी के दौरान और बाद विफलता और एक सफलता दोनों थी”। समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। (250 शब्द, 15 अंक) (जीएस-2; शासन)
आजादी के बाद के प्रथम दसक में भारत की स्वर्ण नीति
क्या विदेशी मुद्रा खरीदना अवैध है
1947 में भारत की विदेशी मुद्रा भण्डार लगभग 2 मिलियन पौंड का था. 1947 से 1962 तक भारत में नीति स्वर्ण बाज़ार पर नियंत्रण की दिशा में निर्देशित रही. 25 मार्च 1947 को आयात और निर्यात (नियंत्रण) अधिनियम लागू किया गया. 1947 में ही सरकार ने नियंत्रण का एक और क़ानून, विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम लागू किया. लेकिन स्वर्ण की मांग काफी ज्यादा थी, जिसके कारण अवैध पारगमन और तस्करी बढ़ने लगी.
भारतीय सरकार ने स्वर्ण आयातों पर प्रतिबन्ध लगा दिया और एक नयी लाइसेंसिंग व्यवस्था लागू की. दोनों में से किसी का भी वांछित असर नहीं हुआ और तस्करी और भी ज्यादा बढ़ गयी. 1947 में स्वर्ण की कीमत 88 रुपये 62 पैसे प्रति 10 ग्राम थी. प्रतिबन्ध की घोषणा के बाद कीमत में कोई कमी नहीं हुयी. 1949 में यह कीमत बढ़ कर 95 रुपये 87 पैसे हो गयी, लेकिन 1955 में गिर कर 79 रुपये 18 पैसे पर आ गयी.
भारत की आज़ादी के बाद के पहले 15 वर्ष की अवधि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन सहित युरोप के पुनर्निर्माण की अवधि भी थी. यह पुनर्निर्माण संयुक्त राज्य अमेरिका की कथित मार्शल प्लान के तहत हो रहा था. तब, विश्व एक स्वघोषित स्वर्ण मान पर काम कर रहा था, क्योंकि अमेरिकी डॉलर का मूल्य इसी पर आधारित था. इन परिस्थितियों में देश की ज़रुरत के लिए भारत को कोई ख़ास सहायता नहीं मिल पा रही थी.
भारत सरकार ने 1956 में कोलार स्वर्ण खदान का राष्ट्रीयकरण किया, जहाँ से भारत का 95 प्रतिशत स्वर्ण निकलता था. लेकिन खदानों में उत्पादन कम होने लगा. 1958 में सरकार ने गैर-सरकारी भण्डार के रूप में खदान से घरेलू उत्पादन बनाए रखने की कोशिश की. उस वक्त स्वर्ण की कीमत 90.81 रुपये प्रति 10 ग्राम थी, जो 1963 में 97 रुपये प्रति 10 ग्राम पर पहुँच गयी. चूंकि मांग में उछाल जारी रहा, सो तस्करी बढ़ने लगी.
अनुमान बताते हैं कि भारत में 1948-49 के दौरान लगभग 27.36 टन स्वर्ण की तस्करी होती थी. यह बढ़ कर 1950-51 में 35.35 टन और 1952-53 में 53.27 टन हो गयी. किन्तु 1955-56 में तस्करी में 50 प्रतिशत से ज्यादा की कमी हुयी तो और घटकर 26.27 टन हो गया. लेकिन यह गिरावट बस थोड़े समय के लिए थी. 1958 और 1963 के बीच लगभग 520 टन स्वर्ण अनाधिकारिक रूप से आयात किया गया. स्वर्ण से बढ़िया और हो भी क्या सकता था.