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अनुबंध मात्रा

अनुबंध मात्रा

अनुबंध खेती परिभाषा

निर्वाह और वाणिज्यिक दोनों फसलों के लिए सदियों से देश के विभिन्न भागों में विभिन्न प्रकार की अनुबंध कृषि की व्यवस्था प्रचलित है। गन्ना, कपास, चाय, कॉफी आदि वाणिज्यिक फसलों में हमेशा से अनुबंध कृषि या कुछ अन्य रूपों को शामिल किया है। यहां तक कि कुछ फल फसलों और मत्स्य पालन के मामले में अक्सर अनुबंध कृषि समझौते किए जाते हैं, जो मुख्य रूप से इन वस्तुओं के सट्टा कारोबार से जुड़े होते हैं। आर्थिक उदारीकरण के मद्देनजर अनुबंध कृषि की अवधारणा का महत्व बढ़ रहा है, विभिन्न राष्ट्रीय या बहुराष्ट्रीय कंपनियां प्रौद्योगिकियां और पूंजी उपलब्ध कराने के द्वारा विभिन्न बागवानी उत्पादों के विपणन के लिए किसानों के साथ अनुबंध में प्रवेश कर रहे हैं।

आम तौर पर अनुबंध कृषि को पूर्व निर्धारित कीमतों पर, उत्पादन और आगे के समझौतों के अंतर्गत कृषि उत्पादों की आपूर्ति के लिए किसानों और प्रसंस्करण और/या विपणन कंपनियों के बीच एक समझौते के रूप में परिभाषित किया गया है। इस व्यापक ढांचे के भीतर, अनुबंध में किए गए प्रावधानों की गहराई और जटिलता के अनुसार संविदात्मक व्यवस्था की तीव्रता के आधार अनुबंध मात्रा अनुबंध मात्रा अनुबंध मात्रा पर अनुबंध कृषि के विभिन्न प्रकार प्रचलित हैं। कुछ विपणन पहलू तक सीमित हो सकते हैं या कुछ में प्रायोजक द्वारा संसाधनों की आपूर्ति और उत्पादकों की ओर से समझौते के द्वारा फसल प्रबंधन विनिर्देशों का पालन करने के लिए विस्तारित हो सकते है। इस तरह की व्यवस्था का आधार किसानों की तरफ से क्रेता को मात्रा और निर्धारित गुणवत्ता के मानकों पर एक विशेष वस्तु प्रदान करने की प्रतिबद्धता और प्रायोजक की ओर से किसान के उत्पादन का समर्थन और वस्तु की खरीद करने की एक प्रतिबद्धता है।

अनुबंध कृषि (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग) : अनुबंध कृषि से संबंधित नियामक संरचना

प्रश्न: अनुबंध कृषि (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग) बैकवर्ड लिंकेज को सुदृढ़ कर भारत में संगठित खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के विस्तार में सहायता कर सकती है। टिप्पणी कीजिए। भारत में अनुबंध कृषि से संबंधित समस्याओं को हल करने हेतु वर्तमान नियामक संरचना में क्या परिवर्तन आवश्यक है?

दृष्टिकोण

  • अनुबंध कृषि को संक्षेप में परिभाषित कीजिए।
  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए अनुबंध कृषि के महत्व पर चर्चा कीजिए।
  • वर्तमान नियामक संरचना पर चर्चा कीजिए।
  • अनुबंध कृषि को सुविधा प्रदान करने हेतु आवश्यक परिवर्तनों का सुझाव दीजिए।

उत्तर

अनुबंध कृषि के तहत, खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों एवं निर्यातकों तथा कृषकों या किसान उत्पादक संगठनों (FPO) जैसे उत्पादकों के मध्य फसल कटाई से पूर्व सम्पन्न किसी समझौते के आधार पर कृषिगत उत्पादन किया जाता है। अनुबंध, उत्पादक के लिए बाजार जोखिम को कम करते हैं क्योंकि उसे पूर्व निर्धारित मूल्य पर निश्चित मात्रा के विक्रय का आश्वासन प्राप्त होता है। खरीददार को वांछित गुणवत्ता युक्त और आवश्यक मात्रा में कच्ची सामग्री की आपूर्ति की सुनिश्चितता के रूप में लाभ प्राप्त होता है।

खाद्य प्रसंस्करण हेतु अनुबंध कृषि का महत्व

  • भारत विभिन्न मौसमों में विविध फसलों का उत्पादन करने वाली कृषि-जलवायु परिस्थितियों की व्यापक विविधता से संपन्न है।
  • अनुबंध कृषि, योजनाबद्ध प्रणाली और नियमित रूप से खेतों को खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र से जोड़कर इस लाभ का उपयोग करती है।
  • यह भारतीय किसानों को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं से जोड़ती है।
  • यह कृषि को एक संगठित गतिविधि के रूप में स्थापित करती है और उत्पादन की गुणवत्ता एवं मात्रा में सुधार करने में सहायता करती है।
  • यह छोटे एवं सीमांत भारतीय कृषकों हेतु आय का एक निश्चित स्रोत सुनिश्चित करती है।
  • यह उत्पादक के लिए बाजार मूल्य और मांग के उतार-चढ़ाव के जोखिम और खरीददार के लिए गुणवत्तापूर्ण उत्पादन की अनुपलब्धता के जोखिम को कम करती है।

वर्तमान नियामक संरचना के समक्ष विद्यमान मुद्दे

अनुबंध सामान्यतः खरीददारों के रूप में बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों और उत्पादकों के रूप में छोटे किसानों के मध्य सम्पन्न किए जाते हैं, अतः इनमें एक अंतर्निहित असमानता होती है। इसके अतिरिक्त, अनुबंधों के उल्लंघन की लागत कंपनी के लिए अपेक्षाकृत कम महत्व रखती है किन्तु कृषक के लिए यह अत्यधिक हानिकारक हो सकती है। इस प्रकार की समस्याएं एक दुर्बल विनियामक और प्रवर्तन तंत्र के कारण उत्पन्न होती हैं।

  • अधिकांश राज्यों में पंजीकरण और विवाद निपटान प्राधिकरणों के रूप में, कृषि उत्पाद विपणन समितियों (APMCs) की भूमिका को अस्वीकार करना।
  • ओवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत आरोपित स्टॉकहोल्डिंग की सीमा से सम्बंधित प्रावधान, जो खरीददारों को अनुबंधों में शामिल होने से रोकते हैं।
  • संविधान में “अनुबंध”को समवर्ती सूची में रखने और “कृषि” को राज्य सूची में रखे जाने से इसके प्रवर्तन में जटिलताएं उत्पन्न होती हैं।
  • अनुबंध से संबंधित विवादों के त्वरित निपटान हेतु अपर्याप्त तंत्र।

आवश्यक उपाय

उपर्युक्त मुद्दों पर विचार करते हुए, सरकार द्वारा मॉडल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट, 2018 का प्रारूप जारी किया गया है जिसके अंतर्गत निम्नलिखित प्रावधान शामिल हैं:

  • अनुबंध कृषि को APMCs के अनुबंध मात्रा पर्यवेक्षण से बाहर रखना।
  • विवादों के त्वरित निपटान हेतु समर्पित विवाद निपटान तंत्र।
  • कृषकों को मूल्य सुरक्षा और किसी भी पक्षकार द्वारा अनुबंध का उल्लंघन करने की स्थिति में दंडात्मक प्रावधान।
  • किसानों की सुरक्षा हेतु, कृषक की भूमि के स्वामित्व का हस्तांतरण अनुबंध करने वाली कंपनियों को किये जाने पर प्रतिबंध।
  • अनुबंध कृषि के तहत खरीदी गई कृषि उपज पर स्टॉकहोल्डिंग सीमाओं का लागू न होना।

हालांकि नये प्रारूप अधिनियम के तहत अनेक कमियों को दूर करने का प्रयास किया गया है, किन्तु यह समझना महत्वपूर्ण है कि भारतीय कृषि की मूल समस्या इसकी बाजार संरचना की प्रकृति है। अतः अधिनियम के तहत विपणन सुधारों को भी शामिल किया जाना चाहिए। ये सुधार बैकवर्ड इंटीग्रेशन की एक बड़ी मात्रा का सृजन करेंगे।

अनुबंध मात्रा

व िकिपीडिया – व ित्त में, अंतर के लिए एक अनुबंध (सीएफडी) दो पक्षों के बीच एक अनुबंध है, जिसे आमतौर पर "खरीदार" और "विक्रेता" के रूप में वर्णित किया जाता है, जिसमें यह निर्धारित किया गया है कि खरीदार विक्रेता को एक परिसंपत्ति के वर्तमान मूल्य और अनुबंध समय पर इसके मूल्य के बीच अंतर का भुगतान करेगा (यदि अंतर अनुबंध मात्रा नकारात्मक है, तो विक्रेता खरीदार को भुगतान करता है)।
"अंतर के लिए अनुबंध"– दो पक्षों के बीच एक अनुबंध है:
अनुबंध का आपूर्तिकर्ता और निवेशक (अनुबंध का खरीदार) जिसमें विक्रेता को विशिष्ट परिसंपत्तियों (जैसे शेयर, बांड, मुद्राओं, कच्चे माल, माल आदि) के वर्तमान मूल्य (अनुबंध के दिन) के बीच अंतर का भुगतान करने के लिए माना जाता है और अनुबंध निपटान तिथि में उनका मूल्य (यदि अंतर नकारात्मक है, तो खरीदार विक्रेता को इस मूल्य का भुगतान करता है)। सीएफडी लीवरेज (तथाकथित ऐवरेज) का उपयोग करते हैं। "

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शब्द “अंतर के लिए अनुबंध” – सीएफडी का अर्थ अनुबंध मात्रा है एक निवेशक और एक दलाल के बीच एक अनुबंध जो दोनों पक्षों को अनुबंध की शुरुआती कीमत और इसके समापन के बीच संपत्ति के मूल्य में अंतर के बराबर राशि के निपटान के लिए बाध्य करता है। पद।

CFD के लिए कई महत्वपूर्ण फायदे हैं जो उन्हें निवेशकों के लिए दिलचस्प बनाते हैं:

  • वे आपको सभी श्रेणियों के उपकरणों में निवेश करने की अनुमति देते हैं, जिनमें शामिल हैं मुद्राएं, स्टॉक, कमोडिटीज, फंड इत्यादि।
  • वे प्रत्येक संपत्ति की कीमत में वृद्धि और कमी पर कमाने का अवसर देते हैं
  • सीएफडी लीवरेज का उपयोग करते हैं (लीवरेज्ड हैं)
  • वे डेरिवेटिव हैं

सीएफडी के मामले में “डेरिवेटिव” का क्या अर्थ है?
अनुबंध का खरीदार वास्तव में अंतर्निहित इंस्ट्रूमेंट का मालिक नहीं बन जाता है, अर्थात वह इसे शाब्दिक रूप से नहीं खरीदता है, लेकिन केवल यह अनुमान लगाता है कि किसी दी गई संपत्ति की कीमत निकट भविष्य में घट जाएगी या बढ़ जाएगी। अपनी भविष्यवाणियों के आधार पर, वह एक दलाल के साथ अंतर के लिए एक अनुबंध समाप्त करता है जिसमें वह अपनी स्थिति को परिभाषित करता है। इस समाधान के लिए धन्यवाद, निवेशक उस राशि के केवल एक छोटे हिस्से से संतुष्ट है जो एक स्थिति को खोलने के लिए एक क्लासिक स्टॉक एक्सचेंज के मामले में आवश्यक होगा।

क्यों, सीएफडी में निवेश करके, हम बढ़ती / गिरती कीमतों पर पैसा बना सकते हैं या खो सकते हैं?
क्योंकि अनुबंध के समापन के समय, निवेशक यह निर्धारित करता है कि निकट भविष्य में उसकी संपत्ति की कीमत गिर जाएगी या बढ़ जाएगी।

यदि, उनकी अटकलों के अनुसार, साधन की कीमत बढ़ जाती है, तो वह एक विकल्प (BUY) का चयन करके “लंबी” स्थिति लेता है और हर बार संपत्ति की कीमत बढ़ने पर लाभ कमाता है।

हालांकि, अगर उसे पता चलता है कि उपकरण की कीमत गिर जाएगी, तो वह एक विकल्प (बिक्री – सेल) का चयन करके “संक्षिप्त” स्थिति लेता है और हर बार संपत्ति की कीमत गिरने पर लाभ कमाता है।

अगर परिसंपत्ति अनुबंध मात्रा की कीमतें निवेशक की भविष्यवाणी की विपरीत दिशा में चलती हैं, तो वह अपनी निवेशित पूंजी खो देगा।

इस पहलू को अनुबंध मात्रा बेहतर ढंग से समझाने के लिए, आइए एक उदाहरण का उपयोग करें:
यदि कोई निवेशक यह अनुमान लगाता है कि उनके तेल की कीमत में गिरावट आएगी, तो वे एक “लघु” स्थिति खोलेंगे, अर्थात एक तेल CFD को बेचेंगे (बेचेंगे) और तेल की कीमत में गिरावट आएगी। इसके विपरीत, यदि तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो निवेशक को नुकसान होता है। घाटे और लाभ की मात्रा यातायात की मात्रा और बाजार पर होने वाली व्यापारिक मात्रा पर निर्भर करती है, अर्थात् अनुबंध के खुलने के समय मूल्य के संबंध में कितने% मूल्य में परिवर्तन हुआ।

CG News : प्रदेश में धान खरीदी के साथ-साथ कस्टम मिलिंग के लिए तेजी से हो रहा उठाव

रायपुर। छत्तीसगढ़ में समर्थन मूल्य पर की जा रही धान खरीदी के साथ-साथ कस्टम मिलिंग के लिए धान का उठाव भी लगातार किया जा रहा है। खाद्य विभाग द्वारा जिन जिलों में राइस मिलों की संख्या कम होने के कारण मिलिंग क्षमता कम है, और आवक ज्यादा है, वहां अन्य जिलों के राइस मिलरों को जोड़ा गया है, जिससे कि कस्टम मिलिंग का काम तेजी से हो सके। प्रदेश में अब तक उपार्जित 19.39 लाख मीट्रिक टन धान में से लगभग 16.08 लाख मीट्रिक टन धान का डीओ जारी किया गया है। इनमें से 10 लाख मीट्रिक टन से भी अधिक धान का उठाव समितियों से किया जा चुका है।

खाद्य विभाग के अधिकारियों ने बताया कि प्रदेश में उपार्जित धान के त्वरित उठाव व निराकरण हेतु मिल पंजीयन के संबंध में दिशा-निर्देश भी राज्य सरकार द्वारा धान खरीदी प्रारंभ होने के पूर्व ही दिनांक 27 सितम्बर 2022 को प्रसारित कर धान के उठाव, निराकरण व कस्टम मिलिंग हेतु मिलों के पंजीयन व अनुमति, अनुबंध का कार्य भी धान उपार्जन प्रारंभ होने के साथ ही शुरू कर दिया गया था। चालू सीजन में अब तक लगभग 1949 मिलों के पंजीयन की कार्यवाही की गई है। अब तक उपार्जित 19.39 लाख मीट्रिक टन धान के विरूद्ध लगभग 153.10 लाख मीट्रिक टन धान अनुबंध मात्रा की मिलिंग अनुमति एवं 149.18 लाख मीट्रिक टन धान का अनुबंध जारी किया जा चुका है।

अधिकारियों ने बताया कि प्रदेश में पूरे खरीफ वर्ष में अनुमानित धान उपार्जन की मात्रा से भी अधिक मात्रा में मिलिंग की अनुमति व अनुबंध जारी किया जा चुका है। साथ ही प्रदेश में उपार्जित धान के उठाव हेतु डीओ जारी करने एवं धान के उठाव का कार्य भी प्रारंभ किया जा चुका है। प्रदेश में अब तक उपार्जित 19.39 लाख मीट्रिक टन धान में से लगभग 16.08 लाख मीट्रिक टन धान का डीओ जारी किया जा चुका है, जो उपार्जित धान का लगभग 83 प्रतिशत है। जारी डीओ के विरूद्ध 10 लाख मीट्रिक टन से भी अधिक धान का उठाव समितियों से किया जा चुका है, जो जारी डीओ का लगभग 63 प्रतिशत है। विगत एक सप्ताह में प्रदेश में प्रतिदिन लगभग 1.18 लाख मीट्रिक टन के दैनिक औसत से 8.30 लाख मीट्रिक टन धान का डीओ जारी किया गया है। इसी तरह प्रतिदिन लगभग 87 हजार मीट्रिक टन के औसत से 6.06 लाख मीट्रिक टन धान का समितियों से सीधे मिलरों द्वारा उठाव हुआ है।

गौरतलब है कि प्रदेश में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर पंजीकृत किसानों से धान उपार्जन हेतु अनुबंध मात्रा इस वर्ष लगभग 25.91 लाख किसानों के 31.81 लाख हेक्टेयर रकबे का पंजीयन किया गया है, जो राज्य बनने के बाद से अब तक का सर्वाधिक पंजीयन है। प्रदेश में अब तक लगभग 5.42 लाख किसानों से कुल 19.39 लाख मीट्रिक टन धान का उपार्जन किया जा चुका है।

कम मिलिंग क्षमता के जिलों में धान उठाव के अनुबंध मात्रा अनुबंध मात्रा लिए मिलर्स संलग्न
खैरागढ़-छुईखदान-गण्डई, मोहला-मानपुर-अम्बागढ़चौकी और राजनांदगांव जिले में धान के तेजी से उठाव एवं कस्टम मिलिंग के लिए जांजगीर, सक्ती, सारंगढ़-बिलाईगढ़, दुर्ग, धमतरी और रायपुर के राइस मिलरों को संलग्न किया गया है। इसी प्रकार कवर्धा जिले में धान के तेजी से उठाव एवं कस्टम मिलिंग के लिए बिलासपुर, गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही, कोरबा, दुर्ग और रायपुर के राइस मिलरों को संलग्न किया गया है।

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