यह है पूंजी के बिना विदेशी मुद्रा व्यापार कैसे करें

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डॉलर के मुकाबले रुपया नए ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंचा, बड़ी गिरावट
Published: June 30, 2022 9:38 PM IST
मुंबई: विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया तीन पैसे की गिरावट के साथ 79.06 रुपये प्रति डॉलर के नये ऐतिहासिक निचले स्तर पर बंद हुआ. रुपये में लगातार पांचवें कारोबारी सत्र में गिरावट दर्ज हुई है. बाजार सूत्रों ने कहा कि गिरावट का कारण विदेशों में डॉलर का मजबूत होना और विदेशी पूंजी की बाजार से सतत निकासी है. अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में डॉलर के मुकाबले रुपया 78.92 पर खुला. कारोबार के दौरान रुपये ने 78.90 के दिन के उच्चतम स्तर और 79.03 के निचले स्तर को छुआ. अंत में रुपया अपने पिछले बंद भाव के मुकाबले तीन पैसे की गिरावट के साथ 79.06 प्रति डॉलर पर बंद हुआ. रुपये का पिछला बंद भाव 79.03 प्रति डॉलर था.
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सूत्रों ने कहा कि बुधवार को रुपया पहली बार 79 रुपये प्रति डॉलर के मनोवैज्ञानिक यह है पूंजी के बिना विदेशी मुद्रा व्यापार कैसे करें स्तर को पार कर गया था. एचडीएफसी सिक्योरिटीज के शोध विश्लेषक, दिलीप परमार ने कहा, ‘‘पिछले कुछ दिनों के मूल्य उतार-चढ़ाव को देखते हुए हम रुपये के 79.10 के स्तर की ओर बढ़ने से पहले मुनाफावसूली देख सकते हैं.’’ इस बीच, छह प्रमुख मुद्राओं की तुलना में अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.06 प्रतिशत बढ़कर यह है पूंजी के बिना विदेशी मुद्रा व्यापार कैसे करें 105.16 पर पहुंच गया.
वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा का दाम 0.17 प्रतिशत गिरकर 116.06 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया. बीएसई का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स 8.03 अंक की गिरावट के साथ 53,018.94 अंक पर बंद हुआ. मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के विदेशी मुद्रा एवं सर्राफा विश्लेषक, गौरांग सोमैया ने कहा, ‘‘रुपये में कमजोरी मुख्य रूप से अन्य मुद्राओं की तुलना में डॉलर में मजबूती की वजह से थी. अमेरिका के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़े अनुमान की तुलना में थोड़ा कम थे.’’
क्यों भारतीय अर्थव्यवस्था कम दूरी यह है पूंजी के बिना विदेशी मुद्रा व्यापार कैसे करें की रेस तो जीत सकती है, लेकिन माराथन नहीं
प्रज्ञा घोष का चित्रण | ThePrint
एक समय था जब संघर्षरत भारतीय अर्थव्यवस्था के शुभचिंतक प्रेक्षक कहा करते थे कि वे देश के भविष्य को लेकर अल्पकालिक निराशावादी मगर दीर्घकालिक आशावादी हैं. लेकिन आज यह स्थिति अप्रत्याशित रूप से उलट गई है. कई लोग अल्पकालिक आशावादी लेकिन दीर्घकालिक निराशावादी बन गए हैं. आप कह सकते हैं कि अगर हम कई अल्पकालिक बातों पर ध्यान दें तो दीर्घकालिक बातें खुद सुधर जाएंगी. लेकिन इस बात पर गौर करना पड़ेगा.
फिलहाल तो भारतीय अर्थव्यवस्था बेहतर प्रदर्शन करती दिख रही है. एक मुश्किल समय में वह सबसे तेजी से वृद्धि कर रही बड़ी अर्थव्यवस्था है (जैसी कि वह एक बार पहले भी थी), जबकि जापानी और ब्रिटिश अर्थव्यवस्थाएं सिकुड़ रही हैं, जैसी अमेरिकी अर्थव्यवस्था ताजा तिमाही तक थी और यूरो क्षेत्र चपाती की तरह सपाट है.