विश्व बाजार शुल्क और सीमा

(ए) एक सीमा शुल्क संघ को दो या दो से अधिक सीमा शुल्क क्षेत्रों के लिए एक एकल सीमा शुल्क क्षेत्र के प्रतिस्थापन के रूप में समझा जाएगा, ताकि (i) वाणिज्य के कर्तव्यों और अन्य प्रतिबंधात्मक विनियमों (जहां आवश्यक हो, को छोड़कर, जिन्हें अनुच्छेद XI, XII, XIII, XIV, XV और XX के तहत अनुमति दी गई है) को संघ के घटक क्षेत्रों के बीच या पर सभी व्यापार के संबंध में समाप्त कर दिया गया है। कम से कम ऐसे क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाले उत्पादों के सभी व्यापार के संबंध में, और, (ii) अनुच्छेद ९ के प्रावधानों के अधीन, संघ के प्रत्येक सदस्य द्वारा संघ में शामिल नहीं किए गए क्षेत्रों के व्यापार के लिए समान रूप से समान कर्तव्यों और वाणिज्य के अन्य नियम लागू होते हैं;
सीमा शुल्क संघ
सीमा शुल्क संघों को व्यापार समझौतों के माध्यम से स्थापित किया जाता है जहां भागीदार देश सामान्य बाहरी व्यापार नीति स्थापित करते हैं (कुछ मामलों में वे अलग-अलग आयात कोटा का उपयोग करते हैं )। प्रतिस्पर्धा की कमी से बचने के लिए सामान्य प्रतिस्पर्धा नीति भी सहायक होती है । [2]
सीमा शुल्क संघ की स्थापना के उद्देश्यों में आम तौर पर आर्थिक दक्षता बढ़ाना और सदस्य देशों के बीच घनिष्ठ राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंध स्थापित करना शामिल है। यह आर्थिक एकीकरण का तीसरा चरण है ।
शुल्क तथा व्यापार पर सामान्य करार , के हिस्से के विश्व व्यापार संगठन ढांचे निम्नलिखित तरीके से एक सीमा शुल्क संघ परिभाषित करता है: [1]
(ए) एक सीमा शुल्क संघ को दो या दो से अधिक सीमा शुल्क क्षेत्रों के लिए एक एकल सीमा शुल्क क्षेत्र के प्रतिस्थापन के रूप में समझा जाएगा, ताकि
(i) वाणिज्य के कर्तव्यों और अन्य प्रतिबंधात्मक विनियमों (जहां आवश्यक हो, को छोड़कर, जिन्हें अनुच्छेद XI, XII, XIII, XIV, XV और XX के तहत अनुमति दी गई है) को संघ के घटक क्षेत्रों के बीच या पर सभी व्यापार के संबंध में समाप्त कर दिया गया है। कम से कम ऐसे क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाले उत्पादों के सभी व्यापार के संबंध में, और,
(ii) अनुच्छेद ९ के प्रावधानों के अधीन, संघ के प्रत्येक सदस्य द्वारा संघ में शामिल नहीं किए गए क्षेत्रों के व्यापार के लिए समान रूप से समान कर्तव्यों और वाणिज्य के अन्य नियम लागू होते हैं;
जर्मन सीमा शुल्क संघ, ज़ोलवेरिन , जो विश्व बाजार शुल्क और सीमा 1834 में स्थापित किया गया था, और धीरे-धीरे विकसित और विस्तारित हुआ, एक सीमा शुल्क संघ संगठन था जो पहले दिखाई दिया और उस समय जर्मन आर्थिक विकास और राजनीतिक एकीकरण को बढ़ावा देने में भूमिका निभाई। 1870 के दशक में एकीकृत जर्मन साम्राज्य की स्थापना से पहले, जर्मन राज्यों के बीच और भीतर चौकियां थीं, जो उद्योग और वाणिज्य के विकास में बाधा थीं। 1818 में, प्रशिया ने मुख्य विश्व बाजार शुल्क और सीमा भूमि में सीमा शुल्क को समाप्त करने का बीड़ा उठाया; इसके बाद १८२६ में उत्तरी जर्मन सीमा शुल्क संघ की स्थापना हुई। दो साल बाद, चीन और दक्षिण जर्मनी के राज्यों में दो सीमा शुल्क संघ स्थापित किए गए। [३]
1834 में, 18 राज्यों ने एक साथ जर्मन सीमा शुल्क संघ बनाने के लिए प्रशिया को मुख्य नेता के रूप में शामिल किया। इसके बाद, इस गठबंधन को सभी जर्मन-भाषी क्षेत्रों में विस्तारित किया गया [ उद्धरण वांछित ] और ऑल-जर्मन कस्टम्स यूनियन बन गया। गठबंधन सम्मेलन की सामग्री में शामिल हैं: आंतरिक शुल्कों को समाप्त करना, बाहरी शुल्कों को एकीकृत करना, आयात कर दरों को बढ़ाना, और गठबंधन में सभी राज्यों को टैरिफ आय को अनुपात में आवंटित करना। इसके अलावा, फ्रांस और मोनाको के बीच एक सीमा शुल्क संघ है, जिसे 1865 में स्थापित किया गया था।
1924 में स्विट्जरलैंड और लिकटेंस्टीन द्वारा, 1948 में बेल्जियम, नीदरलैंड और लक्जमबर्ग द्वारा , 1958 में यूरोपीय आर्थिक समुदाय के देशों द्वारा और 1964 में मध्य अफ्रीकी राज्यों के आर्थिक समुदाय द्वारा एक सीमा शुल्क संघ की विश्व बाजार शुल्क और सीमा स्थापना की गई थी । उस समय, यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ से अलग था यूरोपीय आर्थिक समुदाय सीमा शुल्क संघ । पूर्व के भीतर मुक्त व्यापार औद्योगिक उत्पादों तक सीमित था, और संघ के बाहर के देशों पर कोई समान शुल्क नहीं लगाया गया था। [४] [५]
सीमा शुल्क संघ की मुख्य विशेषता यह है कि सदस्य देशों ने न केवल व्यापार बाधाओं को समाप्त कर दिया है और मुक्त व्यापार को लागू किया है , बल्कि एक सामान्य बाहरी टैरिफ भी स्थापित किया है। दूसरे शब्दों में, एक-दूसरे की व्यापार बाधाओं को खत्म करने के लिए सहमत होने के अलावा, सीमा शुल्क संघ के सदस्य सामान्य बाहरी टैरिफ और व्यापार नीतियों को भी अपनाते हैं। [६] गैट का कहना है कि यदि सीमा शुल्क संघ तुरंत स्थापित नहीं होता है, लेकिन धीरे-धीरे समय की अवधि में पूरा हो जाता है, तो इसे एक उचित अवधि के भीतर पूरा किया जाना चाहिए, जो आम तौर पर १० वर्षों से अधिक नहीं होता है। [३]
सीमा शुल्क संघ के विशेष सुरक्षा उपायों में मुख्य रूप से निम्नलिखित शामिल हैं: [7]
- टैरिफ कम करें जब तक कि संघ के भीतर टैरिफ रद्द नहीं हो जाते। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, गठबंधन अक्सर यह निर्धारित करता है कि सदस्य देशों को अपनी वर्तमान बाहरी टैरिफ दरों से एक निश्चित अवधि के भीतर चरणों में गठबंधन द्वारा निर्धारित एकीकृत टैरिफ दरों में संक्रमण करना चाहिए, जब तक कि अंततः टैरिफ को रद्द नहीं कर दिया जाता।
- एक एकीकृत विदेश व्यापार नीति और विदेशी टैरिफ दरें तैयार करना। विदेशी मामलों के संदर्भ में, संबद्ध सदस्यों को निर्धारित समय के भीतर अपनी मूल विदेशी टैरिफ दरों में वृद्धि या कमी करनी चाहिए, और अंततः एक सामान्य बाहरी टैरिफ दर स्थापित करनी चाहिए; और धीरे-धीरे अपनी विदेश व्यापार नीतियों को एकीकृत करते हैं, जैसे कि विदेशी भेदभाव नीतियां और आयात मात्रा।
- गठबंधन के बाहर से आयात किए गए सामानों के लिए, आम अलग-अलग टैरिफ लगाए जाते हैं, जैसे कि तरजीही कर दरें, सहमत राष्ट्रीय कर दरें, सबसे पसंदीदा राष्ट्र कर दरें, सामान्य अधिमान्य कर दरें, और सामान्य कर दरें, वस्तुओं के प्रकार के विश्व बाजार शुल्क और सीमा अनुसार और प्रदाता देश।
- एकीकृत सुरक्षात्मक उपाय तैयार करें, जैसे आयात कोटा , स्वास्थ्य और महामारी रोकथाम मानकों, आदि। [8]
- यह इस समस्या से बचा जाता है कि मुक्त व्यापार क्षेत्र को वस्तुओं के सामान्य प्रवाह को बनाए रखने के लिए उत्पत्ति के सिद्धांत के पूरक की आवश्यकता होती है। यहां उत्पत्ति के सिद्धांत के स्थान पर एक सामान्य 'विदेशी अवरोध' बनाया गया है। इस अर्थ में, सीमा शुल्क संघ मुक्त व्यापार क्षेत्र की तुलना में अधिक विशिष्ट है। [९]
- यह सदस्य देशों की 'राष्ट्रीय संप्रभुता' को अधिक हद तक आर्थिक एकीकरण संगठन में स्थानांतरित करने के लिए बनाता है , ताकि एक बार कोई देश एक सीमा शुल्क संघ में शामिल हो जाए, तो वह स्वायत्त टैरिफ का अपना अधिकार खो देता है । वास्तव में, अधिक विशिष्ट सीमा शुल्क संघ 1958 में स्थापित यूरोपीय आर्थिक समुदाय है।
सीमा शुल्क संघ यूरोप में शुरू हुआ और आर्थिक एकीकरण के संगठनात्मक रूपों में से एक है । सीमा शुल्क संघ के दो आर्थिक प्रभाव, स्थिर प्रभाव और गतिशील प्रभाव हैं।
व्यापार निर्माण प्रभाव और व्यापार मोड़ प्रभाव हैं। व्यापार निर्माण प्रभाव घरेलू उत्पादन से उच्च उत्पादन लागत वाले उत्पादों द्वारा उत्पन्न लाभों को कम लागत वाले सीमा शुल्क संघ देशों के उत्पादन के लिए संदर्भित करता है। व्यापार मोड़ प्रभाव उस नुकसान को संदर्भित करता है जब किसी उत्पाद को गैर-सदस्य देश से कम उत्पादन लागत वाले सदस्य देश में उच्च लागत के साथ आयात किया जाता है। यह सीमा शुल्क संघ में शामिल होने की कीमत है। जब व्यापार निर्माण प्रभाव हस्तांतरण प्रभाव से अधिक होता है, तो सदस्य देशों पर सीमा शुल्क संघ में शामिल होने का संयुक्त प्रभाव शुद्ध लाभ होता है, जिसका अर्थ है सदस्य देशों के आर्थिक कल्याण स्तर में वृद्धि; अन्यथा, यह एक शुद्ध नुकसान और आर्थिक कल्याण स्तर में गिरावट है।
व्यापार निर्माण प्रभाव को आमतौर पर सकारात्मक प्रभाव के रूप में माना जाता है। इसका कारण यह है कि देश ए की घरेलू उत्पादन लागत देश ए की देश बी से आयात की उत्पादन लागत से अधिक है। सीमा शुल्क संघ ने देश ए को कुछ वस्तुओं का घरेलू उत्पादन छोड़ दिया और इन वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए इसे देश बी में बदल दिया। . विश्वव्यापी दृष्टिकोण से, इस प्रकार के उत्पादन रूपांतरण से संसाधन आवंटन की दक्षता में सुधार होता है । [10]
सीमा शुल्क संघ न केवल सदस्य राज्यों के लिए स्थिर प्रभाव लाएगा, बल्कि उनके लिए कुछ गतिशील प्रभाव भी लाएगा। कभी-कभी, यह गतिशील प्रभाव अपने स्थिर प्रभाव से अधिक महत्वपूर्ण होता है, जिसका सदस्य देशों के आर्थिक विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। [10]
ई-कॉमर्स कारोबार पर सीमा शुल्क से छूट की समीक्षा करने की जरूरत: भारत
जिनेवा, 15 जून (भाषा) भारत ने बुधवार को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सदस्य देशों से ई-कॉमर्स कारोबार पर सीमा शुल्क में छूट पर रोक को जारी रखने की समीक्षा तथा उसपर पुनर्विचार करने का आह्वान किया। भारत ने कहा कि यह विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाला मुद्दा है।
डब्ल्यूटीओ के 12वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के दौरान ई-कॉमर्स पर सत्र को संबोधित करते हुए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि विकासशील देशों में ‘इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन’ में व्यापार चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। इसका कारण विकसित और विकासशील देशों के बीच व्यापक स्तर पर डिजिटल अंतर का होना है।
एक अनुमान के अनुसार, 95 में से 86 विकासशील देश डिजिटल उत्पादों के शुद्ध आयातक हैं और केवल पांच बड़ी प्राद्योगिकी कंपनियां बाजार को नियंत्रित कर रही हैं।
उन्होंने कहा कि कपड़ा, हथकरघा जैसे भौतिक उत्पादों के छोटे निर्यातकों को घरेलू कर के अलावा सीमा शुल्क भी देना होता है। और इस प्रकार के उद्योग मुख्य रूप से विकासशील विश्व बाजार शुल्क और सीमा देशों में हैं। वहीं दूसरी तरफ बड़े डिजिटल निर्यातकों को सीमा शुल्क से छूट मिली हुई है।
गोयल ने कहा, ‘‘यह वास्तव में घरेलू विनिर्माण क्षमता को प्रभावित करेगा…इससे वास्तव में वे प्रतिस्पर्धी नहीं रह पाएंगी। मुझे लगता है कि 24 साल से जारी इस रोक की समीक्षा करने और इसपर फिर से विचार करने की जरूरत है।’’
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.
विश्व बाजार शुल्क और सीमा
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झारखण्ड माध्यमिक बोर्ड परीक्षा (सामाजिक विज्ञान)
महामंदी के तीन कारणों की व्याख .
Solution : आर्थिक महामंदी का अर्थ किसी देश की ऐसी आर्थिक दशा से है जब उत्पादन में भारी वृद्धि, लोगों की क्रयशक्ति में तीव्र गिरावट और मुद्रा के वास्तविक मूल्य में कमी आ जाय। ऐसी आर्थिक महामंदी में अमेरिका में आई थी और इसने समस्त विश्व बाजार शुल्क और सीमा विश्व को ग्रास बना लिया, जिसके कारण इसे महामंदी कहा जाता है।
(i) युद्ध द्वारा उत्पन्न स्थितियाँ - प्रथम युद्ध काम में सेना से सम्बंधित वस्तुओं की मांग में वृद्धि के कारण भारी औद्योगिक प्रसार किए गए। युद्ध के बाढ़ उद्योग अपनी सामान्द्य स्थिति में आ गए। सैनिक व युद्ध सम्बन्धी माल की मांग में तीव्र कमी के कारण आर्थिक महामंदी का जन्म हुआ।
(ii) कृषि में अधिक उत्पादन - 1929 की आर्थिक मंडी का कृषि क्षेत्रों तथा समुदायों पर बहुत बुरा असर पड़ा, क्योंकि औद्योगिक उत्पादों की तुलना में खेतिहर उत्पादों की कीमतों में भारी कमी आई और ज्यादा समय तक कमी विश्व बाजार शुल्क और सीमा बानी रही। उत्पादन लागत की तुलना में कीमते घट गयी।
(iii) ऋण की कमी - 1920 के दशक के मध्य में बहुत से देशों ने अमेरिका से ऋण लेकर अपनी निवेश सम्बन्धी जरूरतों विश्व बाजार शुल्क और सीमा को पूरा किया था। जब स्थिति ठीक थी तो अमेरिका से ऋण जुटाना सरल था लेकिन संकट का संकेत मिलते ही अमेरिका उद्यमियों में खलबली मच गई। 1928 के पूर्वार्द्ध तक विदेशों में अमेरिका का ऋण एक अरब डॉलर था। जो देश अमेरिकी ऋण पर सबसे ज्यादा निर्भर थे, उनके सामने गहरा संकट आ खड़ा हुआ।
(iv) अनेकविध प्रभाव - बाजार से ऋणदाताओं के उठ जाने से अनेकविध प्रभाव सामने आए। यूरोप में कई बड़े बैंक धराशायी हो गए , मुद्रा लुढ़क गई और ब्रिटिश पौंड पाउन्ड भी इस झटके से नहीं बच स्का। लैटिन अमेरिका और अन्य स्थानों पर कृषि व कच्चे माल की कीमतें तेजी से गिरी। अमेरिका सरकार इस महामंदी से अपनी अर्थव्यवस्था को बचने के लिए आयातित पदार्थों पर दोगुना सीमा शुल्क वसूलने लगी जिससे विश्व व्यापार की कमर ही टूट गई।
सरकार ने खाद्य तेल आयात पर रियायती सीमा शुल्क अगले साल मार्च तक 6 महीने के लिए बढ़ाया
Edible Oil Import Duty : भारत अपनी खाद्य तेल की आवश्यकता का 60 प्रतिशत से अधिक आयात करता है, ऐसे में वैश्विक बाजार के अनुरूप पिछले कुछ महीनों में खुदरा कीमतें दबाव में आ गईं.
Published: September 2, 2022 8:18 AM IST
Edible Oil Import Duty : वित्त मंत्रालय ने खाद्य तेल आयात पर रियायती सीमा शुल्क को मार्च, 2023 तक और छह महीने के लिए बढ़ा दिया है. इस कदम का उद्देश्य खाद्य तेलों की घरेलू आपूर्ति को बढ़ाना और कीमतों को नियंत्रण में रखना है.
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एक अधिसूचना में केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) ने कहा कि निर्दिष्ट खाद्य तेलों पर मौजूदा रियायती आयात शुल्क की समयसीमा को 31 मार्च, 2023 तक बढ़ाया जाएगा.
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SEA) ने कहा, ‘‘कच्चे पाम तेल, आरबीडी पामोलिन, आरबीडी पाम तेल, कच्चे सोयाबीन तेल, रिफाइंड सोयाबीन तेल, कच्चे सूरजमुखी तेल और रिफाइंड सूरजमुखी तेल पर मौजूदा शुल्क संरचना 31 मार्च, 2023 तक अपरिवर्तित रहेगी.’’
फिलहाल कच्चा पाम तेल, कच्चे सोयाबीन तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल किस्मों पर आयात शुल्क शून्य है. हालांकि, पांच प्रतिशत के कृषि उपकर और 10 प्रतिशत के सामाजिक कल्याण उपकर को ध्यान में रखते हुए इन तीन खाद्य तेलों की कच्ची किस्मों पर प्रभावी शुल्क 5.5 प्रतिशत है.
पामोलिन और पाम तेल की रिफाइंड किस्मों पर मूल सीमा शुल्क 12.5 प्रतिशत है, जबकि सामाजिक कल्याण उपकर 10 प्रतिशत है. अतः प्रभावी शुल्क 13.75 प्रतिशत बनता है.
रिफाइंड सोयाबीन और सूरजमुखी के तेल पर मूल सीमा शुल्क 17.5 प्रतिशत है और 10 प्रतिशत सामाजिक कल्याण उपकर को ध्यान में रखते हुए प्रभावी शुल्क 19.25 प्रतिशत बैठता है.
एसईए के कार्यकारी निदेशक बी वी मेहता ने कहा कि सरकार ने उपभोक्ता हित में रियायती शुल्क की समयसीमा को मार्च तक बढ़ाने का फैसला किया है.
उन्होंने कहा कि सोयाबीन जैसी खरीफ तिलहन की फसल घरेलू बाजार में आने के बाद सरकार को अक्टूबर में शुल्क ढांचे पर फिर से विचार करने की जरूरत होगी.
मेहता ने कहा कि वैश्विक कीमतों में गिरावट के कारण खाद्य तेल कीमतों में गिरावट का रुख रहा है.
उन्होंने कहा, ‘‘किसान अपनी तिलहन फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से कम से कम 15-20 प्रतिशत अधिक मूल्य पाना चाहते हैं. इसलिए यदि थोक मूल्य एमएसपी से नीचे जाते हैं या एमएसपी के आसपास रहते हैं तो सरकार को खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाने पर विचार करना चाहिए.’’
वैश्विक बाजार में खाद्य तेल कीमतों में गिरावट और आयात शुल्क कम होने से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की खुदरा कीमतों में काफी कमी आई है. हालांकि, आम आदमी के लिए कीमतें अब भी अधिक हैं.
पिछले कुछ महीनों में खाद्य मंत्रालय ने खाद्य तेल कंपनियों को वैश्विक कीमतों में गिरावट का लाभ घरेलू उपभोक्ताओं को देने का निर्देश दिया था.
उपभोक्ता मामलों के विभाग द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, एक सितंबर की स्थिति के अनुसार, मूंगफली तेल का औसत खुदरा मूल्य 188.04 रुपये प्रति किलोग्राम, सरसों का तेल 172.66 रुपये प्रति किलोग्राम, वनस्पति 152.52 रुपये प्रति किलोग्राम, सोयाबीन तेल 156 रुपये प्रति किलोग्राम, सूरजमुखी तेल 176.45 रुपये प्रति किग्रा और पाम तेल 132.94 रुपये प्रति किग्रा है.
पिछले साल भर में खाद्य तेल की कीमतों के उच्चस्तर पर बने रहने के साथ, सरकार ने घरेलू उपलब्धता बढ़ाने के लिए कई मौकों पर पाम तेल पर आयात शुल्क में कटौती की थी.
चूंकि भारत अपनी खाद्य तेल की आवश्यकता का 60 प्रतिशत से अधिक आयात करता है, ऐसे में वैश्विक बाजार के अनुरूप पिछले कुछ महीनों में खुदरा कीमतें दबाव में आ गईं. अक्टूबर को समाप्त होने वाले तेल विपणन वर्ष 2020-21 में भारत ने 1.17 लाख करोड़ रुपये के रिकॉर्ड खाद्य तेल का आयात किया.
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घरेलू कीमतों पर अंकुश के लिए गैर बासमती चावल निर्यात पर 20 फीसदी सीमा शुल्क लगाने का फैसला
करीब दो सप्ताह पहले रिकॉर्ड चावल उत्पादन के आंकड़े जारी करने और चालू कृषि उत्पादन सीजन 2022-23 में रिकॉर्ड 32.8 करोड़ खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य जारी करने के अगले ही दिन केंद्र सरकार ने घरेलू बाजार में बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए चावल निर्यात को हतोत्साहित करने के मकसद से 20 फीसदी का सीमा शुल्क लगा दिया है। विश्व बाजार शुल्क और सीमा विश्व बाजार शुल्क और सीमा इसके लिए जारी अधिसूचना के तहत शुल्क भूसी सहित चावल यानी धान, ब्राउन राइस (छिलके सहित चावल) और होल मिल्ड या सेमी मिल्ड चावल, पॉलिश्ड या ग्लेज्ड चावल की श्रेणी को शुल्क लगने वाली श्रेणी में रखा गया है। बासमती और सेला (पारबॉयल्ड) चावल के निर्यात को शुल्क मुक्त रखा गया है
Harvir Singh WRITER: [email protected]
करीब दो सप्ताह पहले रिकॉर्ड चावल उत्पादन के आंकड़े जारी करने और चालू कृषि उत्पादन सीजन 2022-23 में रिकॉर्ड 32.8 करोड़ खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य जारी करने के अगले ही दिन केंद्र सरकार ने घरेलू बाजार में बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए चावल निर्यात को हतोत्साहित करने के मकसद से 20 फीसदी का सीमा शुल्क लगा दिया है। इसके लिए राजस्व विभाग द्वारा जारी अधिसूचना के तहत भूसी सहित चावल यानी धान, ब्राउन राइस (छिलके सहित चावल) और होल मिल्ड या सेमी मिल्ड चावल, पॉलिश्ड या ग्लेज्ड चावल की श्रेणी को शुल्क लगने वाली श्रेणी में रखा गया है। बासमती और सेला (पारबॉयल्ड) चावल के निर्यात को शुल्क मुक्त रखा गया है। इस संबंध में वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग द्वारा 8 सितंबर, 2022 को अधिसूचना जारी की गई है और 9 सितंबर शुक्रवार से निर्यात पर 20 फीसदी सीमा शुल्क का यह फैसला लागू हो गया है।
अधिसूचना में कहा गया है कि निर्यात शुल्क लगाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा संतुष्ट होने के चलते प्रदत्त अधिकारों के तहत निर्यात पर शुल्क लगाने का फैसला लिया गया है।
चालू खरीफ सीजन में देश के करीब दर्जनभर चावल उत्पादक राज्योंं में बारिश कम होने के चलते धान का रकबा कम चल रहा है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक धान का रकबा पिछले साल से करीब छह फीसदी तक कम है। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में बारिश की कमी के चलते धान का रकबा तो घटा ही है फसल की स्थिति बहुत बेहतर नहीं है। एक दिन पहले ही उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में जिला स्तर पर सूखे की स्थिति का जायजा लेने का फैसला लिया है। इन राज्यों में बारिश का स्तर सामान्य से 40 से 50 फीसदी तक कम है। ऐसे में चालू खरीफ सीजन की धान की फसल के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ना लगभग तय है। यही वजह है कि सरकार ने निर्यात को हतोत्साहित करने के लिए सामान्य चावल की किस्मों के निर्यात पर 20 फीसदी सीमा शुल्क लगाने का फैसला लागू किया है।
पिछले वित्त वर्ष में भारत करीब 200 लाख टन चावल के निर्यात के साथ दुनिया के सबसे बड़ा चावल निर्यातक के रूप में स्थापित हो गया था जो विश्व के चावल निर्यात बाजार का 40 फीसदी हिस्सा है। भारत के निर्यात को हतोत्साहित करने के लिए 20 फीसदी सीमा शुल्क लगाने के चलते वैश्विक बाजार में चावल की कीमतों में बढ़ोतरी आ सकती है। हालांकि यह फैसला बासमती और सेला चावल पर लागू नहीं होगा। देश से हर साल करीब 40 लाख टन बासमती और करीब 70 लाख टन सेला चावल का निर्यात होता है। उस हिसाब से यह फैसला आधे से कुछ कम चावल निर्यात को प्रभावित करेगा।
वहीं घरेलू बाजार में पिछले कुछ माह में चावल की कीमतें करीब पांच से सात फीसदी तक बढ़ गई हैं। इसी के चलते किसानों को कम अवधि की साठा चावल किस्मों के धान के लिए जुलाई में 3000 रुपये से 3500 रुपये प्रति क्विटंल की कीमत मिली है।जो घरेलू बाजार में चावल कीमतों में तेजी का संकेत है। लेकिन निर्यात पर शुल्क लगाने के 8 सितंबर के फैसले के चलते कीमतों में वृद्धि पर अंकुश लगने की संभावना है।
पिछले सीजन 2021-22 में मार्च में अचानक तापमान में बढ़ोतरी के चलते गेहूं के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ा था और उसके चलते सरकारी खरीद भी 15 साल के निचले स्तर पर चली गई थी और केंद्रीय पूल में 1 जून को गेहूं का स्टॉक 14 साल के निचले स्तर पर था। गेहूं की कीमतें सरकारी खऱीद के दौरान ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी उपर चली गई थी। कीमतों में बढ़ोतरी पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार ने 13 मई, 2022 को गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी थी। वहीं पिछले दिनों गेहूं के आटा के निर्यात पर ऱोक लगा दी गई थी।
हालांकि केंद्रीय पूल में चावल का स्टॉक बेहतर स्थिति में है और सरकार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली व दूसरी योजनाओं के तहत चावल के आवंटन में अभी कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन जिस तरह से खरीफ फसल के कमजोर रहने की आशंका लग रही है उसके चलते सरकारी खरीद भी प्रभावित हो सकती है। यही वजह है कि सरकार घरेलू बाजार में कीमतों और चावल की उपलब्धता को लेकर कोई चांस नहीं लेना चाहती है और उसी के चलते निर्यात पर शुल्क लगाने का यह फैसला आया है।