अब कमा रहे लाखों रुपए

रिटायरमेंट के बाद सहारनपुर में शुरू की जैविक खेती, अब कमा रहे लाखों रुपए, पढ़िए स्टोरी
Saharanpur News: आदित्य ने इंडोनेशिया से मछली पालन करने की ट्रेनिंग ली. 7 दिन की ट्रेनिंग में काफी कुछ नया सीखने को मिल . अधिक पढ़ें
- News18 Uttar Pradesh
- Last Updated : November 28, 2022, 16:48 IST
रिपोर्ट – निखिल त्यागी
सहारनपुर: जैविक खेती में केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता और कम लागत में गुणवत्तापूर्ण पैदावार होती है. जैविक खेती में केमिकल फर्टिलाइजर पेस्टिसाइड की बजाए. गोबर की खाद कंपोस्ट खाद जैविक खाद आदि की मदद से खेती की जाती है. जैविक खेती हमारे पूर्वजों द्वारा अपनाया गया एक प्राकृतिक खेती का तरीका था. जिसके अनुसार खेती करने से पदार्थो कि गुणवत्ता बरकरार रहती थी. हमारे खेती के तत्व जैसे की जल, भूमि, वायु और वातावरण में कोई प्रदूषण नहीं फैलता था.
रिटायर फारेस्ट रेंजर आदित्य त्यागी सहारनपुर के निकट मेरवानी गांव के रहने वाले है. रिटायर होने के बाद खाली बैठना रेंजर को अच्छा नहीं लगता था. रोज नए नए आइडियाज सोचते रहते थे. रेंजर का अपने बेटे के पास तुर्की जाना हुआ. वहा से इंटली घूमने गए. इटली में फॉरेस्ट रेंजर ने देखा कि लोग कितने अच्छे तरीके से वहां पर खेती करते हैं. वहीं से आदित्य को आइडिया मिला क्यों ना मैं सहारनपुर में नई तकनिकी से जैविक खेती करू.
सहारनपुर आकर आदित्य ने जैविक सब्जी के साथ साथ काला धान और काला गेहूं की खेती शुरू की. काले गेहूं के बहुत ज्यादा बेनिफिट्स होते हैं. आदित्य ने बताया की लोगों को काले गेहूं और काले धान की जानकारी कम है. बहुत कम लोग इसके बारे में जानते हैं.
जानिए सालाना इनकम
आदित्य ने बताया कि शुरुआत में 1 साल तो इतना प्रोडक्शन नहीं होता. थोड़ी मेहनत भी ज्यादा रहती है. लेकिन दूसरे और तीसरे साल में पूरा फायदा मिलता है .अगर नॉर्मल गेहूं ₹3000 कुंटल बिकता है तो जेविक गेहूं 4500 से 5000 रुपए कुंटल बिक जाता है. किसान भाई आमदनी को लेकर सोचते हैं कि इस काम को करके आमदनी कम हो जाएगी. लेकिन ऐसा नहीं है.
आदित्य कहते हैं कि आमदनी आम खेती से ज्यादा है. लगभग 25 लाख के करीब सालाना टर्नओवर है. अगर बचत की बात करें तो वह लगभग 14 से 15 लाख- रुपये के आसपास है. यह आमदनी बहुत ज्यादा जमीन से नहीं सिर्फ 17- 18 बीघा जमीन से ही इतनी आमदनी हो जाती है.
देसी गाय के गोबर से बनाते हैं खाद
आदित्य ने बताया कि उन्होंने देसी गाय पाली हुई है. जिसके गोबर से वह केंचुए की खाद बनाते हैं. देसी गाय के गोमूत्र का इस्तेमाल वह इंसेक्टिसाइड में दवाई बनाने के लिए करते हैं. उसी गाय के गोबर में सरसों की खल मिलाकर फिश फीड भी बना रहे हैं. अब आगे गाय के गोबर से धूप बत्ती बनाने की भी शुरुआत करेंगे, क्योंकि गाय के गोबर और धूपबत्ती की डिमांड आजकल ज्यादा है. गाय के गोबर के उपले बनाकर ऐमेज़ॉन और अन्य ई-कॉमर्स वेबसाइट पर सेल भी किए जा सकते हैं. इससे गांव के कुछ लोगों को रोजगार भी मिलेगा. खरीददार को सही चीज भी उपलब्ध होगी.
फिश फार्मिंग बायोफ्लेक्स टेक्नोलॉजी
बायो फ्लॉक फार्मिंग आदित्य पिछले 5 साल से कर रहे हैं. काफी लोगों को ट्रेनिंग देकर जागरूक भी कर चुके हैं. नई तकनीक के साथ फार्मिंग करने से जितनी प्रोडक्शन एक बीघा जमीन में की जाती है. इसमें प्रोडक्शन 1 बीघा जमीन में होने वाली प्रोडक्शन से ज्यादा हो जाती है. जिससे कम एरिया में ज्यादा काम किया जा सकता है. आदित्य ने बताया कि वह 2 तरह की मछली का उत्पादन अपने फार्म में कर रहे हैं. जिनका नाम सिंगरी और पन्गास है.अब कमा रहे लाखों रुपए
इंडोनेसिया से ली ट्रेनिंग
आदित्य ने इंडोनेशिया से मछली पालन करने की ट्रेनिंग ली. 7 दिन की ट्रेनिंग में काफी कुछ नया सीखने को मिला. आदित्य ने कहा कि किसानों की आय इस काम को करने के बाद दोगुनी नहीं 10 गुनी हो सकती है.
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हरियाणा के युवा ने नौकरी छोड़़ रिस्क उठाया, ट्रेनिंग ली और शुरू की डेयरी फार्मिंग, अब लाखों कमा रहे
नौकरी छोड़़ने के बाद बिजनेस का रिस्क उठाया। डेयरी फार्मिंग के लिए विभाग में जाकर ट्रेनिंग भी ली। अब पशु पालक गुरविंद्र सिंह गाय डेयरी फार्मिंग से लाखों कमा रहे। रोजाना 500 लीटर दूध से कमाई कर रहे। ढ़ाई लाख के करीब प्रतिमाह कमाई है।
पानीपत/कैथल, [सोनू थुआ]। लकीर से हटकर जिसने भी काम किया, उसे कामयाबी जरूरी मिली। अध्यापक की प्राइवेट नौकरी में जब मन नहीं लगा तो दुसैन के किसान गुरविंद्र ने नौकरी छोड़ दी। उन्होंने अपने गांव में ही गाय की डेयरी फार्मिंग करने की ठानी, क्योंकि उनके मन में गाय पालन करने की इच्छा जगी। गाय सेवा के साथ उन्होंने इसी बिजनेस में किस्मत आजमाने का फैसला भी लिया।
पशुपालक गुरविंद्र सिंह बताते हैं कि उन्होंने पशुपालन विभाग के सहयोग से डेयरी फार्मिंग की ट्रेनिंग ली और मार्च 2005 में पांच गायों के साथ एक एकड़ जमीन पर डेयरी फार्म शुरू कर दिया। गुरविंद्र बताते हैं कि जब डेयरी फार्म खोला तो रिश्तेदार ही नहीं पड़ोसियों ने उसकी काफी आलोचना की, लेकिन उन्होंने किसी की नहीं सुनी और अपना काम जारी रखा। आज डेयरी फार्मिंग से 500 लीटर दूध का उत्पादन कर ढ़ाई लाख रुपये के करीब पैसा प्रतिमाह कमा रहे हैं।
500 लीटर दूध का उत्पादन होता है डेयरी फार्म से
गुरविंद्र के डेयरी फार्म में आज रोजाना 500 लीटर दूध का उत्पादन होता है, जबकि सर्दियों के समय में दूध का उत्पादन 400 लीटर प्रतिदिन तक पहुंच जाता है। गुरविंद्र बताते है कि वो अपने फार्म में गायों की काफी देखभाल करते हैं। गाय को क्या खिलाना है, कब खिलाना है उसका पूरा ध्यान रखा जाता है। गायों के लिए हरा चारा वो अपने खेत में ही उगाते हैं साथ ही गायों के लिए दाना भी खुद तैयार करवाते हैं।
ये रहती है गायों की खुराक
गाय के दाने में सरसों की खली, बिनौला, सोयाबीन, मक्का, गेहूं, मिनरल मिक्सर समेत 17 चीजें मिलाते हैं। इस दाने को खाने से जहां गाय सेहतमंद रहते हैं वहीं दुग्ध का उत्पादन भी बढ़ जाता है। गाय के स्वास्थ्य की देखभाल पर भी खासा ध्यान देते हैं। सरकारी अस्पताल के चिकित्सक से संपर्क में तो रहते हैं। पशुओं को रखने के लिए काफी बड़े क्षेत्र में शेड बना हुआ है, उन्होंने बताया कि पशुओं को सिर्फ मिल्किंग अब कमा रहे लाखों रुपए और चारा खिलाने के लिए बांधा जाता है बाकी वक्त गाय और भैंस पूरे फार्म में खुले घूमते रहते हैं।
पशु पालक गुरविंद्र बताते हैं कि उनके फार्म में औसतन 500 लीटर दूध का रोजाना उत्पादन होता है। डायरी फार्म से ही दूध बिक जाता है। बेचने जाने की जरूरत नहीं है। अलग- अलग जगह पर कई हलवाइयों से संपर्क करते हुए दूध सप्लाई किया जाता है। कुछ दूध वह सीधे ग्राहकों को उनके घरों तक पहुंचाते हैं। गुरविंद्र के डेयरी फार्म में 60 गाय है। जिनका रोजाना 500 लीटर दूध होता है। बाजार में गाय का दूध 40 रुपये प्रति लीटर बिकता है। उसके मुताबिक हर महीने करीब दो से ढाई लाख रुपये की खर्च निकाल कर आमदनी हो रही है। अपने फार्म पर पांच लोगों को रोजगार भी दिया हुआ है।
गुरविंद्र अपने फार्म में सिर्फ दूध का उत्पादन नहीं करते बल्कि गाय की नस्ल सुधारने के काम भी लगे हुए हैं। उन्होंने एचएफ गायों का पालन किया हुआ है। एचएफ नस्ल की बछड़ी भी तैयार कर रहे हैं, जो कुछ दिनों में दूध देने योग्य हो जाएंगी।
गुरविंद्र का कहना है कि आज बाजार में शुद्ध दूध की कमी है, लोग शुद्ध दूध की कुछ भी कीमत देने को तैयार है वे चाहते हैं कि वो लोगों को शुद्ध और मिलावट रहित दूध उपलब्ध कराएं। अपने फार्म से अच्छा दूध तैयार कर रहे है, ताकि वो कम से कम कीमत में लोगों को अच्छा दूध उपलब्ध हो सकें।
रोहतक के बीटेक पास सुनील ने नौकरी छोड़ शुरू की खेती, अब सालाना कमा रहे लाखों रुपये
रोहतक के मसूदपुर गांव के बीटेक पास सुनील कुमार सुनील ने 2010 से 2017 तक अलग अलग प्राइवेट कंपनियों में चार लाख से भी अधिक के सालाना पैकेज पर नौकरी की। संदीप का परिवार खुद भी बरवाला में छह एकड़ में बागवानी फसलें लगाकर अच्छी आय करता है।
रतन चंदेल, रोहतक। रोहतक के मसूदपुर गांव के बीटेक पास सुनील कुमार ने पांच साल पहले प्राइवेट कंपनी की अच्छी भली नौकरी छोड़ी तो परिवार वाले उसे ताने तक देने लगे। लेकिन सुनील ने ठान लिया था कि अब प्राइवेट कंपनी में नौकर रहने की बजाय अपने खेत में मालिक बनकर काम करना है। 33 वर्षीय सुनील के इसी अब कमा रहे लाखों रुपए जज्बे से बदलाव हुआ और अब वे दो एकड़ से सालाना सात से आठ लाख रुपये की आमदनी कर मिसाल पेश कर रहे हैं। इतना ही नहीं, खेती से आय बढ़ाने के लिए वे दूसरे किसानों को भी खेती के फायदे बताते हैं।
सुनिल को प्राइवेट कंपनी में नौकर रहने की बजाय अपने खेत में काम करना पंसद किया
दरअसल सुनील ने 2010 से 2017 तक अलग अलग प्राइवेट कंपनियों में चार लाख से भी अधिक के सालाना पैकेज पर नौकरी की। नौकरी के दौरान ही 2017 में एक दिन उनके एक सहकर्मी बरवाला निवासी संदीप ने उनसे खेती के संबंध में बातचीत की। संदीप का परिवार खुद भी बरवाला में छह एकड़ में बागवानी फसलें लगाकर अच्छी आय करता है। वहीं, से सुनील के मन में खेती करने का ख्याल आया। उसके बाद उन्होंने खेती से आमदनी बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा भी लिया।
मसूदपुर गांव के 33 वर्षीय युवा सुनील ने पेश की मिसाल
2017 में ही उन्होंने क्वालिटी इंजीनियर की प्राइवेट नौकरी छोड़ दी और गांव अब कमा रहे लाखों रुपए में आ गए। जहां स्वजनों ने उनको खूब डांटा भी। लेकिन सुनील ने कहा कि जितना समय नौकरी को दिया है, उससे अधिक समय खेती को वे देंगे और नौकरी से ज्यादा आमदनी इस खेती से ही करके दिखाएंगे। सुनील ने मशरूम की खेती शुरू कर दी। साथ ही जैविक खाद का प्रयोग कर सब्जियों का उत्पादन भी शुरू किया। शुरुआत में ही उनकी फसल अच्छी हुई और उन्होंने सात बेरोजगारों को रोजगार भी दिया।
अब दूसरों को बात रहे खेती के फायदे
सुनील के मुताबिक अज्ञात लोगों ने उनकी मशरूम की झोपड़ियों में आग लगा दी, जिससे उनको करीब पांच लाख रुपये का नुकसान भी उठाना पड़ा। हालांकि उन्होंने हार नहीं मानी और खेती से आय बढ़ाने के अपने लक्ष्य पर डटे रहे। इसके बाद उन्होंने बागवानी विभाग करनाल से ट्रेनिंग ली। जैविक सब्जियों का काम शुरू किया और एक एकड़ में 25 प्रकार की सब्जियां लगाई। बेल वाली सब्जियों को बांस पर चढ़ा दिया और टमाटर, हरी मिर्च, बैंगन, गोभी, भिंडी, धनिया, पालक, चप्पन कद्दू, भिंडी, उड़द व मूंग लगाई। फिलहाल उन्होंने करीब डेढ़ एकड़ में 12 प्रकार की सब्जियां लगा रखी हैं। उनके अलावा दो यूनिट केंचुआ खाद की लगा रखी है।
खुद तैयार करते हैं कीटनाशक :
सुनील कीटनाशक अपने खेत में ही तैयार करते हैं नीम, आक्टा, धतूरा, लहसुन, प्याज और हरी मिर्च का अर्क निकाल कर 200 लीटर के ड्रम में घोल तैयार करके छिड़काव करते हैं। वे बागवानी विभाग की योजनाओं का लाभ भी उठा रहे हैं। खेती के साथ ही पशुपालन भी करते हैं। उनके पास एक देशी गाय है एक बैल और एक भैंस भी है। आस पास के किसानों को भी वे जैविक खाद का प्रयोग कर खेती करने की सलाह देते रहते हैं।
अधिकारी के अनुसार
बागवानी विभाग की ओर से किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। अनेक कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही है। किसान उनका लाभ भी उठा रहे हैं। मसूदपुर गांव के किसान सुनील कुमार भी खेती में सराहनीय कार्य कर रहे हैं और अपनी आय बढ़ा रहे हैं। सुनील की तरह ही अन्य किसानों को भी अपनी आय बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए।
Bank की नौकरी छोड़ लोगों को शुद्ध खिलाने की ठानी, अब Organic Farming से लाखों कमा रहे हैं प्रतीक
कभी बैंक में नौकरी करने वाले प्रतीक और उनकी पत्नी प्रतीक्षा अब ऑर्गेनिक खेती करके खुद लाखों लाखों रुपए कमा रहे हैं. साथ ही दूसरे छोटे किसानों को ऑर्गेनिक खेती के जरिए मोटा मुनाफा भी कमवा रहे हैं. कपल को इसके लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. आर्थिक संकट से लेकर घर वालों की नाराजगी भी इन्हें आगे बढ़ने से नहीं रोक सकी, और आज ये दूसरों के लिए मिसाल बन गए हैं.
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नौकरी छोड़ शुरू की खेती
10 साल बैंकिंग सेक्टर में काम करने वाले प्रतीक शुरू से फार्मिंग करना चाहते थे. फिर उन्होंने नौकरी छोड़ने का फैसला कर ऑर्गेनिक खेती करने का मन बनाया. उनके फैसले से घर वाले काफी नाराज हुए. उन्होंने परिवार से 2 साल का समय मांगा. प्रतीक ने ग्रीन एंड ग्रेंस नाम की एक फार्मिंग कंपनी की शुरुआत की. हालांकि, 2 साल बीत जाने के बावजूद कपल को वो कामयाबी नहीं मिल पाई थी जिसकी उन्हें उम्मीद थी.
एक समय ऐसा भी आया जब उन्हें लगा कि दोबारा बोरिया बिस्तरा समेत बैंकिंग सेक्टर में चले जाना चाहिए, लेकिन फिर छोटे किसानों की वजह से उन्होंने अपने कदम रोक लिए. आगे उन्होंने किसानों को ऑर्गेनिक खेती के लिए प्रेरित किया. उन्होंने बीच बिचौलियों को साइड कर प्रोडक्ट को डायरेक्ट कस्टमर तक पहुंचाकर किसानों को मोटा मुनाफा दिलाने का भरसक प्रयास किया और आज इलाके की पहचान है.
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खेती की वजह से शादी रुकते रुकते बची
जानकारी के मुताबिक प्रतीक शुरुआत से खेती करना चाहते थे. जब उनकी शादी तय हुई तब उनके ससुर (रिटायर्ड आईएएस अधिकारी) हैं. प्रतीक ने रिश्ता तय होते समय अपने ससुर को बताया था कि अगर नौकरी करूंगा तो फार्मिंग करूंगा. इस बात से वो काफी नाराज हो गए थे. उन्होंने प्रतीक्षा से कहा था कि क्या इसी दिन के लिए तुम्हें पढ़ाया लिखाया था. उस वक्त तो ऐसा लगा कि जैसे उनकी शादी प्रतीक्षा से नहीं हो पाएगी. हालांकि, बाद में सब कुछ ठीक हो गया. प्रतीक्षा ने अपने परिवार से उनकी सोसायटी में अपने प्रोडक्ट तक बिकवाए.
Prateek
कहां से आय़ा प्रतीक को आडिया
बता दें कि प्रतीक और प्रतीक्षा को ऑर्गेनिक खेती करने का ख्याल उनकी बेटी के जन्म के बाद आया. वे उसे शुद्ध चीजें खिलाना चाहते थे. जो मार्केट में उपलब्ध नहीं थी. फिर उन्होंने ऑर्गेनिक खेती करना शुरू किया. जिसमें उन्होंने अपना करियर ही बना लिया. आज प्रतीक और प्रतीक्षा ऑर्गेनिक फार्मिंग के साथ-साथ शुद्ध मसाले में भी तैयार कर रहे हैं. आज वो देश के 6 स्टेट में अपने ऑर्गेनिक प्रोडक्ट को बेच रहे हैं. खुद के साथ किसानों को भी मोटा मुनाफा कमवा रहे हैं.
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