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दलाल कैसे बने?

दलाल कैसे बने?
3. बाद में, करण जौहर के टॉक शो 'कॉफी विद करण' के सीजन 6 के साथ अभिनेता ने अपने प्यार और केमिस्ट्री के बारे में बात की थी। उन्होंने कहा, 'मैं उसे डेट कर रहा हूं और अब हम एक जोड़ी हैं। मैंने उससे शादी करने की योजना बनाई है।'

दलाल कैसे बने?

भारत : फिर कैसे बने गणराज्य?

दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र, अमेरिका नहीं भारत है। 600 ईसा पूर्व भारत में सैकड़ों गणराज्य थे।

जहां बिना लिंग और जाति भेद के समाज के हर वर्ग के प्रतिनिधि खुली चर्चाओं के बाद शासन के नियम और कानून तय करते थे। फिर राजतंत्र की स्थापना हुई और दो हजार से ज्यादा वर्षो तक चली। माना यह जाता है कि आजादी की लड़ाई के दौरान पश्चिमी विचारों से प्रभावित हो कर समानता, स्वतंत्रता व बंधुत्व का भारत में प्रचार हुआ और उसी से जन्मा हमारा आज का लोकतंत्र। जिसे आज पूरी दुनिया में इसलिए सराहा जाता है क्योंकि इसमें बिना रक्त क्रांतियों के चुनाव के माध्यम से शांतिपूर्ण तरीके से सरकारें बदल जाती हैं, जबकि हमारे साथ ही आजाद हुए पड़ोसी देशों में आए दिन सैनिक तख्तापलट होते रहते हैं।
आज पूरी दुनिया मानती है कि शासन का सबसे बढ़िया प्रारूप लोकतंत्र है। क्योंकि इसमें किसी के अधिनायकवादी बनने की संभावना नहीं रहती। एक चाय बेचने वाला भी देश का प्रधान मंत्री बन सकता है या एक दलित भारत का राष्ट्रपति या मुख्य न्यायाधीश बन सकता है। अपनी इस खूबी के बावजूद भारत के लोकतंत्र की खामियों पर सवाल उठते रहे हैं। सातवें दशक में गुजरात के छात्र दलाल कैसे बने? आंदोलन और फिर लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में संघषर्वाहिनी के माध्यम से पैदा हुए जनआक्रोश की परिणिति पहले आपातकाल की घोषणा और फिर केंद्र में सत्ता पलटने से हुई। तब से आज तक अनेक राष्ट्रीय आंदोलनों और क्षेत्रीय आंदोलनों के कारण प्रांतों और केंद्र में सरकारें चुनावों के माध्यम से शांतिपूर्ण तरीके से बदलती रही हैं, लेकिन हमारे लोकतंत्र की गुणवत्ता नहीं सुधरी। इसके विपरीत राजनीति में जवाबदेही और पारदर्शिता का तेजी से पतन हुआ है।

आज राजनीति में न तो विचारधारा का कोई महत्त्व बचा दलाल कैसे बने? है और न ही ईमानदारी का। हर दल में समाज के लिए जीवन खपाने वाले कार्यकर्ता कभी भी अपना उचित स्थान नहीं पाते। उनका जीवन दरी बिछाने और नारे लगाने में ही समाप्त हो जाता है। हर दल चुनाव के समय टिकट उसी को देता है जो करोड़ों रुपया खर्च करने को तैयार हो या उसके समर्थन में उसकी जाति का विशाल वोट बैंक हो। फिर चाहे उसका आपराधिक इतिहास रहा हो या उसने बार-बार दल बदले हों, इसका कोई विचार नहीं किया जाता। यही कारण है कि आज भारत में भी लोकतंत्र सही मायने में जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप कार्य नहीं कर रहा। हर दल और हर सरकार में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अधिनायकवादी प्रवृत्तियां ही देखी जाती हैं। परिणामत: भारत हमेशा एक चुनावी माहौल में उलझा रहता है। चुनाव जीतने के सफल नुस्खों को हरदम हर दल द्वारा प्रयोग में लाया जाता है। नतीजतन देश में साम्प्रदायिक, जातिगत हिंसा या तनाव और जनसंसाधनों की खुली लूट का तांडव चलता रहता है, जिसके कारण समाज का हर वर्ग हमेशा असुरक्षित और अशांत रहता है। ऐसे में आमजन के सम्पूर्ण विकास की कल्पना करना भी बेमानी है। मूलभूत आवश्यकताओं के लिए आज भी हमारा बहुसंख्यक समाज रात दिन संघषर्रत रहता है।
पिछले कुछ हफ्तों से चल रहे किसान आंदोलन को मोदी जी किसानों का पवित्र आंदोलन बताते हैं और आंदोलनजीवियों पर प्रहार करते हैं। अपनी निष्पक्षता खो चुका मीडिया का एक बड़ा हिस्सा आंदोलनकारियों को आतंकवादी, खलिस्तानी या नक्सलवादी बताता है। विपक्षी दल सरकार को पूंजीपतियों का दलाल और किसान विरोधी बता रहे हैं। पर सच्चाई दलाल कैसे बने? क्या है? कौन सा दल है जो पूंजीपतियों का दलाल नहीं है? कौन सा दल है जिसने सत्ता में आकर किसान मजदूरों की आर्थिक प्रगति को अपनी प्राथमिकता माना हो? धनधान्य से भरपूर भारत का मेहनतकश आम आदमी आज अपने दुर्भाग्य के कारण नहीं बल्कि शासनतंत्र में लगातार चले आ रहे भ्रष्टाचार के कारण गरीब है। इन सब समस्याओं के मूल में है संवाद की कमी। आंदोलनकारी किसानों और सरकार के बीच जो परिस्थिति आज पैदा हुई है वह भी संवाद की कमी के कारण हुई है। अगर ये कृषि कानून समुचित संवाद के बाद लागू किए जाते तो शायद यह नौबत नहीं आती। आज दिल्ली बॉर्डर से निकल कर किसानों की महापंचायतों का एक क्रम चारों ओर फैलता जा रहा है और ये सिलसिला आसानी से रुकने वाला दलाल कैसे बने? नहीं लगता। क्योंकि अब इसमें विपक्षी दल भी खुल कर कूद पड़े हैं।
हो सकता है कि इन महापंचायतों के दबावों में सरकार इन कानूनों को वापस ले ले, पर उससे देश के किसान मजदूर और आम आदमी को क्या उसका वाजिब हक मिल पाएगा? ऐसा होना असंभव है। इसलिए लगता है कि अब वो समय आ गया है कि जब दलों की दलदल से बाहर निकल कर लोकतंत्र को जमीनी स्तर पर मजबूत किया जाए, जिसके लिए हमें 600 ईसा पूर्व भारतीय गणराज्यों से प्रेरणा लेनी होगी। जहां संवाद ही लोकतंत्र की सफलता की कुंजी था। सत्तारूढ़ दलों सहित देश के हर दल को इसमें पहल करनी होगी और साथ ही समाज के हर वर्ग के जागरूक लोगों आगे आना होगा। आवश्यकता इस बात की है कि ऐसी महापंचायत हर तीन महीने में हर जिले के स्तर पर आयोजित की जाए, जिनमें स्थानीय, प्रांतीय और राष्ट्रीय मुद्दों पर जनता के बीच संवाद हो। इन महापंचायतों में कोई भी राजनैतिक दल या संगठन अपना झंडा या बैनर न लगाए, केवल तिरंगा झंडा ही लगाया जाए और न ही कोई नारेबाजी हो।
महापंचायतों का आयोजन एक समन्वय समिति करे, जिसमें चर्चा के लिए तय किए हुए मुद्दे मीडिया के माध्यम से क्षेत्र में पहले ही प्रचारित कर दिए जाएं और उन पर अपनी बात रखने के लिए क्षेत्र के लोगों को खुला निमंत्रण दिया जाए। इन महापंचायतों में उस क्षेत्र के सांसद और विधायकों की केवल श्रोता के रूप में उपस्थिति अनिवार्य हो, वक्ता के रूप में नहीं। क्योंकि विधान सभा और संसद में हर मुद्दे के लिए बहस का समय नहीं मिलता। इस तरह जनता की बात शासन तक पहुंचेगी और फिर धरने, प्रदर्शनों और हड़तालों की सार्थकता क्रमश: दलाल कैसे बने? घटती जाएगी। अगर ईमानदारी से यह प्रयास किया जाए तो निश्चित रूप से हमारा लोकतंत्र सुदृढ़ होगा और हर भारतवासी लगातार सक्रिय रहकर अपने हक को पाने के लिए सचेत रहेगा। फिर उसकी बात सुनना सरकारों की मजबूरी होगी।

लड़की की कीमत पांच सौ! ‘500 रुपए दे दो और लड़की ले जाओं’…, पुलिस को ही ग्राहक समझ बैठे दलाल….

जबलपुर : मध्यप्रदेश के जबलपुर में एक दलाल कैसे बने? बार फिर सेक्स रैकेट का पर्दाफाश हुआ है। शहर के गढ़ा थाना अंतर्गत बेदीनगर इलाके में स्थित एक मकान में ये देहव्यापार का धंधा चल रहा था। पुलिस ने दबिश देकर 4 महिला और पुरूष को आपत्तिजनक हालत में गिरफ्तार किया है। इसके साथ ही सेक्स रैकेट संचालक को भी हिरासत लेकर पूछताछ की जा रही है।

दरअसल, पुलिस को लंबे समय से शिकायत मिल रही थी कि गढ़ा थाना अंतर्गत बेदी नगर में एक मकान में देह व्यापार चल रहा है। इसके बाद पुलिस ने प्लानिंग के साथ इस ठिकाने पर दबिश दी। पुलिस ने एक जवान को ग्राहक बनाकर बेदी नगर में स्थित मकान पर भेजा। ग्राहक बनकर गए पुलिस जवान ने शख्स से बात की तो उसने 500 से 1000 तक में लड़की उपलब्ध कराने की बात कहीं। पुलिस जवान ने घर के अंदर जाकर देखा तो दो अलग-अलग कमरे बने थे। जिसमें एक युवक और युवती आपत्तिजनक दलाल कैसे बने? हालत में थे, जबकि दूसरे कमरे में एक युवती बैठी हुई थी।
पुलिस ने इस सेक्स रैकेट का पर्दाफाश करते हुए 4 महिला और पुरूष को आपत्तिजनक हालत में गिरफ्तार किया है। वहीं मौके पर कई आपत्तिजनक सामान भी मिला है। इसके साथ ही पुलिस सेक्स रैकेट संचालक को भी हिरासत में लेकर पूछताछ कर रही है।

कब बढ़ीं नजदीकियां और कैसे किया इजहार, यूं परवान चढ़ा वरुण धवन और नताशा दलाल का प्यार

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Varun Dhawan and Natasha Dalal love story: वरुण धवन और नताशा दलाल शादी करने जा रहे हैं, इस बीच कई फैंस के मन में यह सवाल हो सकता है कि दोनों के बीच प्यार कैसे पनपा? एक नजर दोनों की लव स्टोरी की टाइमलाइन पर।

Varun Dhawan and Natasha Dalal

  • कभी रिश्ते को छिपाते तो कभी खुल्लम खुल्ला प्यार करते नजर आए वरुण और नताशा
  • दोस्ती से प्यार तक धीरे धीरे आईं दोनों के बीच नजदीकियां
  • शादी की खबरों के बीच यहां जानिए नताशा और वरुण की लव स्टोरी

बॉलीवुड अभिनेता वरुण धवन और उनकी गर्लफ्रेंड नताशा दलाल अक्सर अपने रोमांस के साथ चर्चा में बने रहे हैं। वरुण के फिल्म जगत में आने के बाद से लगातार वह नताशा के करीब रहे और उनके रिलेशनशिप में हमेशा गहराई और गंभीरता देखने को मिलती रही। इससे पहले कि दोनों पार्टियों, सेलिब्रिटी शादियों और रात के खाने में एक साथ नजर आ रहे थे और ज्यादातर अपनी कारों में एक साथ ड्राइव करते हुए देखे जा चुके हैं।

कई सालों तक, दोनों ने अपने प्यार को लोगों से छिपाकर रखा और अपने रिश्ते को छिपते छिपाते रहे। लेकिन जल्द ही, उन्होंने ज्यादा से ज्यादा मौकों पर एक साथ दिखना शुरू कर दिया। बाद में, उन्होंने इंटरव्यू में भी एक-दूसरे के लिए अपने एहसास को कबूल किया और अपने रिश्ते को आधिकारिक बना दिया। अब, ताजा रिपोर्ट्स की मानें तो यह जोड़ी इसी महीने बहुत जल्द शादी के बंधन में बंधने वाली है।

यदि आप यह जानने में रुचि रखते हैं कि दोनों के बीच प्यार कैसे पनपा और कब उन्होंने एक-दूसरे के साथ अपनी बाकी की ज़िंदगी बिताने का फैसला किया, तो उनकी लव टाइमलाइन पर एक नज़र डालें।

Natasha Dalal and Varun Dhawan

वरुण धवन और नताशा दलाल की प्रेम कहानी:
1. नताशा दलाल और वरुण धवन बचपन के दोस्त थे। डेटिंग शुरू करने से पहले दलाल कैसे बने? वे कई सालों तक दोस्त बने रहे। एक इंटरव्यू में नताशा ने कहा, 'वरुण और मैं एक साथ स्कूल में थे। 20 साल की उम्र तक हम दोस्त बने रहे और फिर, मुझे याद है, इसके बाद ही हम डेटिंग शुरू कर चुके थे। मुझे लगता है, हमें एहसास हुआ कि हम सिर्फ अच्छे दोस्तों से कुछ ज्यादा थे।'

2. नेहा धूपिया के ऑडियो चैट शो नो फिल्टर नेहा में, वरुण धवन ने नताशा दलाल के साथ अपने रिश्ते के बारे में एक संकेत दिया। अभिनेता ने कोई नाम नहीं लिया लेकिन उन्होंने साझा किया कि वह प्यार में हैं और, उन्होंने खुलासा किया कि वह अपनी प्रेमिका को मीडिया की चकाचौंध से बचाना चाहते हैं, यही वजह है कि वह सार्वजनिक रूप से अपने रिश्ते के बारे में बात नहीं करते।

Natasha Varun love story

3. बाद में, करण जौहर के टॉक शो 'कॉफी विद करण' के सीजन 6 के साथ अभिनेता ने अपने प्यार और केमिस्ट्री के बारे में बात की थी। उन्होंने कहा, 'मैं उसे डेट कर रहा हूं और अब हम एक जोड़ी हैं। मैंने उससे शादी करने की योजना बनाई है।'

4. 2019 में, वरुण ने नताशा के जन्मदिन के जश्न से एक वीडियो साझा किया। और, क्लिप ने यह स्पष्ट कर दिया कि दोनों एक-दूसरे के प्यार में पागल हैं।

5. मार्च 2019 में, नताशा ने मुंबई में वरुण के माता-पिता के साथ आकाश अंबानी और श्लोका मेहता के मंगल पर्व समारोह में हिस्सा लिया था।

सौंदर्य, स्वास्थ्य और जीवन शैली विकल्प

मिल्खा सिंह, फ्लाइंग सिख के नाम से, (जन्म 17 अक्टूबर, 1935, लायलपुर [अब फैसलाबाद], पाकिस्तान- मृत्यु 18 जून, 2021, चंडीगढ़, भारत), भारतीय ट्रैक-एंड-फील्ड एथलीट, जो पहले भारतीय पुरुष बने। एक ओलंपिक एथलेटिक्स प्रतियोगिता का फाइनल जब उन्होंने रोम में 1960 के ओलंपिक खेलों में 400 मीटर की दौड़ में चौथा स्थान हासिल किया।

भारत के विभाजन के दौरान अनाथ, सिंह 1947 में पाकिस्तान से भारत आ गए। उन्होंने भारतीय सेना में शामिल होने से पहले सड़क किनारे एक रेस्तरां में काम करके अपना जीवनयापन किया। सेना में ही सिंह को एक धावक के रूप में अपनी क्षमताओं का एहसास हुआ। 200 मीटर और 400 मीटर स्प्रिंट में राष्ट्रीय ट्रायल जीतने के बाद, मेलबर्न में 1956 के ओलंपिक खेलों में उन घटनाओं के लिए प्रारंभिक हीट के दौरान उन्हें बाहर कर दिया गया था।

1958 के एशियाई खेलों में, सिंह ने 200 मीटर और 400 मीटर दौड़ दोनों में जीत हासिल की। उसी वर्ष बाद में उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों में 400 मीटर का स्वर्ण जीता, जो खेलों के इतिहास में भारत का पहला एथलेटिक्स स्वर्ण था।

रोम में 1960 के ओलंपिक खेलों में 400 मीटर में वह कांस्य दलाल कैसे बने? पदक हार गए, एक फोटो फिनिश में तीसरे स्थान से चूक गए। सिंह ने 1962 के एशियाई खेलों में अपना 400 मीटर का स्वर्ण बरकरार रखा और भारत की 4 × 400 मीटर रिले टीम के हिस्से के रूप में एक और स्वर्ण भी लिया। उन्होंने 1964 के टोक्यो खेलों में राष्ट्रीय 4 × 400 टीम के हिस्से के रूप में अंतिम ओलंपिक उपस्थिति दर्ज की, जो पिछली प्रारंभिक हीट को आगे बढ़ाने में विफल रही।

सिंह को 1959 में पद्म श्री (भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक) से सम्मानित किया गया था। अपनी सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने पंजाब में खेल निदेशक के रूप में कार्य किया। सिंह की आत्मकथा, द रेस ऑफ माई लाइफ (उनकी बेटी सोनिया संवालका के साथ मिलकर लिखी गई), 2013 में प्रकाशित हुई थी।

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