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फिबोनाची ने दुनिया को कैसे बदला

फिबोनाची ने दुनिया को कैसे बदला

फिबोनाची ने दुनिया को कैसे बदला

हमेशा से ही अंक अंकगणित एक दिलचस्प विषय रहा है Ι जितना हम अंकों की पहेली को सुलझाएँगे, वह उतना हमें रोमांचित करेंगी Ι यह कितना रोचक लगता है कि गणित का एक पैटर्न उन संख्याओं से बना है, जो उनके सामने पिछली दो संख्याओं का योग करती हैं--1, 1, 2, 3, 5, 8, 13 - और इसी तरह। ऐसे अनुक्रम का उपयोग कंप्यूटिंग, स्टॉक ट्रेडिंग, वास्तुकला और डिजाइन में किया जाता है। इस श्रेणी का आविष्कार करने का श्रेय लियोनार्डो फिबोनाची को दिया जाता है। उन्होंने रोमन अंकों को अरबी अंकों से बदलने में भी मदद की Ι उनके इस महत्त्वपूर्ण योगदान को सम्मान देने के लिए हर साल फाइबोनैचि दिवस 23 नवंबर को मनाया जाता हैΙ

हर साल मनाया जाता है

12वीं और 13वीं शताब्दी के दौरान पीसा के लियोनार्डो बोनाची सर्वश्रेष्ठ पश्चिमी गणितज्ञ कहलाते थे। इन्हें बाद में फिबोनाची के नाम से जाना गया Ι लियोनार्डो फिबोनाची का जन्म 1170 में इटली के पीसा में हुआ फिबोनाची ने दुनिया को कैसे बदला था। फिबोनाची शब्द फिलो बोनाची शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है, बोनाशियो का पुत्र। एक इतालवी व्यापारी के यहाँ जन्मे, युवा लियोनार्डो ने अपने पिता के साथ उत्तरी अफ्रीका की यात्रा की, जहाँ उन्हें हिंदू-अरबी अंक प्रणाली से अवगत कराया गया। ऐसी प्रणाली, जिसमें शून्य शामिल है और खुद को 10 प्रतीकों तक सीमित करती है, बोझिल रोमन अंक प्रणाली की तुलना में अधिक चुस्त और लचीली है।

फाइबोनैचि दिवस 23 नवंबर को मनाने का कारण उनकी ख़ोज को स्पष्ट करना है, क्योंकि 11/23, तारीख में संख्याएँ एक फाइबोनैचि अनुक्रम (1,1,2,3) बनाती हैं। अगर 1, 1, 2, 3 पर विचार करें, तो यह एक क्रम है। इसमें 2, इससे पहले की दो संख्याओं का योग है, अर्थात (1+1)। इसी तरह 3, इससे पहले की दो संख्याओं का योग है, अर्थात (1+2)। अपने अनुक्रम के लिए फिबोनाची के मूल उदाहरण ने खरगोशों की जनसंख्या वृद्धि पर विचार किया था। यदि एक जोड़ी से शुरू करते हैं, और हर महीने उस जोड़ी में एक नई जोड़ी होती है, तो खरगोशों की संख्या उसकी संख्या के पैटर्न के अनुरूप दर से बढ़ेगी, यह अनुक्रम लियोनार्डो फिबोनाची की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक है। 1202 में, फाइबोनैचि ने "लिबर अबासी" (गणित की पुस्तक) प्रकाशित की। इन्होंने ही यूरोप में हिंदू-अरबी अंकों को प्रसिद्ध बनाया। हालाँकि यह कतार पहली बार भारतीय गणित में दिखाई दी, जिसे विरहंका संख्या (Virahanka numbers) कहा जाता है, और इसे संस्कृत छंद से जोड़ा गया है। यह कतार स्वर्णिम अनुपात(golden ratio) और स्वर्ण त्रिभुज(golden triangle) से भी जुड़ी हुई है, जो प्रकृति में बार-बार देखने को मिलती है।

प्रकृति फाइबोनैचि पैटर्न से भरी हुई है, जो लगभग 1 से 1.6 है। यह अनुपात पेड़ों की शाखाओं के पैटर्न, जामुन में बीजों के वितरण, आकाशगंगाओं की सर्पिल भुजाओं (spiral arms) और कई अन्य प्राकृतिक और मानव-निर्मित चीजों में दिखाई देता है। यहाँ तक कि यह पैटर्न, डीएनए से लेकर तूफान में भी पाया जाता है। तभी कुछ लोगों ने फाइबोनैचि अनुक्रम को "प्रकृति का गुप्त कोड" भी कहा है।

सिर्फ प्रकृति या कोई जड़ वस्तु नहीं, अपितु मानव चेहरे की सुंदरता सुनहरे अनुपात(Golden Ratio of Beauty Phi Standards)) पर आधारित होती है, जिसकी nth ( एक संख्या, जो अपनेआप से गुणा फिबोनाची ने दुनिया को कैसे बदला होती है) शक्ति nth फाइबोनैचि संख्या बनाती है। तभी पिछले दिनों हुई एक ख़ोज ने बताया कि दुनिया की सबसे 'गणितीय' खूबसूरत महिला जोडी कॉमर है, जो पेशे से अंग्रेजी फिल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री भी है। गणितज्ञों का मानना था कि किसी व्यक्ति का अनुपात 1.618 (Phi) के जितना करीब होता है, वे अपनी विशेषताओं के अनुसार उतने ही अधिक आकर्षक होते हैं। परीक्षण के अनुसार, जोडी कॉमर का चेहरा शारीरिक पूर्णता का है। तथा होंठ और नाक की स्थिति के लिए उनका स्कोर 98.7 रहा है ।

विज्ञान और गणित का समागम हमें हमेशा से ही अचंभित करता है और आगे भी करता रहेगा। आज हम अपने दैनिक जीवन में जिस गणित को लागू करते हैं, उसमें कई महान लोगों ने योगदान दिया है, जैसे ब्रह्मगुप्ता, आर्यभट्ट, और श्रीनिवास रामानुजन को उनके योगदान के लिए आज भी याद किया जाता है। और लियोनार्डो फिबोनाची भी एक ऐसे व्यक्ति थे, जिनके फाइबोनैचि अनुकम के बारे में गाइ मर्ची का कहना है कि "फिबोनाची ने दुनिया को कैसे बदला आज फाइबोनैचि अनुक्रम यह समझने की कुंजी है कि प्रकृति कैसे डिजाइन करती है। और गोले के उसी सर्वव्यापी संगीत का एक हिस्सा, जो परमाणुओं, अणुओं, क्रिस्टल, गोले, सूर्य और आकाशगंगाओं में सामंजस्य बनाता है और ब्रह्मांड को गाता है।"

बच्चो के अनुसार गणित एक ऐसा विषय है, जो कठिन, भयानक और उलझा हुआ है। कुछ बड़े भी इसे पसंद नहीं करते, मगर यह ब्रह्माण्ड इसी गणित और विज्ञान से समझ में आ सकता है। अगर कोशिश की जाए तो यह रोचक बन सकता है। तभी फाइबोनैचि दिवस हमें यह देखने का अवसर देता है कि गणित हमारे चारों ओर किस तरह व्याप्त है। अगर कोई अपने परिवेश का निरीक्षण करने के लिए रुकें और अपने चारों ओर परिचित घुमावदार सतह(spiral surface ) को देखना शुरू कर दें तो, क्या पता वे भी लियोनार्डो फिबोनाची या कोई अन्य महान गणतिज्ञ की तरह दुनिया को कुछ अनोखा देने के काबिल बन जाए।

इतिहास मुझे हमेशा से ही रोमांचित करता है। स्कूल में यह मेरा मनपसंद विषय हुआ करता था। जब भी इतिहास के दरीचे में झांककर देखा तो लगा कि मानों हर कहानी मेरी तवज्जों चाहती है। तभी तो‌ एकांत में बैठी कहानी की तलाश कर लेती हूं । जो ज्यादा चुप है, उसे बात कर लेती हूं। जो कोलाहल मचा रही है, उसके शोर को समझ लेती हूं। कभी अतीत अछूता है, कभी अनकहा है। इसे भी किसी हमसफ़र की तलाश है। और मुझे खुशी है कि इसने मुझे चुना है।

फिबोनाची ने दुनिया को कैसे बदला

हमेशा से ही अंक अंकगणित एक दिलचस्प विषय रहा है Ι जितना हम अंकों की पहेली को सुलझाएँगे, वह उतना हमें रोमांचित करेंगी Ι यह कितना रोचक लगता है कि गणित का एक पैटर्न उन संख्याओं से बना है, जो उनके सामने पिछली दो संख्याओं का योग करती हैं--1, 1, 2, 3, 5, 8, 13 - और इसी तरह। ऐसे अनुक्रम का उपयोग कंप्यूटिंग, स्टॉक ट्रेडिंग, वास्तुकला और डिजाइन में किया जाता है। इस श्रेणी का आविष्कार करने का श्रेय लियोनार्डो फिबोनाची को दिया जाता है। उन्होंने रोमन अंकों को अरबी अंकों से बदलने में भी मदद की Ι उनके इस महत्त्वपूर्ण योगदान को सम्मान देने के लिए हर साल फाइबोनैचि दिवस 23 नवंबर को मनाया जाता हैΙ

हर साल मनाया जाता है

12वीं और 13वीं शताब्दी के दौरान पीसा के लियोनार्डो बोनाची सर्वश्रेष्ठ पश्चिमी गणितज्ञ कहलाते थे। इन्हें बाद में फिबोनाची के नाम से जाना गया Ι लियोनार्डो फिबोनाची का जन्म 1170 में इटली के पीसा में हुआ था। फिबोनाची शब्द फिलो बोनाची शब्द से लिया गया फिबोनाची ने दुनिया को कैसे बदला है, जिसका अर्थ होता है, बोनाशियो का पुत्र। एक इतालवी व्यापारी के यहाँ जन्मे, युवा लियोनार्डो ने अपने पिता के साथ उत्तरी अफ्रीका की यात्रा की, जहाँ उन्हें हिंदू-अरबी अंक प्रणाली से अवगत कराया गया। ऐसी प्रणाली, जिसमें शून्य शामिल है और खुद को 10 प्रतीकों तक सीमित करती है, बोझिल रोमन अंक प्रणाली की तुलना में अधिक चुस्त और लचीली है।

फाइबोनैचि दिवस 23 नवंबर को मनाने का कारण उनकी ख़ोज को स्पष्ट करना है, क्योंकि 11/23, तारीख में संख्याएँ एक फाइबोनैचि अनुक्रम (1,1,2,3) बनाती हैं। अगर 1, 1, 2, 3 पर विचार करें, तो यह एक क्रम है। इसमें 2, इससे पहले की दो संख्याओं का योग है, अर्थात (1+1)। इसी तरह 3, इससे पहले की दो संख्याओं का योग है, अर्थात (1+2)। अपने अनुक्रम के लिए फिबोनाची के मूल उदाहरण ने खरगोशों की जनसंख्या वृद्धि पर विचार किया था। यदि एक जोड़ी से शुरू करते हैं, और हर महीने उस जोड़ी में एक नई जोड़ी होती है, तो खरगोशों की संख्या उसकी संख्या के पैटर्न के अनुरूप दर से बढ़ेगी, यह अनुक्रम लियोनार्डो फिबोनाची की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक है। 1202 में, फाइबोनैचि ने "लिबर अबासी" (गणित की पुस्तक) प्रकाशित की। इन्होंने ही यूरोप में हिंदू-अरबी अंकों को प्रसिद्ध बनाया। हालाँकि यह कतार पहली बार भारतीय गणित में दिखाई दी, जिसे विरहंका संख्या (Virahanka numbers) कहा जाता है, और इसे संस्कृत छंद से जोड़ा गया है। यह कतार स्वर्णिम अनुपात(golden ratio) और स्वर्ण त्रिभुज(golden triangle) से भी जुड़ी हुई है, जो प्रकृति में बार-बार देखने को मिलती है।

प्रकृति फाइबोनैचि पैटर्न से भरी हुई है, जो लगभग 1 से 1.6 है। यह अनुपात पेड़ों की शाखाओं के पैटर्न, जामुन में बीजों के वितरण, आकाशगंगाओं की सर्पिल भुजाओं (spiral arms) और कई अन्य प्राकृतिक और मानव-निर्मित चीजों में दिखाई देता है। यहाँ तक कि यह पैटर्न, डीएनए से लेकर तूफान में भी पाया जाता है। तभी कुछ लोगों ने फाइबोनैचि अनुक्रम को "प्रकृति का गुप्त कोड" भी कहा है।

सिर्फ प्रकृति या कोई जड़ वस्तु नहीं, अपितु मानव चेहरे की सुंदरता सुनहरे अनुपात(Golden Ratio of Beauty Phi Standards)) पर आधारित होती है, जिसकी nth ( एक संख्या, जो अपनेआप से गुणा होती है) शक्ति nth फाइबोनैचि संख्या बनाती है। तभी पिछले दिनों हुई एक ख़ोज ने बताया कि दुनिया की सबसे 'गणितीय' खूबसूरत महिला जोडी कॉमर है, जो पेशे से अंग्रेजी फिल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री भी है। गणितज्ञों का मानना था कि किसी व्यक्ति का अनुपात 1.618 (Phi) के जितना करीब होता है, वे अपनी विशेषताओं के अनुसार उतने ही अधिक आकर्षक होते हैं। परीक्षण के अनुसार, जोडी कॉमर का चेहरा शारीरिक पूर्णता का है। तथा होंठ और नाक की स्थिति के लिए उनका स्कोर 98.7 रहा है ।

विज्ञान और गणित का समागम हमें हमेशा से ही अचंभित करता है और आगे भी करता रहेगा। आज हम अपने दैनिक जीवन में जिस गणित को लागू करते हैं, उसमें कई महान लोगों ने योगदान दिया है, जैसे ब्रह्मगुप्ता, आर्यभट्ट, और श्रीनिवास रामानुजन को उनके योगदान के लिए आज भी याद किया जाता है। और लियोनार्डो फिबोनाची भी एक ऐसे व्यक्ति थे, जिनके फाइबोनैचि अनुकम के बारे में गाइ मर्ची का कहना है कि "आज फाइबोनैचि अनुक्रम यह समझने की कुंजी है कि प्रकृति कैसे डिजाइन करती है। और गोले के उसी सर्वव्यापी संगीत का एक हिस्सा, जो परमाणुओं, अणुओं, क्रिस्टल, गोले, सूर्य और आकाशगंगाओं में सामंजस्य बनाता है और ब्रह्मांड को गाता है।"

बच्चो के अनुसार गणित एक ऐसा विषय है, जो कठिन, भयानक और उलझा हुआ है। कुछ बड़े भी इसे पसंद नहीं करते, मगर यह ब्रह्माण्ड इसी गणित और विज्ञान से समझ में आ सकता है। अगर कोशिश की जाए तो यह रोचक बन सकता है। तभी फाइबोनैचि दिवस हमें यह देखने का अवसर देता है कि गणित हमारे चारों ओर किस तरह व्याप्त है। अगर कोई अपने परिवेश का निरीक्षण करने के लिए रुकें और अपने चारों ओर परिचित घुमावदार सतह(spiral surface ) को देखना शुरू कर दें तो, क्या पता वे भी लियोनार्डो फिबोनाची या कोई अन्य महान गणतिज्ञ की तरह दुनिया को कुछ अनोखा देने के काबिल बन जाए।

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Education

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वैदिक भविष्य की ओर

वेदों का ज्ञान बना सकता है भारत की सामाजिक-आर्थिक प्रगति को टिकाऊ और उन्नत.

गीतांजलि किर्लोस्कर

  • 06 अप्रैल 2015,
  • (अपडेटेड 06 अप्रैल 2015, 5:53 PM IST)

गणित के क्षेत्र में फील्ड मेडल पाने वाले मंजुल भार्गव संस्कृत के प्राचीन ग्रंथों को इसका श्रेय इन शब्दों में देते हैः ''प्राचीन भारतीय ग्रंथों में गणित के सवाल भी कविता और गीत-संगीत के जरिए पेश किए जाते थे. कविता और गीत के अंत में आपको एहसास होता था कि कोई प्रमेय बता दी गई है, गणित की एक पहेली इसके माध्यम से रख दी गई है.'' जैन विद्वान और कवि हेमचंद्र ने फिबोनाची शृंखला की संख्याओं की खोज की थी, जो उनके दो सदी बाद पैदा हुए इतालवी गणितज्ञ लियोनार्दो फिबोनाची के नाम से जानी जाती हैं. प्राचीन भारत के गौरवमय अतीत के बारे में ऐसे साक्ष्यों के बाद वैदिक विमान की जरूरत किसे रह जाती है?

हमारे वैदिक अतीत को अपनी महानता स्थापित करने के लिए मिथकीय वैज्ञानिक उपलब्धियों के सहारे की कोई जरूरत नहीं है. यह तो उसके विचारों और मूल्यों में ही निहित है जो आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितना कई सदी पहले थे. स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ''वेदांत में पाप की अवधारणा नहीं है, सिर्फ भूल-चूक या गलतियों का ही जिक्र है. और सबसे बड़ी गलती भी यही है कि किसी को आप कमजोर, पापी, लाचार प्राणी बताएं, कहें कि आपके पास क्षमता नहीं है और आप यह नहीं कर सकते, वह नहीं कर सकते.'' मानवीय संभावनाओं के बारे में यह शानदार कथन है जो धर्म की भयाक्रांत करने वाली बंदिशों के बारे में चरमपंथियों की व्याख्या से कोसों दूर है.

दूसरे विश्व युद्ध के बाद जापान ने अपनी प्रबंधन प्रणालियों के विकास के लिए काइजेन जैसे प्राचीन ज्ञान का इस्तेमाल किया था, जिसका मतलब होता है ''बेहतरी के लिए बदलाव.'' इसकी मदद से उसने विशिष्ट और प्रभावशाली ''जापानी तरीका'' ईजाद किया था. सोच कर देखिए, हम भी अपने वेदों से विचार को लेकर एक विशिष्ट ''भारतीय तरीका'' खोज निकालते तो हमारे देश में चीजें कितनी बदल जातीं.

वेदों में इस पर खासा जोर है कि हर व्यक्ति समान रूप से ताकतवर और समर्थ होता है. अच्छे नेतृत्व की खासियत अनुयायियों को सक्षम बनाना है, न कि उनके ऊपर कुछ थोपना. मनुष्य की स्वाभाविक अवस्था ज्ञान की है, अज्ञान की नहीं. क्षमता और उत्पादकता के लिए वेद समरसता की बात करते हैं. यह विचार सार्वभौमिक स्तर पर साझा ज्ञान की अवधारणा से कितना मेल खाता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ''मैं कुछ करने का सपना देखता हूं, कुछ होने का नहीं.'' वेदों में विलक्षण क्षमताएं हासिल करने के फिबोनाची ने दुनिया को कैसे बदला चार रास्ते बताए गए हैं- कर्मी (निःस्वार्थ कर्म का रास्ता), भक्त (ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण), योगी (रहस्यवादी रास्ता) और ज्ञान (प्रज्ञा का रास्ता). ये रास्ते मिलकर ऐसी संरचनाओं का निर्माण कर सकेंगे जिनमें प्रतिभा पहचान और प्रबंधन के लिए नए मुहावरे गढऩे की ताकत हो.

कोलंबिया विश्वविद्यालय में संस्कृत के विद्वान शेल्डन आइ. पोलक ने कहा, ''अपने सांस्कृतिक परिवेश के विनाश को रोकने के लिए भारत के युवाओं को प्राचीन भारतीय मूल्यों को समझना होगा. यह भी कि कैसे वे वर्तमान संदर्भों में अभिव्यक्त होते हैं. उन्हें आधुनिक विषयों में समाहित करना होगा, भारत के यथार्थ में निबद्ध उन विचारों को नए सिरे से आत्मसात करना होगा जो शाश्वत हैं.''

ग्रीक@लैटिन ग्रंथों का अध्ययन पश्चिम की शैक्षणिक परंपरा का हिस्सा रहा है. सवाल उठता है कि पश्चिम के कामयाब लोगों की पीढिय़ों को ग्रीक@लैटिन ग्रंथों ने जो दिया, क्या प्राचीन भारतीय ग्रंथ ऐसा हमारी आने वाली पीढिय़ों के लिए कर सकेंगे?

शुरुआत के तौर पर हम यह कर सकते हैं कि वेदों का एक सार-संक्षेप तैयार करके स्कूलों में लगवाएं ताकि हमारे बच्चों को समग्र शिक्षा मिल सके. आज के युवा डिजिटल विश्व के नागरिक हैं. वे अक्सर जिन विचारों को पसंद करते हैं और अपनाते हैं, वे डिजिटल जगत से प्रभावित होते हैं. स्कूल अपने यहां रचनात्मक ई-शिक्षण कैप्सूल निर्मित कर सकते हैं जिनमें प्राचीन भारतीय साहित्य और दर्शन को मुहावरों के माध्यम से उन्हें समझाया गया हो. इसके लिए वेक्टर और मोबाइल ऐप्लिकेशन का इस्तेमाल भी किया जा सकता है.

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से प्रकाशित मूर्ति क्लासिकल लाइब्रेरी में चयनित प्राचीन भारतीय साहित्य का विश्व स्तरीय अनुवाद खूबसूरत संस्करणों में प्रस्तुत किया गया है. साथ में मूल पाठ भी प्रकाशित है. अब दुनिया भर के कॉलेज अपने छात्रों को भारतीय ग्रंथों का शिक्षण इनके माध्यम से दे सकते हैं.

मुझे रामायण, महाभारत और भगवत् गीता की वे कहानियां, वैदिक ऋ चाएं, उर्दू शायरी और अमर चित्र कथा के वे संग्रह अब तक याद हैं जो मेरी दादी मुझे सुनाया करती थीं. इन कहानियों से फिबोनाची ने दुनिया को कैसे बदला जो मूल्य मुझे प्राप्त हुए, वे आज तक भारतीयता के प्रति मेरे भीतर मौजूद गौरव और भावनाओं को जगाए रखते हैं. मैंने इनका गहरा अध्ययन किया होता तो मेरी भारतीय पहचान पश्चिमी मूल्यों के प्रभाव से धुंधली नहीं पड़ पाती.

वेदों का ज्ञान आधुनिक भारत पर सकारात्मक असर डालने में सक्षम है. इससे विचारों में एकरूपता, सामाजिक विभाजनों को दूर करने और विशुद्ध भारतीय तरीके निर्मित करने के रास्ते खुल सकते हैं.

भारत का राजनैतिक उभार अब हो रहा है. क्या इसमें भारत की विरासत कोई भूमिका निभा सकती है? क्या हम ऐसा कोई आंदोलन खड़ा कर सकते हैं जो न सिर्फ हमारे मूल्यों को संरक्षित कर सके बल्कि उनका इस्तेमाल करके हम अपने सामाजिक-आर्थिक विकास को भी टिकाए रख सकें और गति प्रदान कर सकें जिससे भारत की शाश्वत प्रज्ञा और आध्यात्मिक शक्ति की पुनस्र्थापना हो? हमारा भविष्य हमारे प्राचीन अतीत के प्रति एक श्रद्धांजलि बन सकता है. तब हमारा वैदिक अतीत हमारे वैदिक भविष्य में तब्दील हो जाएगा.

फाइबोनैचि रिट्रेसमेंट: अर्थ, स्तर, फिबोनाची ने दुनिया को कैसे बदला फिबोनाची ने दुनिया को कैसे बदला गणना

फिबनाची रिट्रेसमेंट शब्द का उपयोग हॉरिजॉन्टल लाइन्स को संदर्भित करने के लिए किया जाता है जो ठीक उसी जगह पर संकेत करती हैं जहां रेजिस्टेंस और सपोर्ट की संभावना होती है। यह शब्द फिबनाची अनुक्रम से लिया गया है।

फिबनाची रिट्रेसमेंट स्तर प्रत्येक एक प्रतिशत से जुड़े होते हैं जो इंडिकेट करता है कि किसी दी गई सिक्योरिटी का प्राइस किस हद तक रिट्रेस किया गया है। आंकड़ों को देखते हुए, फिबनाची रिट्रेसमेंट लेवल 23.6%, 38.2%, 61.8% और 78.6% है। इसके अतिरिक्त 50% को फिबनाची अनुपात के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है, फिर भी यह भी कार्यरत है।

इस इंडिकेटर की वैल्यू इस तथ्य पर आधारित है कि इसका उपयोग दो प्रमुख प्राइस पॉइंट्स के बीच किया जा फिबोनाची ने दुनिया को कैसे बदला सकता है - उदाहरण के लिए, एक उच्च और निम्न। जब इंडिकेटर को नियोजित किया जाता है, तो दोनों पॉइंट्स में से प्रत्येक के बीच के लेवल्स बनाए जाते हैं।

एक घटना में कि स्टॉक की कीमत 100 रुपये से बढ़ जाती है और फिर 23.6 रुपये तक गिर जाती है। ऐसे में, प्राइस 23.6% तक रिट्रेस हो जाता है जो एक फिबोनाची संख्या होगी। यहां यह ध्यान देने योग्य बात यह है कि फिबनाची संख्याएं हर चीज़ में पाई जाती हैं जैसे प्रकृति, जीवन, फूल और वास्तुकला| इस तथ्य के कारण, कई व्यापारियों की राय है कि ये संख्या वित्तीय बाजारों में भी रेलेवेंट हैं।

फिबनाची रिट्रेसमेंट लेवल्स के इतिहास की खोज

गणितज्ञ लियोनार्डो पिसानो बिगोलो, जिन्हें लियोनार्डो फिबनाची के नाम से जाना जाता था, इन लेवल्स का नाम उनके नाम पर रखा गया है। लेकिन यहां यह स्पष्ट करना महत्वपूर्ण है कि उन्हें फिबनाची अनुक्रम के निर्माण का श्रेय नहीं दिया जाता। ये नंबर वास्तव में भारतीय व्यापारियों द्वारा यूरोपीय व्यापारियों के लिए इंट्रोड्यूस किए गए थे। प्राचीन भारत ने देखा कि ये लेवल 450 और 200 ईसा पूर्व के बीच तैयार किए गए थे।

आचार्य विरहंका को फिबनाची संख्या विकसित करने और 600 ईसवीं में उनके अनुक्रम को निर्धारित करने का श्रेय दिया जाता है। उनकी खोज ने गोपाल और हेमचंद्र जैसे अन्य भारतीय गणितज्ञों के लिए मार्ग प्रशस्त किया।

फिबनाची रिट्रेसमेंट लेवल्स के पीछे के फॉर्मूले और कैलकुलेशन को समझना

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि फिबनाची रिट्रेसमेंट लेवल्स पर लागू होने वाला कोई फार्मूला नहीं है। इसके बजाय, इन इंडिकेटर्स को चार्ट में जोड़ने के बाद, उपयोगकर्ता को दो बिंदुओं को चुनना होगा। फिर वहां लाइन्स खींची जाती हैं जहाँ उस मूवमेंट का प्रतिशत होता है।

चूंकि फिबनाची रिट्रेसमेंट लेवल्स के लिए कोई फार्मूला नहीं है, इसलिए कुछ भी कैलकुलेट करने की आवश्यकता नहीं है। वे केवल विचाराधीन प्राइस रेंज के प्रतिशत का उल्लेख करते हैं।

हालांकि, फिबनाची अनुक्रम की उत्पत्ति काफी आकर्षक है और इसे गोल्डन रेश्यो से लिया गया है जो एक संख्या अनुक्रम को संदर्भित करता है| ये अनुक्रम शून्य से शुरू होता है और उसके बाद एक होता है। अनुक्रम में प्रत्येक बाद की संख्या इससे पहले मौजूद दो संख्याओं को जोड़कर प्राप्त की जाती है। यह स्ट्रिंग काउंट अनिश्चित है और निम्न तरीके से शुरू होता है।

0, 1, 1, 2, 3, 5, 8, 13, 21, 34, 55, 89, 144, 233, 377, 610, 987…

नंबर स्ट्रिंग वह जगह है जहां से फिबनाची रिट्रेसमेंट लेवल तैयार किए जाते हैं। एक बार जब यह क्रम शुरू हो जाता है, यदि आप इसमें एक संख्या को अगले एक से विभाजित करते हैं, तो आप 0.618 या 61.8 प्रतिशत पर पहुंचेंगे। यदि आप इसके बजाय किसी संख्या को उसके दायीं ओर दूसरी संख्या से विभाजित करना चुनते हैं, तो आप 0.382 या 38.2 प्रतिशत पर पहुंचेंगे। इन लेवल्स के भीतर प्रत्येक अनुपात इस नंबर स्ट्रिंग से संबंधित एक प्रकार की गणना पर आधारित है। यह 50 प्रतिशत के लिए सही नहीं है क्योंकि इसे फिबनाची संख्या नहीं माना जाता है।

फिबनाची रिट्रेसमेंट लेवल क्या दर्शाता है?

इन लेवल्स का उपयोग प्राइस टारगेट निर्धारित करने, एंट्री आर्डर देने और यह भी पता लगाने के लिए किया जा सकता है कि स्टॉप-लॉस लेवल क्या होना चाहिए। इसे बेहतर ढंग से समझने के लिए मान लीजिए एक ट्रेडर जो स्टॉक की जांच करता है कि वह केवल 38.2% के लेवल पर वापस जाने के लिए उच्च लेवल पर चला गया है। इसके बाद यह फिर से ऊपर की ओर बढ़ना शुरू कर देता है। इस तथ्य के अनुसार कि उछाल एक फिबनाची लेवल पर हुआ, जबकि एक अपट्रेंड सक्रिय था, व्यापारी स्टॉक खरीदना चुनता है। अब, वह नीचे गिरने वाले रिटर्न के रूप में स्टॉप लॉस को 38.2% के लेवल पर सेट कर सकता है, जो कि रैली के विफल होने का संकेत हो सकता है।

तकनीकी विश्लेषण भी फिबनाची लेवल्स को नियोजित करता है जैसा कि इलियट वेव सिद्धांत और गार्टले पैटर्न से स्पष्ट है। एक बार जब प्राइस मूवमेंट ऊपर या नीचे चला जाता है, तो तकनीकी विश्लेषण के प्रत्येक रूप में पाया जाता है कि उलटफेर कुछ प्रमुख फिबनाची लेवल्स के करीब होता है।

मूविंग एवरेज के विपरीत, फिबनाची रिट्रेसमेंट लेवल स्थिर होते हैं जिससे उन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है| इनके साथ, यदि कीमतों में उतार-चढ़ाव का अनुभव होता है, तो व्यापारी और निवेशक विवेकपूर्ण ढंग से अनुमान लगा सकते हैं और प्रतिक्रिया कर सकते हैं।

फिबनाची रिट्रेसमेंट लेवल की बाधाओं को समझना

हालांकि ये लेवल यह इंडीकेट करने में मदद करते हैं कि स्टॉक की कीमत को सपोर्ट या रेजिस्टेंस कहां मिल सकता है| यह नहीं कहा जा सकता है कि कीमत वास्तव में वहीं रुक जाएगी। इस तथ्य के कारण निवेशकों और व्यापारियों को समान रूप से फिबनाची रिट्रेसमेंट रणनीति पर निर्भर होने के बजाय फिबोनाची ने दुनिया को कैसे बदला ऑल्टरनेट कन्फर्मेशन सिग्नल्स का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

डिस्क्लेमर: इस ब्लॉग का उद्देश्य है, महज जानकारी प्रदान करना न कि इन्वेस्टमेंट के बारे में कोई सलाह/सुझाव प्रदान करना और न ही किसी स्टॉक को खरीदने -बेचने की सिफारिश करना।

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