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स्वैप वर्गीकरण

स्वैप वर्गीकरण
इसी तरह से फ्लोटिंग रेट वाली जो कंपनी है उसे लगता है कि आने वाले समय में फ्लोटिंग इंटरेस्ट रेट काफी बढ़ जाएगी इसीलिए अगर फ़िक्स्ड इंटरेस्ट रेट मिल जाये तो कम से इस बात कि गारंटी तो रहेगी कि इंटरेस्ट बढ़े या घटे हमें बस एक ही रेट में पे करना है। इसे कहते हैं Speculation यानी कि दोनों अपने-अपने तरीके से अनुमान लगा रहा है कि ऐसा होगा।

ब्याज दर व्युत्पन्न

में वित्त , एक ब्याज दर डेरिवेटिव ( IRD ) एक है व्युत्पन्न जिसका भुगतान गणना स्वैप वर्गीकरण तकनीक जहां अंतर्निहित बेंचमार्क उत्पाद एक है के माध्यम से निर्धारित किया जाता है ब्याज दर , या अलग अलग ब्याज दरों का सेट। इस परिभाषा में उपयोग किए जा सकने वाले विभिन्न ब्याज दर सूचकांकों की भीड़ है ।

आईआरडी सभी वित्तीय बाजार सहभागियों के साथ लोकप्रिय हैं, क्योंकि वित्त के लगभग किसी भी क्षेत्र को ब्याज दरों के आंदोलन पर बचाव या अनुमान लगाने की आवश्यकता है।

ब्याज दर डेरिवेटिव (आईआरडी) का सबसे बुनियादी उपवर्ग रैखिक और गैर-रैखिक को परिभाषित करना है । इसके बाद उपरोक्त का और वर्गीकरण वैनिला (या मानक) आईआरडी और विदेशी आईआरडी को परिभाषित करने के लिए किया जाता है ; विदेशी व्युत्पन्न देखें ।

रैखिक और गैर-रैखिक

रैखिक आईआरडी वे होते हैं जिनके शुद्ध वर्तमान मूल्य (पीवी) अत्यधिक होते हैं (हालांकि जरूरी नहीं कि पूरी तरह से) अंतर्निहित ब्याज दर सूचकांक के एक-से-एक आंदोलन के लगभग आनुपातिक परिवर्तन द्वारा निर्धारित और गुजरते हैं। रैखिक आईआरडी के उदाहरण हैं; ब्याज दर स्वैप (आईआरएस) , फॉरवर्ड रेट एग्रीमेंट (एफआरए) , शून्य कूपन स्वैप (जेडसीएस) , क्रॉस-करेंसी आधार स्वैप (एक्ससीएस) और एकल मुद्रा आधार स्वैप (एसबीएस) ।

गैर-रैखिक आईआरडी शेष स्वैप वर्गीकरण उत्पादों का समूह बनाते हैं। जिनके पीवी आमतौर पर अंतर्निहित ब्याज दर सूचकांक के एक-से-एक आंदोलन से अधिक निर्धारित होते हैं। स्वैप वर्गीकरण गैर-रैखिक आईआरडी के उदाहरण हैं; स्वैपशन , ब्याज दर कैप और फ्लोर और निरंतर परिपक्वता स्वैप (सीएमएस) । इन उत्पादों के पीवी अस्थिरता पर निर्भर होते हैं इसलिए इनका मूल्य निर्धारण अक्सर अधिक जटिल होता है जैसा कि उनके जोखिम प्रबंधन की प्रकृति है।

वेनिला और विदेशी

रैखिक और गैर-रेखीय और वेनिला और विदेशी के वर्गीकरण को सार्वभौमिक रूप से स्वीकार नहीं किया गया है और कई उत्पाद मौजूद हो सकते हैं जिन्हें यकीनन विभिन्न श्रेणियों को सौंपा जा सकता है। ये शर्तें ओवरलैप भी हो सकती हैं। "वेनिला", "वेनिला आईआरएस" और "वेनिला स्वैपशन" में, अक्सर उन उत्पादों के मूल, सबसे अधिक तरल और आमतौर पर कारोबार किए जाने वाले वेरिएंट का अर्थ लिया जाता है।

विदेशी आमतौर पर एक ऐसी सुविधा को परिभाषित करने के लिए उपयोग किया जाता है जो आईआरडी प्रकार का विस्तार है। उदाहरण के लिए, एक बकाया आईआरएस एक विदेशी आईआरएस का एक वास्तविक उदाहरण है, जबकि एक आईआरएस जिसकी संरचना वैनिला के समान थी, लेकिन जिसकी शुरुआत और समाप्ति तिथि अपरंपरागत हो सकती है, उसे आमतौर पर विदेशी के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाएगा। आमतौर पर इसे एक बीस्पोक आईआरएस (या अनुकूलित आईआरएस) के रूप में संदर्भित किया जाएगा। बरमूडान स्वैपशन स्वैपशन एक्सटेंशन के उदाहरण हैं जो विदेशी रूपों के रूप में योग्य हैं।

स्वैप डेरिवेटिव्स (Swap Derivatives in hindi)

स्वैप डेरिवेटिव्स

कोई भी ऐसा उपकरण (Instrument) जिसकी अपनी खुद की कोई वैल्यू नहीं होती है बल्कि उसकी वैल्यू किसी और ही चीज़ से प्राप्त होती है। उसे स्वैप वर्गीकरण स्वैप वर्गीकरण डेरिवेटिव्स (Derivatives) कहा जाता है। जिस चीज़ पर उसकी वैल्यू निर्भर करता है उसे अंतर्निहित परिसंपत्ति (Underlying Assets) कहा जाता है। जैसे कि पनीर की वैल्यू दूध पर निर्भर करता है इसीलिए यहाँ दूध पनीर का अंतर्निहित परिसंपत्ति (Underlying Assets) है।

डेरिवेटिव्स (Derivatives) चार प्रकार के होते हैं – फॉरवर्ड (Forward), फ्युचर (future), ऑप्शन (Option) और स्वैप (Swap)। इस लेख में हम स्वैप डेरिवेटिव्स को समझेंगे:

| स्वैप डेरिवेटिव्स क्या है?

स्वैप (Swap) का सीधा सा मतलब होता है अदला-बदली। दूसरे शब्दों में कहें तो ये एक डेरिवेटिव्स कांट्रैक्ट है जहां दो पार्टियां पैसों, देनदारियों या फिर वस्तु आदि की अदला-बदली करते हैं, आइये स्वैप डेरिवेटिव्स (Swap derivatives) एक उदाहरण से समझते हैं।

| स्वैप डेरिवेटिव्स उदाहरण

मान लीजिये आपके घर में केरोसिन से जलने वाली एक लैंप है, संयोग से उस रात बिजली चली गई और आप उस लैंप को जलाने जाते हैं पर आपको पता चलता है कि आपके पास केरोसिन ही नहीं है बल्कि आपके पास पेट्रोल है।

वहीं दूसरी तरफ आपका एक परोसी है जिसे अभी एक एमर्जेंसी आन पड़ी है उसे तुरंत अभी शहर जाना पड़ेगा। पर जब वो अपनी गाड़ी को स्टार्ट करता है तो उसे पता चलता है कि पेट्रोल खत्म होने को है। उसके पास केरोसिन तो है लेकिन पेट्रोल नहीं है।

ऐसे में क्या अच्छा ये नहीं होगा कि आप दोनों अपने-अपने सामान की अदला-बदली कर लें। क्योंकि इससे दोनों को अपनी जरूरत की चीज़ें मिल जाएंगी। इसी प्रकार स्वैप वर्गीकरण के अदला-बदली को तो स्वैप (Swap) कहते हैं।

| स्वैप डेरिवेटिव्स के प्रकार

| करेंसी स्वैप (Currency swap)

करेंसी स्वैप का इस्तेमाल आमतौर पर दो देशों के बिज़नसमैन या सरकार करते हैं। इसका क्या फंक्शन है आइये इसे उदाहरण से समझ लेते हैं।

मान लीजिये एक इंडिया का कंपनी है जिसे अमेरिका में अपना बिज़नस लगाना है और एक अमेरिका की कंपनी है जिसे इंडिया में बिज़नस लगाना है। लेकिन दिक्कत ये है कि इंडिया की कंपनी जब अमेरिका में लोन लेना चाहती है तो उसे ब्याज दर बहुत ज्यादा देना पड़ता है। मान लेते हैं वो 10 परसेंट है। लेकिन वहीं वो अगर इंडिया में लोन लेता है तो उसे सिर्फ 7 परसेंट ब्याज देना पड़ेगा। पर अगर वो इंडिया में लोन लेता है तो उसे उस रुपए को डॉलर में कन्वर्ट कराना पड़ेगा और इसके अलावा भी ढेरों समस्याएँ आएंगी।

अब उस अमेरिकी कंपनी की बात करें जो इंडिया में बिज़नस लगाना चाहता है। वो अगर इंडिया में लोन लेता है तो उसे 10 परसेंट का ब्याज देना पड़ेगा। लेकिन अगर वो अमेरिका में लोन लेता है तो उसे सिर्फ 7 परसेंट का ब्याज देना पड़ेगा। पर उसके सामने भी वही समस्या है जो इंडिया के कंपनी के पास है। ऐसी ही स्थिति में करेंसी स्वैप (Currency swap) का कॉन्सेप्ट आता है।

स्वैप डेरिवेटिव्स (Swap Derivatives in hindi)

स्वैप डेरिवेटिव्स

कोई भी ऐसा उपकरण (Instrument) जिसकी अपनी खुद की कोई वैल्यू नहीं होती है बल्कि उसकी वैल्यू किसी और ही चीज़ से प्राप्त होती है। उसे डेरिवेटिव्स (Derivatives) कहा जाता है। जिस चीज़ पर उसकी वैल्यू निर्भर करता है उसे अंतर्निहित परिसंपत्ति (Underlying Assets) कहा जाता है। जैसे कि पनीर की वैल्यू दूध पर निर्भर करता है इसीलिए यहाँ दूध पनीर का अंतर्निहित परिसंपत्ति (Underlying Assets) है।

डेरिवेटिव्स (Derivatives) चार प्रकार के होते हैं – फॉरवर्ड (Forward), फ्युचर (future), ऑप्शन (Option) और स्वैप (Swap)। इस लेख में हम स्वैप डेरिवेटिव्स को समझेंगे:

| स्वैप डेरिवेटिव्स क्या है?

स्वैप (Swap) का सीधा सा मतलब होता है अदला-बदली। दूसरे शब्दों में कहें तो ये एक डेरिवेटिव्स कांट्रैक्ट है जहां दो पार्टियां पैसों, देनदारियों या फिर वस्तु आदि की अदला-बदली करते हैं, आइये स्वैप डेरिवेटिव्स (Swap derivatives) एक उदाहरण से समझते हैं।

| स्वैप डेरिवेटिव्स उदाहरण

मान लीजिये आपके घर में केरोसिन से जलने वाली एक लैंप है, संयोग से उस रात बिजली चली गई और आप उस लैंप को जलाने जाते हैं पर आपको पता चलता है कि आपके पास केरोसिन ही नहीं है बल्कि आपके पास पेट्रोल है।

वहीं दूसरी तरफ आपका एक परोसी है जिसे अभी एक एमर्जेंसी आन पड़ी है उसे तुरंत अभी शहर जाना पड़ेगा। पर जब वो अपनी गाड़ी को स्टार्ट करता है तो उसे पता चलता है कि पेट्रोल खत्म होने को है। उसके पास केरोसिन तो है लेकिन पेट्रोल नहीं है।

ऐसे में क्या अच्छा ये नहीं होगा कि आप दोनों अपने-अपने सामान की अदला-बदली कर लें। क्योंकि इससे दोनों को अपनी जरूरत की चीज़ें मिल जाएंगी। इसी प्रकार के अदला-बदली को तो स्वैप (Swap) कहते हैं।

| स्वैप डेरिवेटिव्स के प्रकार

| स्वैप वर्गीकरण करेंसी स्वैप (Currency swap)

करेंसी स्वैप का इस्तेमाल आमतौर पर दो देशों के बिज़नसमैन या सरकार करते हैं। इसका क्या फंक्शन है आइये इसे उदाहरण से समझ लेते हैं।

मान लीजिये एक इंडिया का कंपनी है जिसे अमेरिका में अपना बिज़नस लगाना है और एक अमेरिका की कंपनी है जिसे इंडिया में बिज़नस लगाना है। लेकिन दिक्कत ये है कि इंडिया की कंपनी जब अमेरिका में लोन लेना चाहती है तो उसे ब्याज दर बहुत ज्यादा देना पड़ता है। मान लेते हैं वो 10 परसेंट है। लेकिन वहीं वो अगर इंडिया में लोन लेता है तो उसे सिर्फ 7 परसेंट ब्याज देना पड़ेगा। पर अगर वो इंडिया में लोन लेता है तो उसे उस रुपए को डॉलर में कन्वर्ट कराना पड़ेगा और इसके अलावा भी ढेरों समस्याएँ आएंगी।

अब उस अमेरिकी कंपनी की बात करें जो इंडिया में बिज़नस लगाना चाहता है। वो अगर इंडिया में लोन लेता है तो उसे 10 परसेंट का ब्याज देना पड़ेगा। लेकिन अगर वो अमेरिका में लोन लेता है तो उसे सिर्फ 7 परसेंट का ब्याज देना पड़ेगा। पर उसके सामने भी वही समस्या है जो इंडिया के कंपनी के पास है। ऐसी ही स्थिति में करेंसी स्वैप (Currency swap) का कॉन्सेप्ट आता है।

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लक्ष्मी विलास बैंक को क्लिक्स समूह से प्रस्ताव

लक्ष्मी विलास बैंक (एलवीबी) ने गुरुवार को कहा कि उसे क्लिक्स गु्रप से सांकेतिक गैर-बाध्यकारी ऑफर मिला है। बैंक के अधिकारियों ने कहा है कि यह पहली बार है जब बैंक को आधिकारिक तौर पर प्रस्ताव मिला है, जबकि पिछला प्रस्ताव सिर्फ अभिरुचि पत्र (एलओआई) था।

बैंक ने कहा है कि क्लिक्स कैपिटल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड (क्लिक्स कैपिटल), क्लिक्स फाइनैंस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (क्लिक्स फाइनैंस) और क्लिक्स हाउसिंग फाइनैंस प्राइवेट लिमिटेड (क्लिक्स हाउसिंग) के साथ प्रस्तावित विलय पर विचार एवं मूल्यांकन की प्रक्रिया के तहत बैंक को क्लिक्स गु्रप से गैर-बाध्यकारी प्रस्ताव मिला है। 15 सितंबर को, एलवीबी ने घोषणा की थी कि क्लिक्स कैपिटल के साथ आपसी सामंजस्य 'काफी हद तक संपूर्ण' है, और संबंधित पक्ष अगले कदमों पर चर्चा कर रहे हैं। बैंक से सबसे पहले क्लिक्स गु्रप की इकाई क्लिक्स कैपिटल और मुंबई स्थित निजी इक्विटी फर्म एऑन कैपिटल पार्टनर्स ने जून में एलओआई के साथ संपर्क किया था। एऑन न्यूयार्क स्थित अपोलो ग्लोबल मैनेजमेंट और आईसीआईसीआई वेंचर के बीच भागीदार है।

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