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स्कूल संचालकों द्वारा मोटी कमाई की जा रही है। स्कूल ड्रेस में कमीशनखोरी कर रहे हैं। मॉनीटरिंग के लिए जिला प्रशासन के निगरानी में कमेटी गठित की गई है। अभी तक शिक्षा विभाग या मॉनीटरिंग अफसरों ने कोई बड़ी कार्यवाही नहीं की है। पहले स्कूलों में यूनिफार्म मिलते थे, लेकिन अब निश्चित दुकानों पर अभिभावकों को भेजा जा रहा है- कमल विश्वकर्मा, अध्यक्ष, पालक महासंघ
Tax On Petrol-Diesel: पेट्रोल डीजल पर कितनी कमाई कर रही है सरकार? डीलर का कमीशन भी जानिए
By: ABP Live | Updated at : 27 Apr 2022 07:25 PM (IST)
Government Earning on Petrol-Diesel : पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दामों से आम आदमी पर महंगाई का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है. 27 अप्रैल को पेट्रोल डीजल के दामों में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई है लेकिन अप्रैल के महीने में 21 बार डीजल-पेट्रोल के दामों में बढ़ोत्तरी हुई हालांकि कच्चे तेल के कमीशन फैलता है दाम नहीं बढ़े. खास बात यह है कि हम जिस भाव पर तेल खरीदते हैं, उसमें से लगभग 47 फीसदी तक टैक्स होता है. मोदी सरकार के कार्यकाल में पेट्रोल डीजल पर टैक्स कई गुना बढ़ा है. केंद्रीय टैक्स एक्साइज ड्यूटी के अलावा राज्य सरकारें भी पेट्रोल पर वैट के रूप में टैक्स की वसूली करती हैं जिसकी वजह से अलग-अलग राज्यों में पेट्रोल डीजल के दामों में थोड़ा बहुत अंतर रहता है.
Explainer: आज से मेडिकल काउंसिल की जगह नेशनल मेडिकल कमीशन, जानिए क्या बदलेगा
पिछले साल डॉक्टरों के कड़े प्रतिरोध का सामना करने के बाद संसद के दोनों सदनों में नेशनल मेडिकल कमीशन बिल पारित किया गया था . चिकित्सा कमीशन फैलता है शिक्षा को विनियमित करने वाली केंद्रीय मेडिकल काउंसिल ऑफ कमीशन फैलता है इंडिया (MCI) को रद्द करके इसकी जगह पर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) का गठन किया गया. अब देश में मेडिकल शिक्षा और मेडिकल सेवाओं से संबंधित सभी नीतियां बनाने की कमान इस कमीशन के हाथ में होगी.
कमीशन का कमीशन फैलता है पहला अध्यक्ष डॉ सुरेश चंद्र शर्मा को बनाया गया है. डॉ सुरेश चंद्र शर्मा एम्स दिल्ली में ईएनटी के विभागाध्यक्ष रह चुके हैं, अब वो सेवानिवृत्त हैं. उन्हें तीन साल कमीशन फैलता है की अवधि के लिए एनएमसी के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया है. अध्यक्ष के अलावा, NMC में 10 पदेन सदस्य और 22 अंशकालिक सदस्य होंगे, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा.
कमीशन फैलता है
रांची जिले में असहयोग आंदोलन ने भारत में कहीं और पैटर्न का पालन किया। इस आंदोलन ने लोगों की कल्पना को विशेष रूप से ताना भगतों को पकड़ा और उनमें से बड़ी संख्या में दिसंबर 1 9 22 में कांग्रेस के गया सत्र कमीशन फैलता है में भाग लिया, जिसका नेतृत्व देशबंधु चितंजनंजन दास ने किया था। ये ताना भगत स्वतंत्रता आंदोलन के संदेश से गहराई से घर लौट आए। बेयरफुटेड वे अपने हाथों में कांग्रेस झंडे के साथ लंबी दूरी पर ट्रेक करते थे और उन्होंने संदेश को जनता में जनता के पास ले जाया। उन्होंने असहयोग कर्मचारियों द्वारा आयोजित बैठकों में भाग लिया।
5 अक्टूबर, 1 9 26 को, स्थानीय आर्य समाज हॉल में श्री राजेंद्र प्रसाद की उपस्थिति में रांची में खादी प्रदर्शनी खोली गई थी। ताना भगत भी इसमें भाग लेते थे। यह 1 9 22 में असहयोग आंदोलन को निलंबित करने के बाद महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए रचनात्मक कार्यक्रम का हिस्सा था। 1 9 27 में साइमन कमीशन का बहिष्कार कीया था । 4 अप्रैल, 1 9 30 को, कमीशन फैलता है रांची के तरुण सिंह (युवा लीग) ने एक आयोजन किया स्थानीय नगरपालिका पार्क में बैठक जिसमें विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों की बड़ी संख्या में छात्रों ने भाग लिया था। नेताओं ने उन्हें नागरिक अवज्ञा आंदोलन में शामिल होने की अपील की।
1857 के बाद मुख्य आयोजन
छोटानागपुर के राजनीतिक क्षितिज में अंग्रेजों का घुसपैठ भी एक महान सामाजिक-आर्थिक क्रांति के साथ सिंक्रनाइज़ किया गया। शुरुआती (मजबूर श्रम) को लागू करने और मध्यस्थों द्वारा किराए पर अवैध वृद्धि के खिलाफ कृषि असंतोष के परिणामस्वरूप सरदार आंदोलन, जिसे सरदार द्वारा प्रदान किए गए उत्तेजना और नेतृत्व के कारण बुलाया गया। 1887 तक आंदोलन बढ़ गया था और कई मुंडा और ओरेन किसानों ने मकान मालिकों को किराए का भुगतान करने से इनकार कर दिया था। सरदार आंदोलन (या लाराई जिसे इसे बुलाया गया था) 1895 में अपनी ऊंचाई पर था जब एक सामाजिक-धार्मिक नेता बिरसा मुंडा नाम पर दिखाई दिए। रांची के सामाजिक इतिहास में उनकी भूमिका का महत्व उन्हें दिए गए बिरसा भगवान के उत्थान से बाहर निकाला जाता है।
बिरसा मुंडा के नेतृत्व में आंदोलन आधा कृषि और आधा धार्मिक था, इसका कृषि अशांति के साथ सीधा संबंध था और यह भी ईसाई विचारों से प्रभावित हुआ। बिरसा मुंडा ईसाई धर्म से कमीशन फैलता है एक धर्मत्यागी थे। उनका शिक्षण आंशिक रूप से आध्यात्मिक, आंशिक रूप से क्रांतिकारी था। उन्होंने घोषणा की कि भूमि उन लोगों से संबंधित है जिन्होंने इसे वनों से पुनः प्राप्त किया था, और इसलिए, इसके लिए कोई किराया नहीं दिया जाना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि वह मसीहा था और उपचार की दिव्य शक्तियों का दावा किया था।
CBSE: यूनिफार्म पर स्कूल का मोनो मतलब हर साल दो करोड़ तक कमीशन का खेल
भोपाल। 20 मार्च से CBSE के स्कूल शुरू हो रहे हैं। दो-तीन स्कूल 15 मार्च से शुरू भी हो गए हैं। अब राजधानी के इन CBSE स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों को यूनिफार्म खरीदनी पड़ेगी। यूनिफार्म पर स्कूल का मोनो होने के कारण अभिभावकों को बाजार से हटकर कुछ ही दुकानों पर ये यूनिफार्म मिलती है। इस कारण अभिभावकों को औसतन 1500 रुपए तक अधिक दाम चुकाने पड़ रहे हैं।
इस हिसाब से देखा जाए तो राजधानी के निजी स्कूलों में पढ़ने वाले करीब डेढ़ लाख बच्चों के अभिभावकों पर हर साल करीब दो करोड़ रुपए का आर्थिक बोझ यह यूनिफार्म खरीदने से पड़ रहा है। यह सब सिर्फ कमीशन के लिए होता है। यूनिफार्म के कमिशन का हिस्सा सीधे स्कूल प्रबंधन को जाता है। लिहाजा प्रबंधन हर साल यूनिफार्म का कलर बदल देता है। इसके अलावा बैग, जूते, कॉपी-किताब पर अलग से कमीशन होता है। यह हालात तब है जब जिला प्रशासन ने स्कूल प्रबंधन को सख्त निर्देश दिए हैं कि कोई भी स्कूल कमीशन फैलता है यूनिफार्म, कॉपी-किताब या बैग पर मोनो लगाकर अपनी ब्रांडिंग न करें।