खास टिप्स

आपको गंभीरता से ट्रेंड को फॉलो कब करना चाहिए?

आपको गंभीरता से ट्रेंड को फॉलो कब करना चाहिए?
पढ़ने के लिए समय निकालना बहुत जरूरी होता है। अगर हम सुबह के समय बग़ैर कुछ पन्ने पढ़े या लिखे कोई और काम करने की तरफ न बढ़ें और आपको गंभीरता से ट्रेंड को फॉलो कब करना चाहिए? इसे रूटीन का हिस्सा बना लें तो काफी हद तक संभव है कि हम अपने पढ़ने-लिखने के लिए एक बेहद उपयोगी और ऊर्जावान समय निकाल सकेंगे। इसके लिए सुबह-सुबह ह्वाट्सऐप और फेसबुक के नोटीफिकेशन चेक करने और उनका रिप्लाई करने की आदत को भी बदलना पड़ेगा।

Cloudburst: बादल कब और कैसे फटता है, क्या है बादल फटने का कारण?

बादल फटने की घटनाएं (Cloudburst) आमतौर पर पहाड़ी क्षेत्रों में देखी जाती है. बादल फटना एक प्राकृतिक घटना है और इसके पीछे के कारण को भी हम समझ नहीं पाते हैं.

By इंडिया रिव्यूज डेस्क Last updated Sep 26, 2022 400 0

cloudburst

केदारनाथ, अमरनाथ में बादल फटने (Cloudburst) की घटना आपने देखी होगी. इसके अलावा भी कई जगह पर बादल फटने से भारी नुकसान होता है. बादल फटने की (Badal Fatna Kya hai?) वजह से आर्थिक नुकसान तो होता ही है साथ ही लोगों की जान भी चली जाती है.

बादल फटने की घटनाएं आमतौर पर पहाड़ी क्षेत्रों में देखी जाती है. बादल फटना एक प्राकृतिक घटना है और इसके पीछे के कारण को भी हम समझ नहीं पाते हैं.

बादल फटना क्या है? (What is Cloudburst?)

बादल फटना यही नाम हम बचपन से अभी तक सुनते आ रहे हैं और इसे सुनकर ऐसा लगता है जैसे मानों बादल का कोई टुकड़ा आकर कहीं एकदम से गिर गया हो. लेकिन ऐसा नहीं है. बादल फटने का मतलब कुछ और होता है.

बादल फटने का मतलब होता है (meaning of cloudburst) अचानक से किसी स्थान पर बहुत तेज बारिश हो जाना. अब तेज का मतलब आपके शहर में होने वाली तेज बारिश नहीं बल्कि उससे भी काफी ज्यादा. इतनी ज्यादा बारिश की एक से दो घंटे में 20 से 30 वर्ग किमी जगह को पूरी डूबा दे.

किसी तेज बारिश को बादल फटना तब माना जाता है जब वो बारिश एक घंटे में 100 MM या उससे ज्यादा हो. किसी स्थान पर 100 MM बारिश के होने का मतलब होता है एक मीटर लंबी और चौड़ी जगह में 100 लीटर पानी का गिरना.

जब इतना पानी कई किमी जगह में एक साथ गिरता है तो आप अंदाजा नहीं लगा सकते कि वहाँ कितना पानी बरसा होगा. अगर एक वर्ग किमी जगह में ही 100 MM वर्षा हो जाए तो वहाँ एक घंटे में 10 करोड़ लीटर पानी बरस जाएगा. अब आप सोचिए कि यदि यही पानी 30 वर्ग किमी में बरसे तो कितना होगा.

बादल कब और कहाँ फटते हैं? (Why does a cloudburst happen?)

बादल फटने की घटना आमतौर पर मानसून के मौसम में देखी गई है. भारत में ये घटना आमतौर पर जुलाई से अक्टूबर-नवंबर तक देखी गई है. बादल फटने की घटना उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में ज्यादा देखने को मिलती है.

साल 2013 में उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में बादल फटने की घटना को सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा में से एक बताया जाता है. इसमें 5000 लोगों की मौत हो जाने की बात कही जाती है.

भारत में बादल फटने की घटना हिमालय के आसपास वाले इलाकों में देखी गई है. यहाँ हिमालय के आसपास ऊंचे क्षेत्रों में बादल ज्यादा फटते हैं.

बादल फटने के कारण? (Reason of Cloudburst)

बादल फटने के कारण को जानने के लिए पहले हम ये जानते हैं कि बारिश कैसे होती है. हम सभी ने स्कूल में पढ़ा है कि समुद्र सूरज की गर्मी से भाप बनाता है जो बादल बनते हैं. ये बादल हवाओं के साथ बहकर जमीन वाले एरिया पर आते हैं.

जब ये धरती पर आते हैं तो हम कहते हैं कि मानसून आ गया. गर्मी के कारण बादल हल्के होते हैं लेकिन जब ये धरती पर आते हैं और ठंडे होते हैं तो ये बादल बूंदों में बदलने लगते हैं, इसे ही बारिश कहते हैं.

दूसरी ओर भारत में जो मानसून आता है वो दक्षिण राज्यों से आता है. मानसून के रूप में ये बादल हिमालय तक जाते हैं और वहाँ इकट्ठा हो जाते है क्योंकि हिमालय काफी ऊंचा क्षेत्र है. ये बादल हिमालय से टकराकर भारी मात्रा में एक जगह पर जमा हो जाते हैं. इसमें एक समय ऐसा आता है जब ये किसी इलाके पर मंडराते हुए किसी पानी से भरी थैली की तरह फट जाते हैं.

इस घटना को ही ‘बादल का फटना’ कहते हैं.

तेज बारिश और बादल फटने में क्या अंतर है? (Difference between cloudburst & heavy rain?)

तेज बारिश और बादल फटने में जमीन आसमान का अंतर है. तेज बारिश का मतलब ये हो सकता है कि किसी स्थान पर बहुत ज्यादा पानी गिरा हो. लेकिन वो बारिश कितने घंटे में हुई और आपको गंभीरता से ट्रेंड को फॉलो कब करना चाहिए? कितना पानी गिर इस पर निर्भर होती है. तेज बारिश में एक दम से 100 MM बरसात नहीं होती है.

बादल फटने का मतलब होता है कि एकदम से बहुत तेज आपको गंभीरता से ट्रेंड को फॉलो कब करना चाहिए? पानी गिर जाना. जैसे ऊपर से किसी ने एकदम से बहुत सारा पानी छोड़ दिया हो, जो आपके या किसी के भी नियंत्रण से बाहर हो. आमतौर पर 100 MM से ज्यादा बारिश को बादल फटने की श्रेणी में माना जाता है.

बादल फटने की प्रमुख घटनाएं (Important Cloudburst Accident in India)

भारत में बादल फटने की घटना कई बार हो चुकी हैं. इनमें से प्रमुख घटनाएं हैं.

– 28 सितंबर 1908 को बादल फटने के कारण मुसी नदी पर बाढ़ आ गई थी, जिस वजह से करीब 15 हजार लोग मारे गए थे.

– 15 अगस्त 1997 को हिमाचल प्रदेश के शिमला के चिरगाव में बादल फटने से 115 लोगों की मौत हुई थी.

– 17 अगस्त 1998 को मालपा गाँव में बादल फटने और भूस्खलन की वजह से 250 लोगों की मौत हुई थी.

– 6 जुलाई 2004 को बद्रीनाथ में बादल फटने से 17 लोग मारे गए थे.

– 16 अगस्त 2007 को हिमाचल प्रदेश के घनवी में बादल फटने के कारण 52 लोगों की मौत हुई थी.

– 6 अगस्त 2010 को जम्मू कश्मीर के लेह में बादल फटने के कारण 179 लोगों की मृत्यु हुई थी.

– सितंबर 2010 में उत्तराखंड के अल्मोड़ा में बादल फटने से दो गाँव डूब गए थे, जिसमें काफी कम लोग ही बच पाए थे.

– जून 2013 को उत्तराखंड के केदारनाथ में बादल फटने से भीषण त्रासदी हुई थी. इसमें करीब 5 हजार लोगों की मौत हुई थी.

– जुलाई 2022 में ही अमरनाथ गुफा के पास बादल फटने से कई लोगों को मौत हो गई थी.

बादल फटना एक प्राकृतिक घटना है लेकिन इसका असर सभी पर होता है. ये एक ऐसी घटना है जो सभी के नियंत्रण से बाहर है. कभी-कभी लोगों के लिए इसके प्रकोप से बच पाना भी नामुमकिन हो जाता है.

क्या अत्यधिक सकारात्मकता हानिकारक है - विषाक्त सकारात्मकता

क्या अत्यधिक सकारात्मकता हानिकारक है - विषाक्त सकारात्मकता.jpg

जीवन में सकारात्मक होना अच्छा ही नहीं, बल्कि जरूरी भी है । मुश्किल घड़ियों में सकारात्मकता की छोटी सी किरण आपके हौसले को वापस जिंदा कर सकती है। लेकिन इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि सुख और दुख जीवन की अभिन्न अंग है। कई बार दुख व्यक्त करना बहुत आवश्यक होता है। ऐसे में भी हर वक्त केवल सकारात्मकता की बात करना अच्छे से अधिक नुकसानदेह साबित हो जाता है।

क्या है विषाक्त सकारात्मकता?

आवश्यकता से अधिक सकारात्मकता विषाक्त सकारात्मकता है। ऐसे वक्त आते हैं, जहां आप अपनी समस्याओं के बारे में बात करना चाहते हैं, उन्हें व्यक्त करना चाहते हैं लेकिन हर पल सकारात्मक रहने का विचार आपको ऐसा करने नहीं देता। आपने तय कर लिया होता है, कि आप बुरी चीजों के बारे में ना तो सोचेंगे, ना तो बात करेंगे। इससे आपके मन का दुख आपके मन के अंदर ही दब जाता है । आप बाहर से तो यह दिखाते हैं कि सब कुछ ठीक है, लेकिन दबी हुई भावनाएं आपको अंदर ही अंदर परेशान करती रहती हैं। यही है विषाक्त सकारात्मकता।

एक और पहलू पर गौर करें। आजकल सकारात्मकता ट्रेंड सा बन गया है। हम हमेशा अच्छी बातें करने एवं अच्छा सोचने के लिए कहते हैं, बिना यह जाने कि सामने वाला व्यक्ति किन परिस्थितियों से जूझ रहा है। इससे दूसरों तक संदेश जाता है कि आपको गंभीरता से ट्रेंड को फॉलो कब करना चाहिए? आप आपको गंभीरता से ट्रेंड को फॉलो कब करना चाहिए? केवल अच्छी बातें सुनना चाहते हैं, उनकी समस्याओं को नहीं। परिणामस्वरूप व्यक्ति अपनी समस्याओं को आपके साथ साझा नहीं कर पाता है। आपकी सकारात्मकता दूसरों के लिए विष बन जाती है।

तो दोस्तों, सकारात्मकता और विषाक्त सकारात्मकता के बीच के अंतर को समझें। जीवन में बुरी बातों को भी साथ देना पड़ता है। सकारात्मक होने की दौड़ में कब आप टॉक्सिक पॉजिटिविटी के शिकार हो जाते हैं, आपको पता भी नहीं चलता। अतः सतर्क रहें।

अपने पढ़ने की आदत का विकास कैसे करें?

उत्तर प्रदेश में ‘स्कूल रेडिनेस’ कार्यक्रम के फ़ायदे क्या हैं?

आज़ादी के 75 साल: ‘नामांकन की प्रगति को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के माध्यम से सफल बनाने की है जरूरत’

समझकर पढ़ने और मौखिक अभिव्यक्ति कौशल को बेहतर बनाता ‘पठन अभियान’

सर्वे पर आधारित लेख: आपको गंभीरता से ट्रेंड को फॉलो कब करना चाहिए? कोविड-19 के दौर में ऑनलाइन पढ़ाई की ज़मीनी वास्तविकता क्या थी?

शिक्षा के क्षेत्र में नये वर्ष 2022 की चुनौतियां और संभावनाएं क्या हैं?

youth-leadership-event-in-churu

हम अक्सर बच्चों में पढ़ने की आदत आपको गंभीरता से ट्रेंड को फॉलो कब करना चाहिए? का विकास करने के बारे में सुनते हैं। इस बारे में चर्चा भी होती है। लेकिन क्या आपने कभी इस बात पर ग़ौर किया है कि जबतक माता-पिता, अभिभावक, शिक्षक खुद अपने पढ़ने की आदत का विकास नहीं करते, बच्चों को केवल कहने उनमें पढ़ने की ललक का विकास नहीं होगा। इस बात ने इस मुद्दे पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि बड़ों में पढ़ने की आदत का वर्तमान ट्रेंड क्या है और कौन-कौन से कारण हैं जिसके कारण वे पढ़ने की आदत डालने में परेशानी महसूस करते हैं। बड़े चाहते हैं कि बच्चे पढ़ें, लेकिन वे खुद बच्चों को पढ़ते हुए नज़र नहीं आते। ऐसे में बच्चों पर उनकी कही हुई बातों का भी बहुत ज्यादा असर नहीं होता है।

बतौर पाठक अपना खुद का मूल्यांकन करने के लिए आप सोच सकते हैं कि पिछले एक साल में आपने कितनी किताबें पढ़ीं? कितनी किताबों का चुनाव आपने स्वेच्छा से अपनी रूचि के अनुसार आपको गंभीरता से ट्रेंड को फॉलो कब करना चाहिए? किया? कितनी किताबों को आपके मन में पढ़ने की इच्छा हुई, लेकिन आपने उस किताब को खरीदना या किसी दोस्त से लेना आगे के लिए टाल दिया। कई बार ऐसा भी होता है कि पुस्तक मेले या पियर प्रेसर में आप कई किताबें खरीद लाते हैं, लेकिन फिर वे किताबें पड़ी-पड़ी धूल फांकती हैं या फिर आलमारी की शोभा बढ़ाती हैं। उनसे बतौर सक्रिय पाठक आपकी मुलाकात नहीं होती है। पढ़ने के लिए एक प्रेरणा और मोबाइल फोन व अन्य संचार-मनोरंजन के व्यवधान से आजादी चाहिए होती है, क्योंकि ये चीज़ें आपका ध्यान पढ़ने से हटा लेती हैं। फिर पढ़ने का प्रवाह टूट जाता है और दोबारा उस किताब की तरफ बड़ी मुश्किल से लौटना होता है।

पढ़ने की मेहनत करने का संकल्प करें

अगर आप कोई किताब पढ़ रहे हैं तो कई बार ऐसा होता है कि आपके साथी कहते हैं कि इस किताब में क्या है? पढ़ने के बाद मेरे साथ शेयर कर दीजिएगा। दूसरा तरीका कि जदो किताब आप पढ़ रहे हैं, उसके ऊपर पीपीटी बना दीजिएगा ताकि बाकी लोगों को भी किताब पढ़ने का लाभ मिल सके। तीसरा तरीका किताब पढ़ने की क्या जरूरत है, मेरे साथ के लोग तो मुझे किताब पढ़कर बता ही देते हैं कि किताब में मुख्य-मुख्य बात क्या कही गई है। टेक्नोलॉजी का भी इस्तेमाल खूब होता है जैसे किताब की समीक्षा गूगल सर्च करो और पढ़ लो।

अगर किताब के ऊपर कोई वीडियो है तो यू-ट्यूब पर सर्च करो और देख लो। किताब तो बाद में पढ़ी जाएगी। यह तरीके आपको गंभीरता से ट्रेंड को फॉलो कब करना चाहिए? कुछ हद तक मदद करते हैं। लेकिन बतौर पाठक किसी किताब को पढ़ने से जो आपकी समझ में बढ़ोत्तरी होती है। शब्द भण्डार संपन्न होता है। आप अपने अनुभवों के लिए शब्द खोज पाते हैं। उदाहरण बनाने और तर्क देने की क्षमता का जो विकास करते हैं, वह केवल दूसरों पर निर्भरता से हासिल नहीं होगा। तो पढ़ने से बचने वाली आदत के कारण खुद से पढ़ने की आदत का विकास बड़ों में नहीं हो पाता है। हालांकि वे सैद्धांतिक तौर पर इस बात को स्वीकार तो करते हैं और कहते भी हैं कि पढ़ना बहुत जरूरी है।

पढ़ने का चस्काः बच्चे और बड़े

बड़ों को पढ़ने का चस्का लगाना, बच्चों से ज्यादा मुश्किल काम है। व्यावहारिक अनुभव तो इस तरफ संकेत करते हैं। हालांकि रीडिंग रिसर्च इस बारे में क्या कहती है, यह अध्ययन करने व खोजने का एक अच्छा टॉपिक है। मैंने ऐसी टीम के साथ काम किया जो बच्चों में पढ़ने की आदत विकसित हो इस लक्ष्य के साथ काम कर रही थी, लेकिन वह टीम खुद किताबों को पढ़ने में बहुत कम भरोसा करती थी। किसी पठन गतिविधि को करते समय उनका पूरा ध्यान प्रक्रिया और स्टेप को फॉलो करने में लगा रहता, ऐसे में कहानी का मजा किरकिरा हो जाता था। टीम के पढ़ने की आदत का विकास हो, इस दिशा में विरले ही टीम लीडर काम करते हैं। लेकिन इस दिशा में काम करने के सकारात्मक परिणाम होते हैं, इस बात से शायद ही कोई इनकार करेगा।

book-reading

पढ़ने के लिए समय निकालना बहुत जरूरी होता है। अगर हम सुबह के समय बग़ैर कुछ पन्ने पढ़े या लिखे कोई और काम करने की तरफ न बढ़ें और इसे रूटीन का हिस्सा बना लें तो काफी हद तक संभव है कि हम अपने पढ़ने-लिखने के लिए एक बेहद उपयोगी और ऊर्जावान समय निकाल सकेंगे। इसके लिए सुबह-सुबह ह्वाट्सऐप और फेसबुक के नोटीफिकेशन चेक करने और उनका रिप्लाई करने की आदत को भी बदलना पड़ेगा।

क्योंकि रूटीन की इस आदत के कारण हमारा काफी सारा समय यहां सप्लाई होने वाले ऐसे मैसेज को पढ़ने और अनुपयोगी तस्वीरों व वीडियो को डिलीट करने में चला जाता है। इस समय का अच्छा इस्तेमाल जरूरी है। दिनभर स्क्रीन पर होने का हमारे ऊपर असर पड़ता है। इसलिए जरूरी है कि हम कुछ समय स्क्रीन से इतर किसी किताब को पढ़ने। किसी किताब के ऊपर अपने मन में आने वाले विचारों को पेन-पेपर की मदद से लिखने की कोशिश करें, यह हमारे मन को एक सकारात्मक ऊर्जा से भरेगी और विचारों के बाधित प्रवाह को फिर से आगे बढ़ने का रास्ता देगी।

सुरक्षित प्रसव पर ध्यान देना जरूरी

सुरक्षित प्रसव पर ध्यान देना जरूरी

तमाम अभियानों के बावजूद भारत में मातृत्व एवं शिशु स्वास्थ्य की स्थिति में बहुत सुधार नहीं हो रहा है। कुपोषण के अलावा नवजात शिशु की मृत्यु-दर के आंकड़े भी डराते हैं। इस महीने दिल्ली में हो रहे ग्लोबल पार्टनर्स फोरम 2018 का मेजबान भारत है। ऐसे में जरूरी है कि इस पहलू पर गंभीरता से विचार किया जाए।

सुरक्षित प्रसव पर ध्यान देना जरूरी

तमाम अभियानों के बावजूद भारत में मातृत्व एवं शिशु स्वास्थ्य की स्थिति में बहुत सुधार नहीं हो रहा है। कुपोषण के अलावा नवजात शिशु की मृत्यु-दर के आंकड़े भी डराते हैं। इस महीने दिल्ली में हो रहे ग्लोबल पार्टनर्स फोरम 2018 का मेजबान भारत है। ऐसे में जरूरी है कि इस पहलू पर गंभीरता से विचार किया जाए।

आजादी के कई दशकों बाद भी देश में स्त्रियों और बच्चों की स्थिति को लेकर आशाजनक $खबरें नहीं सुनने को मिलतीं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों से पता चलता है कि मातृत्व एवं बाल स्वास्थ्य की स्थिति में बहुत सुधार नहीं आया है। खासतौर पर उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में स्थिति जयादा बुरी है।

स्त्रियों और बच्चों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने की दिशा में बने ग्लोबल पार्टनर्स फोरम 2018 का आयोजन इस महीने दिल्ली में किया जा रहा है। इस फोरम में 1200 पार्टनर देश हैं, जो इस मुहिम में साथ खड़े हैं। इस बार फोरम की मेहमानवानी भारत सरकार ने निभाई है। ऐसे में जरूरी है कि स्त्री स्वास्थ्य के कुछ अनदेखे-अनछुए पहलुओं पर भी बात की जाए और विचार किया जाए कि इतनी कोशिशों के बावजूद अपेक्षित नतीजे क्यों नहीं मिल रहे हैं।

ऐसे ही कुछ आपको गंभीरता से ट्रेंड को फॉलो कब करना चाहिए? अहम सवालों को लेकर भारत में यूनिसेफ प्रतिनिधि डॉ. यासमीन अलीहक से हुई एक बातचीत।

भारत में वे कौन से स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे हैं, जिन पर तुरंत ध्यान दिए जाने की जरूरत है?

पिछले कुछ वर्षों में अंडर-5 आयु वर्ग के बच्चों की सेहत में तेजी से सुधार आया है लेकिन हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती नवजात की मृत्यु दर है। इस दिशा में जो बाधाएं आ रही हैं, उनका निदान करना हमारी प्राथमिकता है। क्या लेबर रूम में स्त्रियों के साथ सही बर्ताव किया जा रहा है? क्या वहां स्वच्छता के नियमों का पालन हो रहा है? क्या वहां पर्याप्त प्राइवेसी होती है? वहां का स्टाफ कैसा है और क्या वे सही ढंग से ट्रेंड हैं. इन सभी सवालों के सही जवाब तलाशना भी हमारा मकसद है।

किस तरह की चुनौतियां आ रही हैं?

सबसे पहले तो कुपोषण के बिंदु पर तेजी से काम करना चाहिए। गर्भवती के स्वास्थ्य और खानपान के अलावा प्रसव क्रिया को सुरक्षित करना एक चुनौती है। स्वस्थ बच्चे का जन्म तभी संभव है, जब गर्भावस्था में मां को उचित पोषण मिले। इसके अलावा बच्चे का सुरक्षित जीवन भी महत्वपूर्ण है, खासतौर पर तीन वर्ष की आयु तक। मां और नवजात के स्वास्थ्य की दिशा में का$फी कुछ किया जाना बा$की है। उन्हें किसी भी तरह की जटिलता से बचाने के लिए चिकित्सालयों में पर्याप्त मेडिकल उपकरण भी चाहिए।

पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री स्वास्थ्य को कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है?

स्त्री स्वास्थ्य बहुत हद तक परिवार, समाज और स्वास्थ्य सुविधाओं पर निर्भर करता है। पिछले कुछ वर्षों से लोगों की मानसिकता बदली है। गांव-देहात में स्त्रियां गर्भावस्था के दौरान नियमित चेकअप करवाती हैं। अब घर में प्रसव कराने के बजाय लोग अस्पताल जा रहे हैं। प्राथमिक चिकित्सालयों की दशा सुधरी है। वहां प्रशिक्षित मिडवाइफ और नर्स हैं। जयादातर जगहों में गर्भवती को अस्पताल ले जाने और घर लाने के लिए ट्रांस्पोर्ट सुविधा मौजूद है। केरल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के उदाहरण सामने हैं। अन्य राज्यों को भी उनका अनुसरण करना चाहिए।

प्रेग्नेंसी के दौरान मृत्यु दर को कैसे कम किया जा सकता है?

कोई भी यह नहीं बता सकता कि गर्भवती को कब और कैसी जटिलता का सामना करना पड़ सकता है लेकिन इस बारे में लोगों को जागरूक किया जा सकता है ताकि नियमित चेकअप के जरिये गर्भावस्था में आने वाली जटिलताओं को पहचाना जा सके और उसके हिसाब से तुरंत इलाज की प्रक्रिया शुरू हो सके। इंस्टीट्यूशनल डिलिवरी को बढ़ावा देने से प्रसूता की देखभाल में इजाफा हुआ है। ग्रामीण क्षेत्रों में आशा जैसे हेल्थ वर्कर्स ने भी स्त्रियों के बीच भरोसा जगाया है। दरअसल इस बारे में पूरे सिस्टम को मजबूत बनाने की आवश्यकता है। परिवारों की सोच बदलने के साथ ही हेल्थ केयर संसाधनों की उपलब्धता पर भी ध्यान देना होगा।

यूनिसेफ का इस दिशा में क्या योगदान हैै?

पहली चीज है, लोगों का जागरूक होना। इसलिए डब्लूएचओ के साथ आपको गंभीरता से ट्रेंड को फॉलो कब करना चाहिए? मिल कर यूनिसेफ लोगों के बीच जागरूकता फैलाने की कोशिश में जुटा है। हम सरकार के साथ मिल कर केयर मॉडल को स्ट्रॉन्ग बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। फिर चाहे बात मेनपॉवर ट्रेनिंग, लेआउट या इक्विपमेंट्स की हो. हर दिशा में काम किया जा रहा है। अगले चरण में हम बाल विवाह को लेकर भी काम शुरू करना चाहते हैं।

रेटिंग: 4.17
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 796
उत्तर छोड़ दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा| अपेक्षित स्थानों को रेखांकित कर दिया गया है *