रेखांकन और चार्ट

मौलिक विश्लेषण क्या है

मौलिक विश्लेषण क्या है

IGB कमर्शियल रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (KLSE: IGBCR) में निवेशकों को दुर्भाग्य से पिछले वर्ष की तुलना में 14% का नुकसान हुआ है

इंडेक्स फंड में निष्क्रिय निवेश यह सुनिश्चित करने का एक अच्छा तरीका है कि आपका खुद का रिटर्न मोटे तौर पर समग्र बाजार से मेल खाता हो। जबकि व्यक्तिगत स्टॉक बड़े विजेता हो सकते हैं, संतोषजनक रिटर्न उत्पन्न करने में बहुत अधिक असफल होते हैं। उस नकारात्मक जोखिम को द्वारा महसूस किया गया था आईजीबी वाणिज्यिक रियल एस्टेट निवेश ट्रस्ट (केएलएसई: आईजीबीसीआर) पिछले वर्ष की तुलना में शेयरधारकों, शेयर की कीमत में 18% की गिरावट आई है। यह बाजार में 5.0% की गिरावट के साथ खराब विपरीत है। चूंकि मौलिक विश्लेषण क्या है IGB कमर्शियल रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट को कई वर्षों से सूचीबद्ध नहीं किया गया है, बाजार अभी भी सीख रहा है कि व्यवसाय कैसा प्रदर्शन करता है।

इसे ध्यान में रखते हुए, यह देखने लायक है कि क्या कंपनी मौलिक विश्लेषण क्या है के अंतर्निहित बुनियादी सिद्धांत दीर्घकालिक प्रदर्शन का चालक रहे हैं, या यदि कुछ विसंगतियां हैं।

बफेट को उद्धृत करने के लिए, ‘जहाज दुनिया भर में चलेंगे लेकिन फ्लैट अर्थ सोसाइटी फल-फूल जाएगी। बाजार में कीमत और मूल्य के बीच व्यापक विसंगतियां बनी रहेंगी…’ एक त्रुटिपूर्ण लेकिन उचित तरीका यह आकलन करने का है कि किसी कंपनी के आसपास की भावना कैसे बदल गई है, प्रति शेयर आय (ईपीएस) की तुलना शेयर की कीमत से करना है।

लाभांश के बारे में क्या?

किसी दिए गए स्टॉक के लिए कुल शेयरधारक रिटर्न, साथ ही शेयर मूल्य रिटर्न पर विचार करना महत्वपूर्ण है। टीएसआर किसी भी लाभांश के साथ किसी भी स्पिन-ऑफ या रियायती पूंजी वृद्धि के मूल्य को शामिल करता है, इस धारणा के आधार पर कि लाभांश का पुनर्निवेश किया जाता है। तो उन कंपनियों के लिए जो एक उदार लाभांश का भुगतान करती हैं, टीएसआर अक्सर शेयर मूल्य वापसी की तुलना में बहुत अधिक होता है। जैसा कि होता है, पिछले 1 साल के लिए IGB कमर्शियल रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट का TSR -14% था, जो पहले बताए गए शेयर मूल्य रिटर्न से अधिक है। कंपनी द्वारा भुगतान किए गए लाभांश ने इस प्रकार बढ़ावा दिया है कुल शेयरधारक वापसी।

एक अलग दृष्टिकोण

IGB कमर्शियल रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट के शेयरधारक वर्ष के लिए 14% नीचे हैं (यहां तक ​​कि लाभांश सहित), बाजार में 5.0% के नुकसान से भी बदतर। यह निराशाजनक है, लेकिन यह ध्यान में रखने योग्य है कि बाजार-व्यापी बिक्री से मदद नहीं मिली होगी। पिछले तीन महीनों में स्टॉक में 6.3% की गिरावट के साथ, बाजार को यह विश्वास नहीं हो रहा है कि कंपनी ने अपनी सभी समस्याओं का समाधान कर लिया है। इस स्टॉक के अपेक्षाकृत छोटे इतिहास को देखते हुए, हम तब तक बहुत सावधान रहेंगे जब तक कि हम कुछ मजबूत व्यावसायिक प्रदर्शन नहीं देख लेते। हालांकि बाजार की स्थितियों के शेयर की कीमत पर पड़ने वाले विभिन्न प्रभावों पर विचार करना उचित है, लेकिन ऐसे अन्य कारक भी हैं जो और भी महत्वपूर्ण हैं। मामले में मामला: हमने देखा है आईजीबी वाणिज्यिक रियल एस्टेट निवेश ट्रस्ट के लिए 2 चेतावनी संकेत आपको अवगत होना चाहिए।

लेकिन ध्यान दें: IGB कमर्शियल रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट खरीदने के लिए सबसे अच्छा स्टॉक नहीं हो सकता है. तो इस पर एक नज़र डालें नि: शुल्क पिछली आय वृद्धि (और आगे विकास पूर्वानुमान) वाली दिलचस्प कंपनियों की सूची।

कृपया ध्यान दें, इस लेख में उद्धृत बाजार रिटर्न उन शेयरों के बाजार भारित औसत रिटर्न को दर्शाता है जो वर्तमान में MY एक्सचेंजों पर व्यापार करते हैं।

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सिंपल वॉल सेंट का यह लेख सामान्य प्रकृति का है। हम केवल एक निष्पक्ष कार्यप्रणाली का उपयोग करके ऐतिहासिक डेटा और विश्लेषक पूर्वानुमानों के आधार पर टिप्पणी प्रदान करते हैं और हमारे लेख वित्तीय सलाह के लिए अभिप्रेत नहीं हैं। यह किसी भी स्टॉक को खरीदने या बेचने की सिफारिश नहीं करता है, और आपके उद्देश्यों, या आपकी वित्तीय स्थिति पर ध्यान नहीं देता है। हमारा लक्ष्य आपके लिए मौलिक डेटा द्वारा संचालित दीर्घकालिक केंद्रित विश्लेषण लाना है। ध्यान दें कि हमारा विश्लेषण नवीनतम मूल्य-संवेदनशील कंपनी घोषणाओं या गुणात्मक सामग्री में कारक नहीं हो सकता है। सिंपल वॉल सेंट का उल्लेख किए गए किसी भी स्टॉक में कोई स्थान नहीं है।

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मौलिक विश्लेषण क्या है

*1 यह रोग के घटकों और रोग के आरम्भ के बीच सम्बन्ध की जाँच के लिए प्रयोग की जाने वाली अवलोकन अनुसंधान विधियों में से एक है। किसी निर्दिष्ट रोग घटक में सम्मिलित लोगों के समूह और किसी निर्दिष्ट रोग घटक में असम्मिलित लोगों के समूह का निर्माण किया जाता है, और घटकों व रोग की शुरुआत के बीच संबंध को प्रत्येक समूह के लक्षित रोग की घटना की गणना करते हुए जाँचा जा सकता है।

*2 ये प्रतिरक्षण कोशिकाएँ (इम्यून सेल्स) हैं, जो शरीर में बैक्टीरिया या वायरस के प्रवेश करने पर प्रमुख लीडर के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। पीडीसी (pDC) सक्रियन वायरल संक्रमणों से रक्षा के लिए एनके कोशिकाओं, टी कोशिकाओं और बी कोशिकाओं जैसी विभिन्न प्रतिरक्षण कोशिकाओं को सक्रिय करता है।

  1. अनुसंधान की थीम
  1. अनुसंधान की योजना
  1. लक्ष्य


पृष्ठभूमि

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा मोटापा को “असामान्य अथवा अत्यधिक चर्बी का संचय जो स्वास्थ्य को कमजोर कर सकता है” के रूप में परिभाषित किया है, जिसके परिणति दीर्घकालीन रोगों के बढ़े हुए जोखिम के रूप में हो सकती है। स्वास्थ्य पर मोटापा के प्रभावों पर दुनिया भर में अध्ययन किये जा रहे हैं; और हाल के वर्षों में मोटापा और प्रतिरक्षण शक्ति के बीच सम्बन्ध पर लोगों का ध्यान गया है, क्योंकि मोटापा का सम्बन्ध ज्यादा गंभीर वायरल संक्रमणों के साथ रहा है। *3

उद्देश्य

इस अनुसंधान का लक्ष्य आँत की चर्बी और पीडीसी क्रिया के बीच सम्बन्ध पर प्रकाश डालना है। इस उद्देश्य को प्रतिरक्षा विज्ञान के क्षेत्र में किरिन होल्डिंग्स की 35 वर्षों से अधिक की अनुसंधान क्षमताओं और आँतों में चर्बी के जमाव - जो जीवनशैली-संबंधी रोगों का मूल कारक है - का सुधार करने में काओ की अनुसंधान क्षमताओं के संयोजन के द्वारा पूरा किया जाएगा। यह अनुसंधान “वाकायामा स्वास्थ्य संवर्धन अध्ययन” के एक अतिरिक्त अध्ययन के रूप में संचालित किया जाएगा, जो वर्ष 2011 से वाकायामा प्रशासनिक प्रांत के निवासियों पर किया गया है।

इस महीने में, वाकायामा प्रशासनिक प्रांत में 40-55 वर्ष उम्र के निवासियों के लिए एक विशिष्ट स्वास्थ्य जाँच की जाएगी। काओ जीवनशैली से सम्बंधित आदतों और आँत की चर्बी (विसरल फैट) की मात्रा पर डेटा संकलित करेगी, जबकि किरिन होल्डिंग्स रक्त में पीडीसी सहित डेन्ड्रिटिक कोशिकाओं की क्रियाओं पर डेटा संकलित करेगी। इन डेटा को परस्पर साझा किया जाएगा, और आँत की चर्बी तथा पीडीसी क्रिया के बीच सम्बन्ध का संयुक्त रूप से अध्ययन और विश्लेषण किया जाएगा।

वाकायामा स्वास्थ्य संवर्धन अध्ययन क्या है?

यह एक कोहार्ट अध्ययन है, जो 2011 से वाकायामा मेडिकल यूनिवर्सिटी के नेतृत्व में क्या जा रहा है और वर्तमान में एचपीआरसी के सहयोग से किया जा रहा है। इसका लक्ष्य वाकायामा प्रशासनिक प्रांत में स्थानीय निवासियों के बीच विभिन्न रोगों के विकास में सम्मिलित आनुवंशिक और पर्यावरणीय घटकों की पहचान करना है।

अभी तक, जीवनशैली और मांसपेशियों पर अनुसंधान किया गया है, और मांसपेशियों में कमी एवं आर्टेरियोस्केलेरोसिस की शुरुआत तथा गिरने की पिछली घटनाओं एवं स्वैच्छिक शारीरिक गतिविधि के परिमाण के बीच सम्बन्ध पर अनेक मौलिक पत्र प्रकाशित किये गए हैं।

एचपीआरसी अध्ययन के माध्यम से आँतों की चर्बी और पीडीसी क्रिया के बीच सम्बन्ध को स्पष्ट क्रेट हुए, किरिन और काओ भविष्य में उपभोक्ताओं के लिए स्वास्थ्य के जोखिम कण करने के लक्ष्य के साथ पहलकदमी बढ़ाएंगे।

किरिन होल्डिंग्स के विषय में

किरिन होल्डिंग्स कंपनी लिमिटेड एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी है जो खाद्य एवं पेय (फूड और बेवरीज व्यवसायों), औषधि (फार्मास्युटिकल्स व्यवसायों), तथा स्वास्थ्य विज्ञान (हेल्थ साइंस व्यवसाय) के क्षेत्र में जापान और पूरे विश्व में परिचालन करती है।

किरिन होल्डिंग्स का मूल जापान ब्रेवरी में है जिसकी स्थापना वर्ष 1885 में की गई थी। जापान ब्रेवरी का नाम वर्ष 1907 में किरिन ब्रेवरी हो गया। उसके बाद से इस कंपनी ने अपने मूलभूत तकनीकों के रूप में व्यवसाय किण्वन और जैव-प्रौद्योगिकी के साथ अपने व्यवसाय का विस्तार किया, और 1980 के दशक में औषधि व्यवसाय में कदम रखा। इसके ये सभी व्यवसाय वैश्विक वृद्धि के केंद्र बने हुए हैं। वर्ष 2007 में एक विशुद्ध होल्डिंग कंपनी के रूप में किरिन होल्डिंग्स की स्थापना की गई और वर्तमान में यह अपना स्वास्थ्य विज्ञान का क्षेत्र मजबूत करने पर फोकस कर रही है।

किरिन ग्रुप विज़न 2007 (केवी 2027) के अंतर्गत वर्ष 2019 में एक दीर्घकालीन प्रबंधन योजना, किरिन ग्रुप आरम्भ की गई, जिसका लक्ष्य हमारे खाद्य और पेय से लेकर औषधियों की दुनिया में मूल्य निर्माण करते हुए सीएसवी* में ग्लोबल लीडर बनना है। भविष्य में किरिन ग्रुप कॉर्पोरेट मूल्य में स्‍थायी वृद्धि हासिल करने के लक्ष्य के साथ अपने व्यवसायों के माध्यम से सामाजिक और आर्थिक दोनों मूल्य निर्माण करने के लिए अपनी शक्ति का लाभ उठाना जारी रखेगा।

*साझा मूल्य का निर्माण : उपभोक्ताओं और व्यापक समाज के लिए संयुक्त वर्धित मूल्य।

काओ कॉरपोरेशन के विषय में

काओ उच्च मूल्यवर्द्धित उत्पादों और सेवाओं का निर्माण करती है जो सभी लोगों और पृथ्वी के जीवन के लिए देखभाल और समृद्धि प्रदान करते हैं। अटैक, बायोर, गोल्डवेल, जर्गेंस, जॉन फ्रीडा, कनेबो, लॉरियर, मेरीज, और मोल्टन ब्राउन जैसे 20 से अधिक अग्रणी ब्रांडों के अपने पोर्टफोलियो के माध्यम से, काओ एशिया, ओशिनिया, उत्तरी अमेरिका, और यूरोप में लोगों के दैनिक जीवन से जुड़ा हुआ है। अपने केमिकल व्यवसाय, जो विविध प्रकार के उद्योगों की ज़रुरत पूरी करता है, के द्वारा काओ लगभग 1,420 बिलियन येन की वार्षिक बिक्री करता है। पूरे विश्व में काओ के लगभग 33,500 कर्मचारी हैं और नवाचार में इसका 135 वर्षों पुराना इतिहास है। नवीन जानकारी के लिए काओ ग्रुप की वेबसाइट देखें : https://www.kao.com/global/en/.

काओ ग्रुप में अप्रैल 2019 में अपनी ईएसजी रणनीति, किरी लाइफस्टाइल प्लान स्थापित की। वर्ष 2021 में, काओ ने अपनी मध्यावधि योजना 2025 (के25) आरम्भ की, जिसमें “भावी जीवनों की रक्षा” और “एकमात्र रास्ता के रूप में सस्टेनेबिलिटी” के संवर्धन को इसकी दूरदृष्टि के रूप में घोषित किया गया। काओ ग्रुप अपने ईएसजी रणनीति को अपने प्रबंधन पद्धतियों में शामिल करना जारी रखेगा। यह अपने व्यवसाय का विकास भी करेगा, तथा उपभोक्ताओं एवं समाज के लिए बेहतर उत्पाद एवं सेवायें मुहैया करने के साथ ही अपने उद्देश्य - “एक ऐसा किरी विश्व प्राप्त करना जसमें सभी प्राणी समन्वयपूर्वक रह सकें” - की दिशा में काम करता रहेगा।

उत्तराखंड: प्रशासन ने पतंजलि की पांच दवाओं और उनके विज्ञापनों पर रोक लगाई

ख़बरों के अनुसार, उत्तराखंड की आयुर्वेदिक और यूनानी सेवाओं के अधिकारियों द्वारा जारी पत्र में रामदेव की पतंजलि दिव्य फार्मेसी को इसकी पांच दवाओं का उत्पादन और विज्ञापन बंद करने को कहा गया है. इससे पहले भी कंपनी द्वारा कोविड-19 का 'इलाज' बताई गई कोरोनिल समेत कुछ दवाओं को लेकर सवाल उठ चुके हैं. The post उत्तराखंड: प्रशासन ने पतंजलि की पांच दवाओं और उनके विज्ञापनों पर रोक लगाई appeared first on The Wire - Hindi.

ख़बरों के अनुसार, उत्तराखंड की आयुर्वेदिक और यूनानी सेवाओं के अधिकारियों द्वारा जारी पत्र में रामदेव की पतंजलि दिव्य फार्मेसी को इसकी पांच दवाओं का उत्पादन और विज्ञापन बंद करने को कहा गया है. इससे पहले भी कंपनी द्वारा कोविड-19 का ‘इलाज’ बताई गई कोरोनिल समेत कुछ दवाओं को लेकर सवाल उठ चुके हैं.

बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण. (फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: गुरुवार, 10 नवंबर को उत्तराखंड के अधिकारियों द्वारा योग गुरु रामदेव द्वारा स्थापित पतंजलि दिव्य फार्मेसी को इसके पांच उत्पादों का उत्पादन और विज्ञापन को रोकने के आदेश की खबरें सामने आने के बाद कंपनी ने ऐसा कोई नोटिस मिलने से इनकार किया है और ‘आयुर्वेद विरोधी माफिया’ की साजिश का आरोप लगाया है.

रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड की आयुर्वेदिक और यूनानी सेवाओं के अधिकारियों ने गुरुवार को कंपनी को एक पत्र जारी कर पांच उत्पादों- दिव्य मधुग्रित, दिव्य आईग्रिट गोल्ड, दिव्या थायरोग्रिट, दिव्या बीपीग्रिट और दिव्या लिपिडोम का उत्पादन और विज्ञापन बंद करने को कहा है.

पतंजलि का दावा है कि ये उत्पाद मधुमेह, आंखों के संक्रमण, थायराइड, रक्तचाप मौलिक विश्लेषण क्या है और कोलेस्ट्रॉल के इलाज में मदद करते हैं.

पत्र में लाइसेंस अधिकारी डॉ. जीसीएस जंगपांगी ने कहा है कि आयुर्वेद नियामक द्वारा गठित एक टीम उपरोक्त दवाओं की फॉर्मूलेशन शीट की समीक्षा करेगी और भविष्य में पतंजलि के स्वामित्व वाली दिव्य फार्मेसी के किसी भी विज्ञापन को मंजूरी देने की भी जरूरत होगी.

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, यदि इस मंजूरी के बिना विज्ञापन चलते रहते हैं, तो कंपनी ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम और ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के नियम 170, जो विशेष रूप से आयुर्वेद, यूनानी और सिद्ध उत्पादों के संबंध में भ्रामक विज्ञापनों और अतिरंजित दावों से संबंधित है, के तहत शुल्क वसूल करेगी.

जंगपांगी का पत्र केरल में एक नेत्र रोग विशेषज्ञ ने पतंजलि के खिलाफ राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण (एसएलए) में एक विज्ञापन के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाने के बाद आया है, जिसमें कंपनी ने दावा किया था कि इसके आईड्रॉप्स का उपयोग मोतियाबिंद, ग्लूकोमा और अन्य आंखों के मुद्दों के इलाज में उपयोगी हो सकता है.

नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. केवी. बाबू ने अखबार को बताया था कि अगर इन स्थितियों का इलाज नहीं किया जाए, तो वे घातक साबित हो सकती हैं और इस प्रकार के विज्ञापन ‘मानव जीवन के लिए खतरा’ हैं.

एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार, पतंजलि ने इसके बाद जारी एक बयान में कहा है कि उसे जंगपांगी के पत्र की प्रति नहीं मिली मौलिक विश्लेषण क्या है थी, लेकिन साथ ही आरोप लगाया कि यह ‘साजिशन लिखा गया और मीडिया के बीच प्रसारित’ किया गया.

एनडीटीवी के मुताबिक, इसमें आगे पतंजलि ने कहा, ‘पतंजलि द्वारा बनाए गए सभी उत्पादों और दवाओं को बनाने में आयुर्वेद परंपरा में उच्चतम अनुसंधान और गुणवत्ता के साथ सभी वैधानिक प्रक्रियाओं और अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करते हुए 500 से अधिक वैज्ञानिकों की मदद से निर्धारित मानकों का पालन किया जाता है.’

रामदेव की कंपनी ने प्रशासन से कथित साजिशकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग करते हुए कहा कि ऐसा नहीं हुआ तो वे उसे हुए ‘संस्थागत नुकसान’ की भरपाई के लिए कानूनी कार्रवाई शुरू करेंगे.

इससे पहले जुलाई महीने में पतंजलि योगपीठ की इकाई दिव्य फार्मेसी कपंनी पर इसके आयुर्वेदिक उत्पादों के भ्रामक विज्ञापन जारी करने के चलते आयुर्वेद एवं यूनानी सेवा (उत्तराखंड) के लाइसेंसिंग अधिकारी ने हरिद्वार के ड्रग इंस्पेक्टर को दिव्य फार्मेसी के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे.

उल्लेखनीय है कि बीते साल रामदेव और उनकी कंपनी पतंजलि ने अपनी दवा ‘कोरोनिल’ के कोविड-19 के इलाज में कारगर होने संबंधी दावे किए थे. साथ ही एलोपैथी और एलोपैथी डॉक्टरों के ख़िलाफ़ अपमानजनत टिप्पणियां की थीं, जिसके ख़िलाफ़ डॉक्टरों के विभिन्न संघों ने अदालत का रुख किया था.

इस साल जुलाई में रामदेव की कंपनी ने अदालत को बताया था कि वह कोरोनिल के इम्युनिटी बूस्टर, न कि बीमारी का इलाज होने को लेकर सार्वजनिक स्पष्टीकरण जारी करने के लिए तैयार है. हालांकि, अगस्त की सुनवाई में उसने जो स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया, उसमें लिखा था:

‘यह स्पष्ट किया जाता है कि कोरोनिल एक इम्युनिटी बूस्टर होने के अलावा, विशेष रूप से श्वांस नली से संबंधित और सभी प्रकार के बुखार के लिए, कोविड-19 के प्रबंधन में एक साक्ष्य-आधारित सहायक है.’

इसमें यह भी कहा गया था… ‘कोरोनिल का परीक्षण कोविड-19 के लक्षण वाले (Symptomatic) रोगियों पर किया गया, जिसका नतीजा उन पर सफल रहा. इसे उस पृष्ठभूमि में देखें कि कोरोनिल को इलाज कहा गया था. हालांकि, बाद में यह स्पष्ट किया गया कि कोरोनिल कोविड-19 के लिए केवल एक पूरक उपाय है.’

अदालत ने इसे ख़ारिज करते हुए कहा था कि यह ‘स्पष्टीकरण के बजाय अपनी पीठ थपथपाने जैसा है.’

इसके आगे की सुनवाइयों में अदालत ने कंपनी को फटकारते हुए कहा था कि वह अपने उत्पाद को कोविड का इलाज बताकर गुमराह कर रही है.

इसके बाद अगस्त के आखिरी सप्ताह में एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एलोपैथी और एलोपैथिक चिकित्सकों की आलोचना करने के लिए रामदेव से अप्रसन्नता जताते हुए कहा था कि उन्हें डॉक्टरों के लिए अपशब्द बोलने से परहेज करना चाहिए.

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि केंद्र सरकार को रामदेव को झूठे दावे और एलोपैथी चिकित्सकों की आलोचना करने से रोकना चाहिए.

उल्लेखनीय है कि मई 2021 में सोशल मीडिया पर साझा किए गए एक वीडियो का हवाला देते हुए आईएमए ने कहा था कि रामदेव कह रहे हैं कि ‘एलोपैथी एक स्टुपिड और दिवालिया साइंस है’.

उन्होंने यह भी कहा था कि एलोपैथी की दवाएं लेने के बाद लाखों लोगों की मौत हो गई. इसके साथ ही आईएमए ने रामदेव पर यह कहने का भी आरोप लगाया था कि भारत के औषधि महानियंत्रक द्वारा कोविड-19 के इलाज के लिए मंजूर की गई रेमडेसिविर, फैबीफ्लू तथा ऐसी अन्य दवाएं कोविड-19 मरीजों का इलाज करने में असफल रही हैं.

एलोपैथी को स्टुपिड और दिवालिया साइंस बताने पर रामदेव के खिलाफ महामारी रोग कानून के तहत कार्रवाई करने की डॉक्टरों की शीर्ष संस्था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) व डॉक्टरों के अन्य संस्थाओं की मांग के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने रामदेव को एक पत्र लिखकर उनसे अनुरोध किया था कि वे अपने शब्द वापस ले लें.

भारत में हर साल 341 बार घुसपैठ करता है चीन! पढ़ें ड्रैगन की पोल-पट्टी खोलने वाली ये रिपोर्ट

इंटरनेशनल डेस्कः अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के एक अध्ययन के अनुसार अक्साई चिन क्षेत्र में चीनी अतिक्रमण आकस्मिक घटनाएं नहीं हैं बल्कि विवादित सीमा क्षेत्र पर स्थायी नियंत्रण पाने की रणनीतिक रूप से सुनियोजित और समन्वित ‘विस्तारवादी रणनीति' का हिस्सा हैं। नीदरलैंड में नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी, टेक्निकल यूनिवर्सिटी ऑफ डेल्फ्ट तथा नीदरलैंड डिफेंस एकेडमी ने ‘हिमालय क्षेत्र में बढ़ता तनाव: भारत में चीनी सीमा अतिक्रमण का भू-स्थानिक विश्लेषण' विषयक अध्ययन किया। उन्होंने पिछले 15 साल के मौलिक आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए अतिक्रमण का भू-स्थानिक विश्लेषण किया। बृहस्पतिवार को जारी अध्ययन में कहा गया, ‘‘हम देखते हैं कि संघर्ष को दो स्वतंत्र संघर्षों- पश्चिम मौलिक विश्लेषण क्या है और पूर्व में अलग-अलग किया जा सकता है जो अक्साई चिन तथा अरुणाचल प्रदेश के प्रमुख विवादित इलाकों के इर्दगिर्द है। ''

उन्होंने कहा, ‘‘हमारा निष्कर्ष है कि पश्चिम में चीनी अतिक्रमण रणनीतिक रूप से नियोजित हैं जिनका उद्देश्य स्थायी नियंत्रण पाना है, या कम से कम विवादित क्षेत्रों की स्पष्ट यथास्थिति बनाकर रखना है।'' अध्ययन करने वाले दल ने ‘घुसपैठ' (इन्कर्जन) को भारत के क्षेत्र के रूप में अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्य इलाकों में सीमा के आसपास चीनी मौलिक विश्लेषण क्या है सैनिकों की पैदल या वाहनों से किसी तरह की गतिविधि के रूप में परिभाषित किया है। उन्होंने एक मानचित्र पर 13 ऐसे स्थान चिह्नित किये हैं जहां बार-बार घुसपैठ होती है। अनुसंधानकर्ताओं ने 15 साल के आंकड़ों में प्रत्येक वर्ष घुसपैठ की औसतन 7.8 घटनाएं देखीं। हालांकि भारत सरकार का आकलन इससे बहुत अधिक है।

भारत और चीन के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को लेकर सीमा विवाद है। चीन, अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा बताता है, वहीं भारत इसका विरोध करता है। अक्साई चिन लद्दाख का बड़ा इलाका है जो इस समय चीन के कब्जे में है। भारत सरकार के 2019 के आंकड़ों के अनुसार चीन की सेना ने 2016 से 2018 के बीच 1,025 बार भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की। तत्कालीन रक्षा राज्य मंत्री श्रीपद येसो नाइक ने नवंबर 2019 में लोकसभा को बताया था कि चीन की सेना ने 2016 में 273 बार घुसपैठ की जो 2017 में बढ़कर 426 हो गयीं। 2018 में इस तरह की घटनाओं की संख्या 326 रही।

अध्ययन में जून 2020 में गलवान संघर्ष का उल्लेख किया गया है जिसमें 20 भारतीय जवानों की मौत हो गयी थी तथा चीन के सैनिक भी मारे गये थे जिनकी संख्या अज्ञात है। रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय क्षेत्र में चीनी घुसपैठ की खबरें अब रोजाना की बात हो गयी है। इसमें कहा गया, ‘‘दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देशों के बीच बढ़ता तनान वैश्विक सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिए खतरा है। क्षेत्र के सैन्यीकरण का नकारात्मक पारिस्थितिकीय असर है।'' भारत और चीन के बीच पिछले 29 महीने से अधिक समय से पूर्वी लद्दाख में सीमा गतिरोध जारी है।

अध्ययन के अनुसार, ‘‘चीन की विदेश नीति तेजी से आक्रामक हो गई है, वह ताइवान के आसपास अपने सैन्य अभ्यास बढ़ा रहा है और दक्षिण चीन सागर में उपस्थिति बढ़ा रहा है। चीन की विस्तारवादी नीतियों का मुकाबला करने के लिए ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन तथा अमेरिका ने एक साझेदारी की है और भारत के लिए एक विकल्प है कि वह खुद को इन तीनों देशों के साथ संयोजित करे।''

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शैक्षणिक सत्र 2023-24 की तैयारियां शुरू : पुस्तक छपाई के लिए शिक्षा विभाग ने स्कूलों से मांगा कक्षावार विद्यार्थियों का डाटा

शिक्षा विभाग ने संबंधित विद्यालय मुखियाओं को निर्देश दिए हैं कि वह 15 नवंबर तक अपने-अपने विद्यालय की कक्षावार विषयवार छात्र संख्या विभाग के एमआइएस पोर्टल पर अपडेट करने के निर्देश जारी किए हैं।

महेंद्रगढ़। शिक्षा विभाग ने सत्र 2023-24 में विद्यार्थियों को समय पर किताबें उपलब्ध करवाने के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं, ताकि विद्यार्थियों की पढ़ाई बाधित ना हो। पहली से आठवीं कक्षा के विद्यार्थियों को शैक्षणिक सत्र 2023-24 के लिए पुस्तकें की छपाई का कार्य शुरू किया जाना है। ऐसे में शिक्षा विभाग ने संबंधित विद्यालय मुखियाओं को निर्देश दिए हैं कि वह 15 नवंबर तक अपने-अपने विद्यालय की कक्षावार विषयवार छात्र संख्या विभाग के एमआइएस पोर्टल पर अपडेट करने के निर्देश जारी किए हैं।

शिक्षा विभाग द्वारा राजकीय स्कूलों के पहली से आठवीं कक्षा के विद्यार्थियों को मुफ्त किताबें उपलब्ध करवाई जाती हैं। कोरोना महामारी के चलते सत्र 2020-21 व सत्र 2021-22 के लिए विद्यार्थियों को नई मुफ्त पुस्तकें नहीं मिली थी। विद्यार्थियों को पुरानी किताबों से ही काम चलाना पड़ रहा था। वहीं सत्र 2022-23 में भी आधा सत्र बीत जाने के बाद किताबें उपलब्ध हो पाई। किताबे समय पर नहीं मिल पाने के कारण विद्यार्थियों की पढ़ाई काफी मौलिक विश्लेषण क्या है प्रभावित हुई थी। शिक्षा विभाग ने बीते सत्र से सबक लेते हुए सत्र 2023-24 में बच्चों को समय पर किताबे उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है। नए सत्र 2023-24 में विद्यार्थियों को किताबों के लिए परेशानी नहीं हो, इसके लिए शिक्षा विभाग अभी से तैयारी में लग गया है। शिक्षा विभाग ने जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी को पत्र जारी कर 15 नवंबर तक पोर्टल पर डाटा अपडेट करने के निर्देश दिए हैं। शिक्षा विभाग की ओर जारी किए गए पत्र में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि अगर किसी विद्यालय द्वारा एमआइएस पोर्टल पर छात्र संख्या सही नहीं भरने के कारण पाठ्य पुस्तकें कम या ज्यादा पहुंचती हैं तो इसके लिए संबंधित विद्यालय स्वयं मौलिक विश्लेषण क्या है जिम्मेदार होगा।

पोर्टल पर अपडेट डाटा के अनुसार मिलेगी पुस्तकें

बीईओ अलका ने बताया कि शिक्षा विभाग की ओर से पत्र जारी किया गया है कि पहली से आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले विद्यार्थियों का कक्षावार विषयवार डाटा एमआइएस पोर्टल पर अपलोड किया जाए। इसके लिए सभी स्कूल मुखियाओं को निर्देश दिए गए हैं कि वह अपने-अपने स्कूल का डाटा पोर्टल पर अपडेट करें। एमआइएस पोर्टल पर अपलोड किए गए डाटा के अनुसार ही विभाग द्वारा पुस्तकें भेजी जाएंगी।

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